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बिहार का चुनावी गणित

पटना | समाचार डेस्क: 2014 के आम चुनाव के लिये बिहार में राजनीतिक दलों में चुनावी गठजोड़ बनाने-बिगाड़ने का काम शुरु हो गया है. इसमें लालू प्रसाद के जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद से तेजी आई है. ऐसे में बिहार की राजनीति में भी जोड़-तोड़ शुरू हो गया है. सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे को पछाड़ने की जुगत में जुट गए हैं.

बिहार में पिछले चुनाव से अलग तस्वीर सामने आना तय माना जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर जनता दल-युनाइटेड मैदान में उतरेगी, वहीं राष्ट्रीय जनता दल पांच दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरने की जुगत में है.

कांग्रेस, राजद, लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना है. वहीं राजद के नेता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी से भी गठबंधन के इच्छुक लग रहे हैं.

कांग्रेस की बिहार इकाई के अध्यक्ष अशोक चौधरी ने बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी से मिलकर बिहार की स्थिति पर चर्चा की है. सूत्रों का कहना है कि राजद से गठबंधन के हिमायती रहे चौधरी ने वर्तमान समय में राजद के साथ चुनावी गठबंधन के लिए केन्द्रीय नेतृत्व के सामने जोरदार वकालत की है.

वैसे चौधरी इस मसले पर खुलकर तो कुछ नहीं बोलते परंतु इतना जरूर कहते हैं कि अभी तक गठबंधन पर कोई विशेष चर्चा नहीं हुई है. उन्होंने बिहार में पार्टी की स्थिति पर चर्चा की है. अब अगर नेतृत्व गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने का निर्णय लेगा तो बिहार समिति उनके निर्णय के अनुसार तैयारी करेगी.

राजनीति के जानकार कहते हैं कि भाजपा विरोध के नाम पर कई दल एक साथ चुनाव मैदान में आ जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है. भाजपा से जद यूनाइटेड के अलग होने के बाद कहा जा रहा है कि जद यूनाइटेड कमजोर पड़ी है.

सूत्रों का कहना है कि भाकपा-माले कांग्रेस के साथ सीधे कोई गठबंधन नहीं करेगी. राजद और लोजपा के हिस्से में जो सीटें आएंगी उसी में से भाकपा-माले को सीट दी जाएगी.

आंकड़ों पर गौर करें तो यह तय माना जा रहा है कि कांग्रेस के मत में वृद्धि हुई है. बिहार विधानसभा 2005 के चुनाव में जहां कांग्रेस को करीब छह प्रतिशत मत मिले थे, वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बिहार में 10 प्रतिशत मत मिले थे जबकि राजद को 19 प्रतिशत मिले थे. ऐसे में कांग्रेस के थिंकटैंक का मानना है कि अगर दोनों दल मिलकर चुनाव मैदान में आए तो सीटों का फायदा मिलना तय है.

राजद भी जानती है कि अगर अल्पसंख्यक, यादव और पिछड़ों के मतों का बिखराव हो गया तो भाजपा को हराना मुश्किल हो जाएगा. राजद के एक नेता नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं की भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी एक दमदार नेता के रूप में मैदान में आए हैं. ऐसे में अगर अल्पसंख्यक मतों का बिखराव हो जाएगा तो भाजपा को हराना मुश्किल होगा.

वह कहते हैं कि जद यूनाइटेड कोई बड़ी चुनौती नहीं है. वैसे गठबंधन के विषय में वह कहते हैं कि राकांपा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. राकांपा केवल कटिहार सीट छोड़ने की बात कर रही है.

पिछले दिनों कई मामलों में जद यूनाइटेड और कांग्रेस के बीच भी नजदीकी बनी थी, परंतु इस दोस्ती को कोई ठोस आधार नहीं मिल पा रहा है. कांग्रेस के कुछ केन्द्रीय नेता जद यूनाइटेड के पक्ष में जरूर हैं परंतु बिहार इकाई बहुमत से इस दोस्ती को बेमेल मानती है. बहरहाल सभी राजनीतिक दल भाजपा के खिलाफ एकजुट दिखाई दे रहें हैं. यही बिहार का ताजा राजनीतिक गणित है. जिसमें लालू प्रसाद तथा नीतीश कुमार की मुख्य भूमिका रहेगी.

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