पास-पड़ोस

बिहार में सूखा : टलने लगी शादी की तारीखें

पटना | एजेंसी: बिहार के अधिकांश गांवों में किसानों के घरों में धान-चावल रखने के लिए बनाए गए कोठी के मुंह को मिट्टी से पाट दिया गया है. इसमें अब अनाज रखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. जब फसल तैयार होती है तब गांवों के खेतों में धूल उड़ रहा है.

औरंगाबाद जिले के टंडवा थाना क्षेत्र के किसान मनोज तिवारी को अब यह भय सता रहा है कि उनकी पुत्री की शादी की तारीख कहीं टल न जाए. अगहनी फसलों के बाद लड़के वालों ने तारीख देने का वादा किया था, लेकिन अब उन्हें अपनी माली हालत के कारण लड़के वालों के पास जाने की हिम्मत नहीं हो रही है.

यही हाल है पांच नदियों से सिंचित होने वाले वैशाली जिले का है. कहने को तो इस जिले में गंगा और गंडक के अलावे झाझा, नून और बाया तीन बरसाती नदियां भी हैं लेकिन यहां के खेत सूखे हुए हैं.

महुआ प्रखंड के किसान मनोहर सिंह को उनके पुत्रों ने धान की खेती के बजाय सब्जी की खेती करने की सलाह दी थी परंतु वह नहीं माने थे. उनके खेत में धान नहीं रोपा जा सका है. अब उन्हें चिन्ता सता रही है कि उनकी पुत्री का ब्याह कैसे होगा. उन्होंने कहा, “पिछले वर्ष अच्छी खेती से कुछ रुपए आए थे तब सोचा था कि अगले वर्ष और कुछ पैसा बचाकर पुत्री का ब्याह कर दूंगा लेकिन अब तो ब्याह की कौन कहे जमा पूंजी से ही घर खर्च चलाना होगा.”

ऐसा ही हाल पूरनटांड़ गांव के निर्मल राय का है. इन्हें भी विश्वास था कि इस वर्ष वह अपनी एकमात्र पुत्री के हाथ पीले कर निश्चिंत हो जाएंगे, लेकिन अब उन्हें भी मानसून की मार के कारण डर सता रहा है कि वह भी इतना बड़ा कार्य कैसे निपटा पाएंगे?

गया के मानपुर प्रखंड के यमुनापुर गांव के किसान भुवनेश्वर यादव की भी यही कहानी है. धान की उपज दोगुना करने वाले श्री विधि तकनीक के जनक माने जाने वाले गया जिले के लोग अब फसल की आशा छोड़ अन्य कामों की तलाश में जुट गए हैं. भुवनेश्वर अब अपने परिवार को दो जून की रोटी जुटाने के लिए गया के एक निजी विद्यालय में चपरासी बन चुके हैं.

बिहार के अधिकांश जिलों में किसानों की यही स्थिति है. किसान खेतों में लगी फसल का भरोसा छोड़ चुके हैं. राज्य सरकार पर भी उन्हें भरोसा नहीं है. राज्य सरकार ने 38 जिलों में से भले ही 33 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया है, लेकिन गांवों में अब तक कुछ विशेष नहीं किया जा रहा है.

बिहार में सूखे की स्थिति का जायजा लेने के लिए केंद्रीय टीम तीन अक्टूबर को बिहार पहुंचने वाली है. सरकार इस टीम के भरोसे है कि जब यह टीम केंद्र सरकार को रिपोर्ट देगी तब केंद्र सरकार मदद देगी.

बिहार आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय टीम बिहार के सूखाग्रस्त जिलों का दौरा कर स्थिति का जायजा लेगी और और केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी. इसी रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय सहायता मिलने की संभावना है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलकर सूखे से निपटने के लिए 12,000 करोड़ रुपये की मांग की थी तथा सूखे का जायजा लेने के लिए एक केंद्रीय टीम बिहार भेजने का आग्रह किया था. ऐसी स्थिति में किसान सरकार पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं. किसान का कहना है कि जब फसल समाप्त ही हो जाएगा तो सरकार मदद देकर क्या करेगी?

राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव ब्यास जी भी मानते हैं कि बारिश की कमी के कारण राज्य में खरीफ की रोपनी की स्थिति काफी खराब हुई है, अब तक 88 प्रतिशत ही रोपनी हुई है. राज्य में एक जून से लेकर 11 सितंबर तक 668़ 6 मिलीमीटर बारिश हुई है जो औसत से 223. 6 मिलीमीटर कम है. बारिश की कमी की वजह से भूमिगत जलस्तरों में भी गिरावट आई है.

बिहार में मानसून की बेरुखी कोई नई बात नहीं है. वर्ष 2009 में 26 और 2010 में 28 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था.

error: Content is protected !!