डीएमएफ: छत्तीसगढ़ में इस पैसे से बना दिया हवाई अड्डा
रायपुर | संवाददाता: क्या आप यकीन करेंगे कि खदान प्रभावितों पर खर्च करने के बजाए, डीएमएफ फंड का पैसा छत्तीसगढ़ में हवाई अड्डा बनाने में खर्च कर दिया गया? छत्तीसगढ़ में भले डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन यानी डीएमएफ में गड़बड़ी के नाम पर ईडी ने दो अफ़सरों की गिरफ़्तारी की हो लेकिन सच तो यही है कि कोरबा में पिछले नौ सालों में डीएमएफ के करोड़ों रुपये पानी की तरह फूंक दिए गए हैं.
मोदी सरकार ने मार्च 2015 में खान और खनिज क़ानून में संशोधन करते हुए डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन यानी डीएमएफ की स्थापना की गई थी.
इसका उद्देश्य खनन कंपनियों के पैसे से, खनन प्रभावित लोगों और खनन प्रभावित क्षेत्रों के हित और लाभ के लिए काम करना था.
लेकिन खनन कंपनियों से मिलने वाले पैसे को किस इलाके में खर्च करना है, इसे लेकर सबने अपने-अपने तरीके से नियम बना लिए.
छत्तीसगढ़ में कोरबा ज़िले ने जहां खदान से केवल तीन किलोमीटर के दायरे को ही खदान प्रभावित क्षेत्र के तौर पर चिन्हांकित किया, वहीं रायगढ़ ज़िले ने यह दायरा 10 किलोमीटर रखा.
छत्तीसगढ़ में अंधों का हाथी बना डीएमएफ
छत्तीसगढ़ में डीएमएफ अंधों की हाथी की तरह था. जिसकी जैसी मर्जी हुई, उसने उसी तरह से डीएमएफ को देखा, समझा और मनमाने तरीक़े से उसका उपयोग किया.
इसे केवल एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि अलग-अलग ज़िले ने डीएमएफ ट्रस्ट को मनमाने तरीके से पंजीकृत किया.
दंतेवाड़ा ज़िले में डीएमएफ को भारतीय पंजीकरण अधिनियम (1908) के तहत पंजीकृत करवाया गया, वहीं बलौदा बाज़ार ज़िले में सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम (1952) के तहत डीएमएफ को पंजीकृत कराया गया.
जांजगीर-चांपा ज़िले में भी इसे छत्तीसगढ़ सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम (1952) के अंतर्गत पंजीकृत कराया गया तो कोरबा ज़िले में दो क़दम आगे बढ़ कर इसे भारतीय स्टाम्प अधिनियम (1899) के तहत पंजीकृत किया गया.
जैसी मर्जी, वैसा खर्च
डीएमएफ का उद्देश्य तो खनन प्रभावितों का विकास था. लेकिन खदान प्रभावितों का कितना भला हुआ, इस पर आज भी बहस जारी है.
तत्कालीन रमन सिंह की सरकार ने खनन प्रभावितों के दायरे से बाहर जा कर खर्च करने के लिए छत्तीसगढ़ में, जून 2016 में राज्य डीएमएफ नियमों में संशोधन किया गया, जिसने लोक कल्याण को उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में रखा, जिससे राज्य सरकार को यह निर्देश देने अधिकार मिल गया कि इसके तहत क्या किया जा सकता है.
राज्य सरकार ने इसके बाद, सभी जिलों को अपने डीएमएफ फंड का एक हिस्सा प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना पर खर्च करने का निर्देश दिया गया, जो केंद्र सरकार की एक प्रमुख योजना है.
रमन सिंह के अंतिम कार्यकाल में कोरबा ज़िले में डीएमएफ में 887 करोड़ रुपये स्वीकृत था और इस फंड का 46 फ़ीसदी केवल कोरबा शहर में मल्टी-लेवल पार्किंग, टाउन कंवेंशन सेंटर, बस स्टैंड और सौंदर्यीकरण में खर्च कर दिया गया.
सीएसई की एक रिपोर्ट बताती है कि 75 फ़ीसदी ग्रामीण आबादी को छोड़ कर, 25 फ़ीसदी शहरी आबादी पर डीएमएफ की 46 फ़ीसदी रक़म खर्च कर दी गई.
हवाई अड्डा और मल्टी लेवल पार्किंग
रमन सिंह के कार्यकाल में खदान प्रभावित इलाके के लोगों को परिवहन सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर, कोरबा और कोरिया ज़िले के डीएमएफ फंड के कई करोड़ रुपये बिलासपुर में हवाई अड्डा बनाने के लिए दे दिया गया.
कोरबा में मल्टी-लेवल पार्किंग लॉट और कन्वेंशन सेंटर बनाने के लिए डीएमएफ फंड के 43 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए.
राज्य में डीएमएफ की राशि से स्वीमिंग पूल तक बना दिया गया.
दिसंबर 2018 में सत्ता में आते ही भूपेश बघेल सरकार ने डीएमएफ के खर्च पर रोक लगा दी. प्रभारी मंत्री की जगह कलेक्टरों को अध्यक्ष बना दिया गया.
लेकिन इसके बाद जब खर्च का सिलसिला शुरु हुआ, तो उसने भ्रष्टाचार की नई मिसाल कायम की.
विधानसभा में कई बार सवाल उठा कि जांजगीर चांपा में कोरोना काल में प्रशिक्षण के नाम पर 16.21 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए. दो वित्तीय वर्ष में केवल प्रशिक्षण के नाम पर 23 करोड़ खर्च हो गए. इसी ज़िले में युवा उत्सव में 30 लाख रुपये फूंक दिए गए. कई करोड़ रुपये जांजगीर शहर में सौंदर्यीकरण के नाम पर खर्च हो गए. सिंगल कोटेशन के आधार पर आठ करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया.
तब के कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मोहन मरकाम ने अपनी ही सरकार को डीएमएफ में भ्रष्टाचार को लेकर विधानसभा के भीतर कई अवसरों पर घेरा. सरकार की इस मुद्दे पर ख़ूब थुक्का-फ़ज़ीहती हुई. लेकिन डीएमएफ में मनमानी चलता रहा.
सामाजिक कार्यकर्ता रमेश कुमार शर्मा कहते हैं-“ईडी को अगर जांच करनी है तो 2015 से डीएमएफ फंड की गड़बड़ियों की जांच करे तब तो बात बनेगी. संगठित और मनमाने तरीके से लूट कैसे होती है, यह बात साफ होगी.”