बदलते भारत में बदलती शिक्षा
मारियो नरोन्हा
1 फरवरी, 2017 को बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने दस लक्ष्यों को बजट में खास स्थान दिया.
युवाओं के लिए सर्वोत्तम शिक्षा, कौशल और रोजगार का प्रबंध करना इनमें से एक है. शिक्षा के संबध में चर्चा करते हुए वित्त मंत्री ने कहा- शिक्षा की गुणवत्ता हमारे युवाओं को सशक्त बनाएगी. उन्होंने स्वामी विवेकानंद का हवाला देते हुए कहा, ” वैसी शिक्षा जो जीवन के संघर्ष में मदद नहीं करती, जो चरित्र को न निखारे, समाजहित की भावना न लाए वो शिक्षा किस काम की? ”
मालुम हो कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) जल्द ही एक नई शिक्षा नीति (एनईपी) को धरातल पर लाने वाला है. वर्ष 1986 में देश में नई शिक्षा नीति बनाई गई थी जबकि 1992 में इसे संशोधित किया गया. इसी प्रकार साल 2002 मे सर्व शिक्षा अभियान चलाया गया लेकिन इन 15 सालों मे भारतीय शिक्षा पद्धति के रुप स्वरुप में काफी बदलाव आया है. उच्च शिक्षा में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश हैं. हालंकि वर्ष 2014-15 में उच्च शिक्षा की स्थिति 23.6 प्रतिशत कम रही है. जबकि 2017-18 में इस प्रतिशत को 25.2 प्रतिशत तक बढ़ाने तथा 2020-21 में 30 प्रतिशत तक आगे ले जाने का लक्ष्य रखा गया है. एक ओर ये लक्ष्य और दूसरी ओर ये भी सत्य है कि अशिक्षा के क्षेत्र में भारत लगातार वृद्धि कर रहा है. आंकड़े बताते हैं कि साल 2011 में 15-24 साल के युवाओं में अशिक्षा की दर 86.1 प्रतिशत से लेकर 69.3 प्रतिशत तक दर्ज की गई है. साल 2011 में 7 साल से अधिक आयु वाले लोगो की संख्या 282.6 मिलियन पाई गई है.
वैश्विक सतत विकास लक्ष्य 4 (एसडीजी 4) के अनुसार 2030 तक शिक्षा की गुणवत्ता को बनाने औऱ सभी के लिए बेहतर विकल्प बनाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री द्वारा “एक भारत श्रेष्ठ भारत राष्ट्रीय आविष्कार अभियान” तथा “पढ़े भारत बढ़े भारत” जैसी योजनाओं को लाया गया है.
बजट और गवर्नेंस की जवाबदेही के लिए केंद्र ने एक अध्ययन किया और “ How have states designed their school education budget? नामक एक किताब प्रकाशित की है. यह अध्ययन राज्यों के स्कूल के शिक्षा बजट के सत्यापन करने का एक प्रयास है. 2010 में शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत स्कूलों की मूलभूत सुविधाओं में सुधार लाया गया है. इस अध्ययन में यह पता चलता है कि सभी राज्यो ने शिक्षा के अधिकार के बाद अपने स्कूल की शिक्षा प्रणाली में कहां और किस हद तक सुधार लाया है.
अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने उच्च शिक्षा में सुधार का भी जिक्र किया जिसके अनुसार “उच्च शिक्षा में हम यूजीसी में सुधार करेंगे. गुणवत्ता वाले शिक्षण संस्थानों को अधिक प्रशासनिक और सक्षम बनाएंगे. कॉलेजों की पहचान मान्यता और रैंकिंग के आधार पर की जाएगी. परिणामस्वरूप मान्यता और क्रेडिट आधारित कार्यक्रमों के लिए एक संशोधित ढांचा तैयार किया जाएगा “.
उच्च शिक्षा के संबध में लोगो की राय जानने के लिए दिल्ली स्थित गैर सरकारी संगठन चरखा ने कुछ छात्रों से बात की. इस संबध में जम्मू विश्वविद्यालय के छात्र जफर कहते हैं कि “विश्वविद्यालय में एडमिशन के बारे पिछड़े क्षेत्रों में जागरूकता की कमी है. उनके पास जानकारी नहीं है कि कब प्रवेश परीक्षा आयोजित की जा रही है. हालांकि सरकार कई योजनाएं लाती है, लेकिन छात्रों को इन योजनाओं के बारे में सूचित करने का कोई रास्ता नहीं है. जम्मू जैसे क्षेत्र में कभी कभी सूचना इतनी देर से पहुंचती है कि छात्र उसके लाभ से वंचित रह जाते है”.
