बैकफायर करेगा मास्टरस्ट्रोक?
नई दिल्ली | बीबीसी: भारत में 500 और 1000 के नोटों को वापस लिए जाने के बाद जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को आश्वस्त किया है कि आने वाले वक्त में इसका सकारात्मक असर पड़ने वाला है. हालांकि अर्थशास्त्रियों की इस मामले में राय बंटी हुई है.
मोदी सरकार के फैसले से कुल करेंसी के 80 फ़ीसदी नोट वापस होंगे. ऐसे में आर्थिक मामलों से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने इतना बड़ा फ़ैसला बिना कोई ठोस तैयारी के रातोंरात ले लिया. अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या इतने बड़े फैसले का असर कालेधन को नष्ट करने में होगा? आइए हम इसे आर्थिक मामलों को समझने वाले विशेषज्ञों से जानते हैं-
अजित रनाडे, आर्थिक विश्लेषक
यह बहुत बड़ा फ़ैसला है क्योंकि लगभग 50 अरब नोटों का वितरण होना है. इसमें कम से कम दो हफ्ते लग सकते हैं. इस दौरान एक व्यक्ति को दी जाने वाली राशि भी सीमित कर दी गई है. थोड़े दिन लोगों को परेशानी होगी. लंबी कतारों में अभी और खड़े रहना रहना होगा. छोटे उद्योगों के साथ लेनदेन में समस्या आएगी. सरकार लोगों से कार्ड इस्तेमाल और ऑनलाइन बैंकिंग की अपील कर रही है.
काले धन की समस्या बहुत गहरी है. यह चुनाव का मुद्दा है. नोटों को रद्द करने की चर्चा भी पुरानी है. यह रातोंरात किया जाएगा ऐसा किसी ने नहीं सोचा था. इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था में यह एक जोख़िम भरा कदम है. जिनके पास काला धन है उनका बहुत नुकसान होगा. लगभग 30 प्रतिशत जो पुराने नोट हैं वे कालेधन वालों के हैं. शायद इसका पूरा का पूरा विनाश होगा.
जो काला धन है वो ह्मेशा काला नहीं रहता है वो सफेद भी होता है. काले धन का भी अर्थव्यवस्था में योगदान होता है. आने वाले वक्त में इकोनॉमी में इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है. हालांकि बैंकों में डिपॉजिट बढ़ेगा. इसे इन्फ्लेशन कम होगा. लंबे समय के लिए यह पॉज़िटिव होगा. जो टैक्स से बच रहे थे वो आने वाले वक्त में इसके दायरे में होंगे. ऐसे में टैक्स का दायरा बढ़ेगा. इससे जनकल्याणकारी योजनाओं को बल मिलेगा. लोगों के मन में विश्वास होगा कि भ्रष्टाचार का स्केल कम हो रहा है और सरकार पर पब्लिक का भरोसा बढ़ेगा. इससे देश के भीतर काले धन में कमी आएगी. दिसंबर तक एक और धमाकेदार घोषणा हो सकती है.
मोहन गुरूस्वामी, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ
दिसंबर तक नोटों की कमी रहेगी. पांच दिनों के बाद अभी तक केवल 250 करोड़ ही 500 के नोट छपे हैं. 100-50 के नोट बहुत कम तादाद में हैं. जब तक बड़े नोटों की वापसी नहीं होगी तब तक समस्या बनी रहेगी. सिर्फ़ पांच से छह प्रतिशत कालाधन ही नकदी में है. बाकी काला धन प्रॉपर्टी, सोना और बाहरी बैंकों में है. हमारी इकॉनमी की ग्रोथ रुकी हुई है, बेरोजगारी बढ़ रही है और यह नाटकबाजी है. आम लोगों का बिज़नेस पूरी तरह से ठप हो गया है. इनकी मूर्खता के नतीजे आम लोगों को भुगतने पड़ रहे हैं. मार्केट में भगदड़ की स्थिति है. सरकार का फैसला राजनीतिक फायदा लेने के लिए है. असली कालाधान पूंजीपतियों के पास हैं और इन्होंने चुनाव में 15 हजार करोड़ खर्च किए वो कहां से आया?
इससे कालाधन पर कोई असर नहीं होने जा रहा है. यहां किसी को सरकार से डर नहीं है और आज भी वैसे ही सब कुछ हो रहा है. सबसे पहले आईपीसी को संशोधित करने की जरूरत थी कि जो टैक्स जमा नहीं करेगा उसे जेल होगी. इसका आने वाले वक्त में कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ेगा. ये पब्लिक को गुमराह कर रहे हैं.
राकेश रंजन, श्री राम कॉलेज़ ऑफ कॉमर्स में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर
सरकार की तैयारी न के बराबर थी. जितना कैश खत्म करना है वह कुल करेंसी का 80 प्रतिशत है. अभी यह लंबा चलेगा और 30 दिसंबर तक हो इसकी कोई गारंटी नहीं है. आम लोगों को बहुत परेशानी हो रही है और कब ख़त्म होगी किसी को नहीं पता है.
ग्रामीण भारत की स्थिति बहुत ही बुरी है क्योंकि गांव में तो एटीएम ही नहीं है. यहां काले धन को लंबी लाइन में लगकर सफेद धन भी बनाया जा रहा है. सरकार जिस गोपनीयता की बात कर रही है उसमें कोई सच्चाई नहीं दिख रही है. 6 प्रतिशत की रिकवरी के लिए इतनी बड़ी भगदड़ किसी भी हिसाब से सही नहीं है. सरकार काली आय को रोके तो ज़्यादा प्रभावी होगा. इतने लंबे समय की दिक्कत के बाद ग्राहकों का एक बड़ा हिस्सा ऑनलाइन शिफ्ट हो सकता है ऐसे में छोटे व्यापार को धक्का पहुंचने वाला है.
(रोहित जोशी से बातचीत पर आधारित)