जेल में बंद पत्रकार के साथ मारपीट
नई दिल्ली | संवाददाता: छत्तीसगढ़ की जेल में बंद पत्रकार पत्रकार संतोष यादव के साथ मारपीट का आरोप लगाया गया है. मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसकी सरकार द्वारा जांच की मांग की है. गौरतलब है कि पत्रकार संतोष यादव को 29 सितम्बर 2015 को गिरफ्तार किया गया था. संतोष यादव पर छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम और गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया था. एमनेस्टी इंटरनेशनल का दावा है कि दोनों ही अधिनियम अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून एवं मानकों का उल्लंघन करते हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने मंगलवार को जारी एक विज्ञप्ति में मांग की है कि छत्तीसगढ़ सरकार को जगदलपुर केन्द्रीय कारागृह में बंद पत्रकार संतोष यादव सहित 8 कैदियों के साथ हुई मारपीट की स्वतंत्र रूप से जांच करनी चाहिए.
Chhattisgarh: Detained journalist beaten for protest in prison
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने आरोप लगाया है कि 2 नवम्बर को कैदियों द्वारा जेल में परोसे गये खाने की गुणवत्ता के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध करने के पश्चात राज्य पुलिस द्वारा कैदियों को डंडे से पीटा गया. अगले दिन पुलिस द्वारा कैदियों के खिलाफ ‘दंगा भड़काने’, ‘लोक सेवकों के सार्वजनिक कार्यों के निर्वाहन में दखल देने’ और ‘लोक सेवकों को उनके सार्वजनिक कर्तव्यों के निर्वाह से रोकने के लिए बल प्रयोग अथवा हमला करने’ जैसे विभिन्न अपराधिक मामले दर्ज किये गये. संतोष यादव के रिश्तेदारों ने कहा कि घटना के बाद से उन्हें संतोष यादव से मिलने तक की अनुमति नहीं दी गयी है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया प्रवक्ता मेकपीस सित्लो ने कहा, “कैदियों को शांतिपूर्वक विरोध करने का अधिकार है और छत्तीसगढ़ पुलिस को उनके इस अधिकार का सम्मान करना चाहिए और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अनावश्यक बल प्रयोग के आरोपों की जांच सुनिश्चित करनी चाहिए.”
संतोष यादव के भाई जितेन्द्र यादव ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया को बताया कि संतोष ने 4 नवम्बर को जगदलपुर अस्पताल से उन्हें फोन किया था जहाँ डॉक्टरों द्वारा उनका परीक्षण किया जा रहा था.
|| जितेन्द्र यादव ने बताया कि, “उसे पुलिस द्वारा बुरी तरह से पीटा गया है. उसकी पत्नी और मैंने उससे अलग से मिलने का प्रयास किया लेकिन जेल अथॉरिटी द्वारा हमारी प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया.” ||
कोतवाली पुलिस स्टेशन, जहाँ कैदियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, में तैनात एक पुलिस अधिकारी के कहा, “कैदियों की कुछ मांगें थी जिसके लिए वे केवल वरिष्ठ अधिकारियों से ही बात करने को तैयार थे, जेल अथॉरिटी से नहीं. पुलिस को उन्हें वापस सेल में बंद करने के लिए मजबूरन बल का प्रयोग करना पड़ा. बल का प्रयोग केवल जरूरत के हिसाब से किया गया.”
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया का कहना है कि कई बार प्रयास करने के बाद भी कारागृह अधीक्षक से इस पर वे बयान नहीं ले पाये. 11 नवम्बर को संतोष यादव को उनके घर से लगभग 192 किलोमीटर दूर कानकेर जिला कारागृह भेज दिया गया.
गौरतलब है कि संतोष यादव के खिलाफ 21 अगस्त 2015 को माओवादी सशस्त्र समूहों द्वारा सुरक्षा बलों पर हुए हमलें में शामिल होने का आरोप है.
पत्रकार संतोष यादव के खिलाफ मामला मुख्य रूप से एक पुलिस अधिकारी की गवाही पर टिकी हुई है, जिसने बयान दिया था कि उसने रात के अंधेरे में फलैरे के प्रकाश में सौ से अधिक माओवादी लड़ाकुओं के बीच संतोष यादव की पहचान करी थी. उसके बाद पहचान परेड के दौरान पुलिस संतोष यादव की निश्चित तौर से पहचान नहीं कर पाए. एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया का कहना है कि घटना की एफआईआर में दोषी लोगों की सूची में संतोष यादव का नाम दर्ज नहीं है. राज्य पुलिस ने उनके पास से बरामद लाल और हरे रंग के कपड़े तथा अन्य कुछ सामग्रियों को ‘सबूत’ के तौर पर पेश करके़ उनके माओवादी होने का दावा किया है.
बयान में कहा गया है कि संतोष यादव को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के स्थानीय आदीवासी समुदाय के लिए किये गये उनके कार्यों के लिए निशाना बनाया जा रहा है, और उनके खिलाफ मनगढ़ंत आरोप लगाये गये हैं. पत्रकार के परिवार ने इससे पहले आरोप लगाया था कि उसे 30 नवम्बर 2015 को हिरासत में प्रताड़ित किया गया था.
संतोष यादव ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया को अगस्त 2016 में बताया था कि उन्हें जेल में एक कैदी द्वारा जान के मारने की धमकी भी दी गई थी. उनके वकील ने यह भी आरोप लगाया है कि जून 2015 में उन्हें राज्य पुलिस द्वारा निर्वस्त्र करके अपमानित किया गया था. संतोष यादव की जमानत याचिका दो बार खारिज की जा चुकी है. एक दूसरी याचिका उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है. 17 अक्टूबर 2016 को न्यायालय ने छत्तीसगढ़ राज्य सरकार से जमानत याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा था.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया प्रवक्ता मेकपीस सित्लो ने कहा, “संतोष यादव को तुंरत रिहा किया जाना चाहिए और उनके खिलाफ दर्ज सभी आरोप खारिज कर देने चाहिए. कैदियों द्वारा मात्र जेल की परिस्थितियों का विरोध करने पर उनके खिलाफ आरोप दर्ज करना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है.”
उल्लेखनीय है कि नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने 2014 रिपोर्ट में कहा था कि छत्तीसगढ़ सरकार कैदियों को शौचालय एवं साफ-सुथरा वातावरण उपलब्ध कराने में असफल साबित हुई है. छत्तीगढ़ में भारत के सबसे ज्यादा भरे कैदखाने हैं. मानवाधिकार वकीलों के एक समूह, ‘जगदलपुर लीगल ऐड ग्रुप’ द्वारा की गई जांच से पता चलता है कि 2013 में जगदलपुर केन्द्रीय कारागृह में कैदी निवास दर 260 प्रतिशत थी.