इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक-सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली | डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड को असंवैधानिक करार दिया दिया है. विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के बाद इसका फ़ैसला सुरक्षित रखा था.
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की एक संविधान पीठ ने कहा कि गुमनाम इलेक्टोरल बॉन्ड, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
गौरतलब है कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वचन पत्र है. इसे कोई भी कंपनी या व्यक्ति, भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता था और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से पैसा दे सकता था. केंद्र की भाजपा सरकार ने 29 जनवरी 2018 को इसे क़ानूनन लागू कर दिया था.
इस तरीके से कोई भी कंपनी राजनीतिक दलों को चंदा दे सकती थी और उसका चंदा गुप्त रहता था.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने फैसेल के शुरुआत में ही कहा कि मतदान के विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है.
जस्टिस गवई, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मिश्रा की ने माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन किया है.
फैसले में इन दो सवालों को केंद्र में रखा गया था.
पहला ये कि क्या इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के अनुसार राजनीतिक दलों को स्वैच्छिक योगदान पर जानकारी का गैर-प्रकटीकरण और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 सी, धारा 183 (3) में संशोधन, कंपनी अधिनियम, आयकर अधिनियम की धारा 13ए(बी) संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
दूसरा, क्या धारा में संशोधन द्वारा राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग की परिकल्पना की गई है, यह कंपनी अधिनियम की धारा 182(1) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है. काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीक़ा इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं हो सकता है. इसके और भी कई विकल्प हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा.
इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ”सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड मामले में एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया, जिसका हमारे लोकतंत्र पर लंबा असर होगा. कोर्ट ने बॉण्ड स्कीम को ख़ारिज कर दिया है. इस स्कीम में ये नहीं पता लगता था कि किसने कितने रुपए के बॉन्ड ख़रीदे और किसे दिए.”
उन्होंने कहा कि ”सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना है. इसे लेकर जो संशोधन किया गया था, जिसके तहत कोई कंपनी, किसी भी राजनीतिक दल को कितना भी पैसा दे सकती हैं, कोर्ट ने वो भी रद्द कर दिया है.”
प्रशांत भूषण ने कहा, ”कोर्ट ने कहा कि ये चुनावी लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है, क्योंकि ये बड़ी कंपनियों को लेवल प्लेइंग फ़ील्ड ख़त्म करने का मौक़ा देती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी पैसा इस स्कीम के तहत जमा किया गया है, वो भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को दे और आयोग की तरफ़ से इसकी जानकारी आम लोगों को मुहैया कराई जाएगी.”