जेनेरिक-ब्रांडेड दवा का मायाजाल
बिलासपुर | जेके कर:
दवा उद्योग के मालिकान द्वारा अपने दवा के बारें में गर्व से डींग हांकी जाती है. मसलन हमारा दवा उच्च कोटि का है, इसलिये अच्छा असर करता है तथा इसे बड़े दवा निर्माण संयंत्र में बनाया जाता है. जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है. यहां तक की भारत में विदेशी दवा कंपनी जैसे नौल तथा भारत की बड़ी दवा कंपनिया सिपला, कैडिला, यूनिकेम, एल्केम, रैनबैक्शी तथा एँग्लो फ्रेंच तक अपनी दवा या तो कांट्रेट के तहत या लोन लाइसेंस से बनवाती है. जिसका अर्थ होता है कि इन दवाओँ को दवाओं का निर्माण करने वाली दूसरी कंपनियों के संयंत्र में बनवाया जाता है. फिर दावा किस आधार पर किया जाता है.
असल में दावा, उक्त दवा निर्माण करने वाली कंपनियों को मिले गुणवत्ता के आधार पर किया जाता है, जहां से कई अन्य मार्केटिंग करने वाली छोटी दवा कंपनिया भी करवाती हैं. इन दवाओँ का निर्माण करने वाली कंपनियों के पास निश्चित तौर पर राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार जीएमपी तथा आईएसओ का सर्टिफिकेट रहता है. इन दवा निर्माण करने वाली कंपनी के विशेषज्ञ तथा कर्मचारी अपनी ही कंपनी से पगार पाते हैं, मार्केटिंग करने वाली कंपनियों से नहीं.
इसी के साथ ब्रांडेड तथा जेनेरिक दवा का भ्रम भी दूर कर लेना चाहिये. जेनेरिक दवा उसे कहते हैं जो वैज्ञानिक या चिकित्सीय नाम से बेची जाती है. ब्रांड नेम दरअसल मार्केटिंग करने वाली कंपनी के नाम रजिस्टर्ड होता है. इस मार्केटिंग के चक्कर में दवाओँ के दाम आसमान छूने लगते है यह दिगर बात है. इस बात की पूरी संभावना है कि भारत में बिकने वाली जेनेरिक तथा ब्रांडेड दवा एक ही कंपनी से बनाये गये हो.
इस कारण से सरकारी अस्पतालों में मिलने वाले जेनेरिक दवा को गुणवत्ता के आधार पर खारिज़ नहीं किया जा सकता है.
जेनेरिक तथा ब्रांडेड का फर्क पेंटेट अधिकार के आधार पर किया जाता है. जिस दवा को उसके उसके पेटेंट धारक द्वारा बेचा जाता है उसे ब्रांड नेम से बेचा जाता है. जिस दवा को पेंटेट धारक के अलावा अन्य के द्वारा बेचा जाता है उसे विदेशों में जेनेरिक कहा जाता है. हमारे देश के पेंटेट कानून के अनुसार रॉयल्टी देकर कोई दूसरी दवा कंपनी भी उसे बेचती है या दवा का पेंटेट अधिकार का समय समाप्त हो जाने के बाद कोई भी इसे अपने ब्रांड नेम से बेच सकता है.
वर्तमान में हमारे देश में बिकने वाली ज्यादातर दवाओँ का पेंटेट समाप्त हो चुका है. मसलन विदेशी दवा कंपनी बायर का एंटीबायोटिक सिप्रोफ्लॉक्सासिन से पेटेंट अधिकार साल 2003 में समाप्त हो गया है. इसी कंपनी को रक्त को पतला करने वाली दवा एस्प्रिन का पेटेंट अधिकार 1899 में मिला था जिसे खत्म हुये 100 से भी ज्यादा साल बीत चुके हैं.
अब हम मूल मुद्दे पर आते हैं कि किस तरह से हमारे देश में जेनेरिक-ब्रांडेड का अलावा छोटी-बड़ी दवा कंपनी के नाम पर भरमाया जाता है.
उदाहरण 1- मेस्कोट हेल्थ सीरिज-
यह कंपनी Aar ess remedies, Knoll, Akumentis pharma, Koye pharma, Aliniche, Mabric health care, Alna, Macleods, Anglo french, Makers(ipca), Biomax, Neiss lab, Biophar life science, Nukind, Bmw pharmaco, Percos, Cadila, Prochem, Cmr life science, Sigma, Comed, Solumed, Concept, Systemic health care, Frogen, Uniphar, Growmax, Vivid biotech, Grownburry, Zenact pharma, Hetro, Zota health care, Indoco, Zunsion health care आदि के लिये दवायें बनाती हैं. इस कंपनी का पता है- Mascot Health Series Pvt. Ltd.
75,76,77, LSC, DDA Market,
J Block, Vikaspuri, Delhi 110018
E-mail: info@mascothealth.com
उदाहरण 2- हेल्थ बॉयोटेक लिमिटेड-
यह कंपनी Cipla Limited, Cadila Limited, Lupin Limited, Wockhardt Limited, Zydus Cadila [German Remedies], Hetero Drugs Limited, Unichem Laboratories, Lyka Labs Limited, Sanat Products Limited [Dabur Group], Cachet Pharma [Alkem Group], Ajanta Pharma , Ind Swift Limited, Vhb Lifesciences, Medlay Pharma, Syncom Health Care Limited, Biochem Pharma, Elder Pharmaceuticals Limited, Cytogen Pharma, Unichem Laboratories, Claris Life Sciences Limited, TTK Health Care Limited, Flamingo, Ajanta Pharma Ltd., Molekule, Galpha, Human Pharmacia, Intas Pharmaceutical, Mancure Drugs आदि के लिये दवा बनाती हैं. इस कंपनी का पता है- Health Biotech Limited.
Contact Person : Mr. Gaurav Chawla
S. C. O. 162-164, Indian Airlines Building, Top Floor, Sector- 34 – A, Chandigarh (160022) India.
उदाहरण 3- ईस्ट अफ्रीकन ओवरसीज-
यह कंपनी Cipla, Alkem, Abbott, Wockhardt, Glenmark, Ranbaxy, Unichem, Ajanta Pharma, Makers, Gulpha, Anglo French, Cadila, Zydus Cadila आदि के लिये दवा बनाती हैं. इसका पता है- General Manager
Email: ggn@earindia.com
Address: 120 Suncity Business Tower
Sector-54, Gurgaon (Haryana).
उपरोक्त उदाहरणों से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वास्तव में दवा कंपनियां दवा एक ही स्थान से बनवाकर अलग-अलग दामों पर बेचती हैं. हां, इतना जरूर है कि मार्केटिंग करने वाली कंपनियों के पास अपना खुद का ड्रग लाइसेंस होता है जिसके आधार पर दवा बनवाई जाती है. कहने का मतलब है एक ही शराब अलग-अलग बोतलों में भर कर बेचे जाने जैसा है. फर्क यदि कहीं होता है तो अग्रेसिव मार्केटिंग का होता है जिसकी योजनायें बड़े-बड़े होटलों के ठंडे कमरों में बनाई जाती है. इसका खर्च भी मरीजों से वसूल लिया जाता है.