वैद्यनाथ धाम में उमड़ रही शिवभक्तों की भीड़
देवघर | एजेंसी: झारखंड में देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम (बाबाधाम) सावन भर कांवड़ियों से भरा रहता है. खासकर हर सोमवार को यहां कांवड़ियों की संख्या हजार नहीं, लाखों तक पहुंच जाती है. वजह यह है कि द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक बाबाधाम देश के प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थलों में अत्यंत महत्वपूर्ण है.
हिंदू धर्म के ग्रंथों शिव पुराण और वैद्यनाथ महात्म्य में वर्णित तथ्यों के अनुसार, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिग को गंगाजल और बिल्वपत्र अर्पण करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें अभिष्ट की प्राप्ति होती है.
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिग और गंगाजल का अन्योन्याश्रय संबंध है. वैद्यनाथ धाम आने वाले कांवड़िये बिहार के सुल्तानगंज में बह रही उत्तरवाहिनी गंगा से जल भरकर करीब 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते हैं और ज्योतिर्लिग पर जलार्पण करते हैं.
सुल्तानगंज से वैद्यनाथ धाम तक का रास्ता पहाड़ियों और जंगलों के बीच से होकर गुजरता है जो अत्यंत दुर्गम है. इन कठिन राहों पर चलते हुए कांवड़िये ‘बोल बम’ का नारा लगाते हुए चलते हैं. डाक कांवड़ लेकर चलने वाले शिवभक्त अपने कांवड़ को रास्ते में कहीं जमीन पर नहीं रखते. उनकी यह साधना बहुत ही कठिन होती है.
वैद्यनाथ मंदिर के आसपास की गलियों में सावन भर मेला लगा रहता है है. भीड़ इतनी की कहीं भी तिल रखने तक की जगह नहीं रहती.
वैद्यनाथ मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. यह शिव मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिग में सर्वाधिक महिमामंडित है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने किया था.
वैद्यनाथ धाम की एक विशेषता यह है कि यह मंदिर एक ही पत्थर से निर्मित है जो भव्य, विशाल और मनमोहक है. यह मंदिर कब और किसने बनवाया, यह गंभीर शोध का विषय है.
मंदिर के मध्य प्रांगण में शिव का भव्य 72 फीट ऊंचे मंदिर के अलावा प्रांगण में अन्य 22 मंदिर स्थापित हैं. मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल सिंह दरवाजा है.
लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा जी ने करवाया था. पंडित कामेश्वर मिश्र के मुताबिक, पुराणों में उल्लेख है कि हिमालय से शिवलिंग को उठाकर लंका ले जाते समय रावण ने यहीं शिवलिंग को धरती पर रखा था, जिसे फिर वह उठाकर ले न जा सका. उसके चले जाने के बाद भगवान विष्णु स्वयं इस शिवलिंग के दर्शन के लिए यहां पधारे थे.
प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने यहां आकर शिव की षोडषोपचार पूजा की थी. तब शिव ने विष्णु से यहां एक मंदिर निर्माण की बात कही थी. विष्णु के आदेश पर भगवान विश्वकर्मा ने इस मंदिर का निर्माण किया था.
मंदिर निर्माण को लेकर इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं में काफी मतभिन्नता है. कुछ इतिहासकार इसे पालकालीन मानते हैं तो कई इसे गुप्तकालीन बताते हैं. कुछ पुरातत्ववेत्ता इस रावणेश्वर मंदिर का निर्माण इंडो-आर्य कला का खूबसूरत उदाहरण बताते हैं.