प्रसंगवश

कॉरोनरी स्टेंट का मूल्य 7260/- तय

जेके कर
सरकार ने कॉरोनरी स्टेंट का अधिकतम मूल्य तय कर दिया है. 13 फरवरी, 2017 को गजट नोटिफिकेशन के द्वारा केन्द्र सरकार के औषध विभाग ने बेयर मेटल से बने कॉरोनरी स्टेंट का अधिकतम मूल्य 7260 रुपये तथा ड्रग कोटिंग एवं बाद में घुल जाने वाले कॉरोनरी स्टेंट का अधिकतम मूल्य 29,600 रुपये तय कर दिया है. इसके साथ सरकार को दिये जाना वाला टैक्स तथा वैट को अलग से जोड़ा जायेगा. काफी समय से हृदय, किडनी एवं गर्दन की धमनियों में लगने वाले इन स्टेंट की कीमत कम करने की मांग की जा ही थी. अभी तक इन स्टेंट का मूल्य 23 हजार रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपया तक चार्ज किया जाता है. बाद में घुल जाने वाले विदेशों से आयातित कॉरोनरी स्टेंट का मूल्य इससे भी ज्यादा लिया जाता रहा है. कॉरोनरी स्टेंट के मामले में नैगम अस्पतालों में लूट मची हुई है.

इसी के साथ केन्द्र सरकार के औषध विभाग ने निर्देश जारी कर दिया है कि इन्हें बेचने वाले विक्रेता अपने यहां इनकी मूल्य सूची लगाये तथा जिन अस्पतालों में हृदय की वाहिनियों की इंजियोप्लास्टी की जाती है वे अपने बिल में इनका मूल्य अलग से प्रदर्शित करें. इसके अलावा कोई कंपनी यदि इसका उत्पादन बंद करना चाहती है या इसका आयात बंद करना चाहती है वे 6 माह पूर्व सरकार को इसकी सूचना लिखित में देवें.

गौरतलब है कि हृदय की वाहिनियों में अवरोध के बाद खून के संचालन को बनाये रखने के लिये उसमें जालीनुमा धातु के बने संरचना को लगा दिया जाता है. जिसे बेयर मेटल स्टेंट कहा जाता है. कई बार यह देखा गया है कि बाद में इसी धातु के बने संरचना पर खून जमा होने लगता है इस कारण से दवा की लेपिंग वाली कॉरोनरी स्टेंट का उपयोग होने लगा जिसे ड्रग कोटिंग वाला कॉरोनरी स्टेंट कहा जाता है. जिससे खतरा कम हो जाता है. आजकल बाद में घुल जाने वाले कॉरोनरी स्टेंट का जमाना है जिसे बायोडिग्रेडेबल स्टेंट कहा जाता है.

केन्द्र सरकार के औषध विभाग ने तीनों ही तरह की कॉरोनरी स्टेंट का अधिकतम मूल्य तय कर दिया है. इसी के साथ यह निर्देश भी जारी किया गया है कि जिन कंपनियों तथा आयातकर्ताओं के स्टेंट का मूल्य इनसे कम है या जो इससे कम मूल्य पर इसे सप्लाई करते हैं वे इसका दाम नहीं बढ़ा सकते हैं.

गौरतलब है कि केन्द्र सरकार के औषध विभाग ने इस संबंध में 21 दिसंबर 2016 को अधिसूचना जारी किया था. जिसके 60 दिनों के अंदर अर्थात् 21 फरवरी तक हर हाल में कॉरोनरी स्टेंट के अधिकतम मूल्य तय कर दिये जाने थे. सरकार के लिये अधिसूचना जारी करना जितना मुश्किल था उससे भी मुश्किल इसका अधिकतम मूल्य तय करना था. इसका कारण है कि इन स्टेंट को दवा दुकानों के माध्यम से नहीं बेचा जाता है. ज्यादातर इन स्टेंट को बनाने वाली विदेशी कंपनियां इन्हें सीधे तौर पर अपने भारत स्थित डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से निजी अस्पतालों, कॉरपोरेट अस्पतालों को सप्लाई करती हैं. जहां पर इनका दाम 200 से 300 फीसदी करके मरीजों को लगाया जाता है.

महाराष्ट्र एफडीए ने पुणे मुंबई जैसे शहरों के बड़े अस्पतालों का सर्वे कर अक्टूबर 2016 में बताया था कि मरीजों से इन स्टेंट का दाम तुरंत ले लिया जाता है जबकि अस्पताल इसका मूल्य डिस्ट्रीब्यूटरों को 60 से 120 दिन बाद देते हैं. जाहिर है कि इनसे न केवल मुनाफा कमाया जाता है बल्कि मरीजों के पैसों को पूंजी के रूप में रोल भी कर लिया जाता है.

कॉरोनरी स्टेंट को आवश्यक दवाओं राष्ट्रीय सूची में शामिल करने सरकार ने विशेषज्ञों की जो कमेटी बनाई थी उसका कहना है निजी अस्पतालों में हृदय रोगियों के धमनियों के ईलाज का खर्च का 25-40 फीसदी इन कॉरोनरी स्टेंट का होता है. जबकि सरकारी अस्पतालों में इसका खर्च 70-90 फीसदी का होता है. कारण सरकारी अस्पतालों में केवल कॉरोनरी स्टेंट का ही मूल्य चुकता करना पड़ता है जबकि निजी अस्पताल हृदय रोगियों के अवरुद्ध धमनियों के ईलाज में कई अन्य खर्चे भी जोड़ देती है.

कॉरोनरी स्टेंट का अधिकतम मूल्य तय करने के पहले केन्द्र सरकार ने इसके बारे में सर्वे कराया था. जिसके नतीजें चौंकाने वाले निकले थे. सरकार ने पाया था कि विदेशी कंपनी एबॉट द्वारा जिस मूल्य पर कॉरोनरी स्टेंट का विदेशों से आयात किया जाता है उसमें 68-140 फीसदी का मुनाफा जोड़कर उसे स्टेंट के थोक व्यापारी को बेच दिया जाता है. उसके बाद थोक व्यापारी द्वारा उसे 72-400 फीसदी मुनाफे पर मरीजों को बेचा जाता है. अंतिम रूप में जिस दाम पर स्टेंट का विदेशों से आयात किया जाता है उससे 294-740 फीसदी मुनाफे पर मरीजों को दिया जाता है.

इसी तरह से मेडट्रोनिक नामक विदेशी कंपनी जिस दाम पर इसे विदेशों से आयात करती है उससे 498-854 फीसदी मुनाफे पर मरीजों को दिया जाता है. बोस्टन साइंटिफिक विदेशों से मंगाये गये स्टेंट को 464-1200 फीसदी ज्यादा मूल्य पर मरीजों को दिया जाता रहा है.

खासकर, कॉरोनरी स्टेंट का मूल्य कम किये जाने के मामले में कहा जा सकता है कि ‘हृदय रोगियों के अच्छे दिन आ गये हैं’.

error: Content is protected !!