जम्मू विश्वविद्यालय में पढ़ रहे लद्दाख के सोनम कहते हैं, ” अपने दोस्तो समेत जम्मू मे पढ़ने में मुझे भी काफी परेशानी हो रही है. हमें किराया, ट्यूशन फीस और अन्य खर्चों का भुगतान करना मुश्किल लगता है. लद्दाख के बहुत सारे दोस्त जो आगे पढ़ना चाहते हैं, ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि वे इसका खर्च वहन नही कर सकते. उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ती है क्योंकि लद्दाख में कोई विश्वविद्यालय नहीं है और केवल एक ही कॉलेज है. यहां तक कि अगर आपको छात्रवृत्ति मिलती है तो यह मुश्किल है क्योंकि पहले पैसा खर्च करना पड़ता है और फिर रिफंड मिलता है. ”
दिल्ली स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन से पोस्ट ग्रजुएशन करने वाले गुजरात के कौसतव बाउल कहते हैं “जो छात्र उच्च शिक्षा के लिए अपने घर- परिवार को छोड़ते हैं, बाहर में उनके बजट अनुसार रहना और खाना के सही प्रबंध एक बड़ी समस्या है. साथ ही उच्च शिक्षा के लिए सही कॉलेज ढ़ुंढ़ना किसी चुनौती से कम नही. नई संस्कृति और नई भाषा को अपनाना भी काफी मुश्किल होता है”.
उच्च शिक्षा के संबध में दिल्ली स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन के डीन प्रोफेसर रामोला कुमार कहते है “छात्र अलग अलग पृष्ठभूमि से आते है और असंबंधित क्षेत्रों में कैरियर का विकल्प चुनते हैं. शिक्षक किसी भी छात्र के जीवन का मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन माता पिता और साथी सलाहकार को भी छात्र को सही रास्ता चुनने में सहायता करनी चाहिए. युवा दिमाग को उत्साहित करने, उन्हें अलग ढंग से सोचने के लिए प्रोत्साहित करना, छिपी प्रतिभा को बाहर लाने के लिए आवश्यक है”.
उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) 2014 की रिपोर्ट अनुसार – 15 संस्थानों को 3 व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है. विश्वविद्यालय, कॉलेज और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस जिसमें पता चला कि 760 विश्वविद्यालयों, 38,498 कॉलेजों और 12276 स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस हैं. सर्वोत्म 50 जिलों में लगभग 35% कॉलेज हैं. इनमें प्रति लाख आबादी पर कॉलेज पाए जाते हैं. 27.58 प्रतिशत कॉलेज ग्रामीण इलाकों में स्थित हैं.10.7% कॉलेज विशेष रूप से महिलाओं के लिए हैं. केवल 1.7% कॉलेजों ने पीएचडी तथा 33% कालेजों ने पोस्ट ग्रेजुएट कार्यक्रम चलाए. 41% कॉलेज हैं, जो केवल एक कार्यक्रम चलाते हैं, जिनमें से 81% निजी तौर पर प्रबंधित होते हैं. इनमें से 33% कॉलेज बीएड कार्यक्रम चलाते हैं. 19 .1% कॉलेजों में नामांकन 100 से कम है और केवल 4.4% कॉलेजों में 3,000 से अधिक नामांकन हैं. उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 34.2 मिलियन का अनुमान है, जिसमें 18.5 मिलियन लड़के और 15.7 मिलियन लड़कियां हैं.
एक ओर आंकड़ो की पारदर्शिता है तो दूसरी ओर सरकार का प्रयास जो यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है कि हर बच्चे को देश में उच्चतम शिक्षा प्राप्त हो. पर ऐसा लगता है कि सभी प्रयासों के बीच किसी बड़े अंतराल को जोड़ने की आवश्यकता है. निसंदेह छोटे कस्बे औऱ ग्रामीण भारत मे रहने वाले लोग ही शिक्षा में सबसे ज्यादा पिछड़े हैं. ऐसे में जब उच्च शिक्षा प्राप्त करने की बात आती है हम आशा करते हैं कि निकट भविष्य में शिक्षा को प्रत्येक क्षेत्र तक इस तरह पहुंचाया जाए कि किसी बच्चे को शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपने गांव या कस्बे को छोड़कर कहीं दूर न जाना पड़े बल्कि उसकी योग्यता अनुसार शिक्षण संस्था उसके इलाके में ही उपलब्ध हो ताकि “पढ़े भारत बढ़े भारत” का सपना जल्द साकार हो जाए.
(चरखा फीचर्स)