दिग्विजय समर्थक आलाकमान के खिलाफ जुटे
भोपाल | एजेंसी: मध्य प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर चले गए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के समर्थकों के सब्र का बांध टूटने लगा है, यही कारण है कि लोकसभा चुनाव के लिए हुए टिकट वितरण को लेकर विरोध के स्वर जोर मारने लगे हैं. कई नेता तो आलाकमान पर ही परोक्ष रूप से प्रहार करने से नहीं चूक रहे हैं.
राज्य में कांग्रेस की राजनीति पिछले दो दशकों से दिग्विजय के ईद-गिर्द ही घूमती रही है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी हार के बाद उनके प्रभाव को कम करने की मुहिम चल पड़ी और हार के लिए दिग्विजय की रणनीति को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा. अब इस मुहिम का असर नजर आने लगा है.
विधानसभा चुनाव के बाद दिग्विजय की न केवल राज्य की राजनीति में सक्रियता कम हुई है, बल्कि उनके विरोधी गुटों से नाता रखने वालों को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव व नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे को बनाया गया है. यहीं से दिग्विजय समर्थकों व विरोधियों में दूरियां और बढ़ने लगीं.
लोकसभा चुनाव के लिए राज्य की 29 सीटों में से कांग्रेस ने 22 उम्मीदवारों की सूची जारी की, जिसमें दिग्जिवय समर्थक माने जाने वाले भागीरथ प्रसाद को भिंड से उम्मीदवार बनाया गया, मगर उन्होंने पार्टी को गच्चा देते हुए भाजपा का दामन थाम लिया. इसके बाद तो दिग्विजय समर्थकों के स्वर और तल्ख होने लगे हैं बल्कि उन्होंने टिकट वितरण पर ही सवाल उठाना शुरू कर दिए.
भोपाल से विधायक आरिफ अकील ने तो टिकट वितरण में अल्पसंख्यकों की उपेक्षा और एक समाज विशेष (ब्राह्मण) को खुश करने की कोशिश करार दे डाला. साथ ही उन्होंने भोपाल से बनाए गए उम्मीदवार पर भी सवाल उठा डाले.
अकील का साथ दिग्विजय के बड़े समर्थक पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी दिया और कहा कि भोपाल से अल्पसंख्यक को उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए था. वह यहीं नहीं रुके, बल्कि अपनी उम्मीदवारी का भी फैसला करते हुए कहा कि वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनकी इच्छा सीधी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की थी, अब अन्य किसी स्थान से चुनाव नहीं लड़ेंगे.
दिग्विजय के एक अन्य भिंड के लहार विधानसभा क्षेत्र से विधायक डा. गोविंद सिंह के भी तेवर सख्त हैं और उन्होंने नेता प्रतिपक्ष सत्येदव कटारे पर कई बार निशाना साधा है. अब वह मुरैना से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, मगर अभी तक फैसला नहीं हो पाया है. इस बीच डा. सिंह के भाजपा के संपर्क में भी होने की चर्चा है.
डा. भागीरथ प्रसाद के भाजपा में शामिल होने के बाद सरकार के प्रवक्ता डा. नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि कांग्रेस के एक दर्जन नेता भाजपा के दरवाजे पर खड़े हैं, अगर संगठन अनुमति दे तो उन्हें भी भाजपा में शामिल करने में देरी नहीं लगेगी.
दिग्विजय समर्थकों के तल्ख होते तेवर और भाजपा के नेताओं से बढ़ते संपर्क ने कांग्रेस की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. वहीं कांग्रेस के जानकारों का कहना है कि दिग्विजय अपने भाई लक्ष्मण सिंह को लोकसभा का टिकट दिलाना चाहते हैं और आलाकमान आसानी से तैयार नहीं हो रहा है, इस स्थिति में दिग्विजय समर्थकों ने आलाकमान पर दवाब की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है.
राज्य में दिग्विजय समर्थकों की संख्या और ताकत को नकारा नहीं जा सकता, वहीं विरोधी गुट भी कमजोर नहीं है. आलाकमान के दबाव की राजनीति के प्रभाव में आने और उसे अनदेखा करने दोनों ही स्थितियों में लोकसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान होने वाले की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता.