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डिसइंफेक्शन टनल पर भरोसा खतरनाक

रायपुर | संवाददाता : विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी और भारत में कई राज्यों की सख्ती के बाद भी छत्तीसगढ़ में कोरोना के संक्रमण से बचने के लिये कथित ‘डिसइंफेक्शन टनल’ या ‘सेनेटाइजिंग टनल’ का चलन शुरु हो गया है. राज्य के कई हिस्सों में इस तरह के डिसइंफेक्शन टनल को कोरोना के ख़िलाफ़ रामबाण की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है.

राज्य के वरिष्ठ मंत्री शिव डहेरिया ने कल ही अपने घर पर इसी तरह का डिसइंफेक्शन टनल लगवाया है और इसकी उपयोगिता भी मीडिया को बताई. रायपुर समेत कई शहरों की सब्जी मंडियों से लेकर औद्योगिक इलाकों में भी इसी तरह के लाखों रुपये खर्च करके डिसइंफेक्शन टनल लगाये गये हैं.

दिलचस्प ये है कि उत्तराखंड, तमिलनाडु, चेन्नई जैसे राज्यों ने इस तरह के डिसइंफेक्शन टनल नहीं लगाये जाने को लेकर साफ और सख्त निर्देश पहले ही जारी किये हैं. इन राज्यों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी को आधार बना कर हर ज़िले में इस डिसइंफेक्शन टनल को लेकर सख्ती के निर्देश दिये हैं.


राज्य सरकारों का कहना है कि डिसइंफेक्शन टनल से नुकसान हो सकता है. टनल में से गुजरने से कोरोना वायरस खत्म नहीं होता. यह सिर्फ एक दिलासा है. इससे गुजरने के बाद लोगों को लगता है कि वे कोरोनावायरस से सुरक्षित हैं और वे लापरवाही शुरू कर देते हैं. इससे संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है. इसके अलावा साबुन से हाथ धोने, मास्क पहनने और वायरस के प्रति अतिरिक्त सावधानी बरतने के प्रति भी यह टनल लापरवाह कर देता है.

तमिलनाडु सरकार के डायरेक्टर ऑफ पब्लिक हेल्थ की तरफ राज्य के शीर्ष अधिकारियों को भेजे गये निर्देश में कहा गया है कि डिसइंफेक्शन टनल लोगों में एक झूठा दिलासा पैदा करेगी कि अब वो वायरस से पूरी तरह सुरक्षित हैं. मुमकिन है कि इसके बाद लोग हैंडवॉश जैसी बेसिक चीजों को भी नज़रअंदाज़ करने लगें. साथ ही एल्कोहल/क्लोरीन/लाइजॉल जैसी चीजों का इंसानों पर छिड़काव न सिर्फ नुकसान पहुंचाने वाली चीज़ है, बल्कि इससे कोई बचाव भी नहीं होता. इन बातों को ध्यान रखते हुए डिसइंफेक्शन टनल को न तो इंस्टॉल करना चाहिए, न ही इसका इस्तेमाल करना चाहिए.

विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के टनल से गुजरने वालों पर सोडियम हाइपोक्लोराइट सॉल्यूशन का छिड़काव किया जाता है, जो त्वचा और आंखों के लिये खतरनाक हो सकता है.

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