कोलगेट कांड के भीतर की परत दर परत कहानी-अथः कोल कथा
भारतीय राजनीति में कोल घोटाला या कोलगेट कांड की गूंज अभी तक बरकरार है.राजनीति की समझ रखने वाले इस बात को बेहतर जानते हैं कि स्पेक्ट्रम और कोल घोटाला, ऐसे मुद्दे थे, जिसने भारतीय राजनीति की दिशा बदलने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई. कोयला घोटाले पर कोयला मंत्रालय के पूर्व सचिव प्रकाश चन्द्र पारख की किताब क्रूसेडर ऑर कान्सपिरेटर यूं तो उनके जीवन और भारतीय लोकतंत्र के कई पहलुओं को सामने लाता है. लेकिन देश के बहुचर्चित कोलगेट कांड को लेकर उनकी लेखनी ने पहली बार कई राज भी सामने लाये हैं.
पारख कहते हैं- “भारत में प्रशासन क्यों गड़बड़ा रहा है? सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार से ही प्रशासन की अधिकांश बीमारियाँ पैदा हो रही है. नीचे तबके में तो छोटा–मोटा भ्रष्टाचार हमेशा रहा ही है ,राजनेताओं में भ्रष्टाचार स्वतन्त्रता के बाद तीव्र गति से पनपने लगा,फिर धीरे-धीरे यह सिविल सर्विस में पहुँचा.
अब भ्रष्टाचार कैसे रोका जाये? बीमारी पूरी तरह से फैल चुकी थी, सरकार के पास अब उसका निदान कहाँ? अब तो कभी–कभी ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार को रोकना असंभव है, देश के चुनाव और समूचा राजनैतिक तंत्र तो अवैध धन पर निर्भर करता है. ऐसा लगता है चुने गए जन-प्रतिनिधियों के पास भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सिवाय और कोई चारा भी है. चुनाव लड़ने हैं, पैसा चाहिए. पैसा आयेगा कहां से? कहीँ से भी आये? तब भ्रष्टाचार को छोड़कर पैसे कमाने का स्रोत क्या बच जाता है?
अनेक ऐसे ज्वलंत ज्वलंत उदाहरण है. सरकारी संस्थानो एवं कंपनियों के उच्च अधिकारियों के चयन एवं नियुक्तियाँ पूरी तरह भ्रष्टाचार पर आधारित हैं. कोल-इंडिया के चयन एवं नियुक्ति के दौरान राजनेताओं द्वारा उन्हें ब्लैक मेल किए जाने का मैं स्वयं प्रत्यक्ष साक्षी रहा हूँ. जब उच्च पदों की नियुक्ति रिश्वत के पैसों से होती है तो क्या आप उम्मीद कर सकते है कि ये लोग अपने–अपने आर्गनाइजेशन में भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास करेंगे? जब पैसे देकर नियुक्ति हुई है तो उन पैसों को ब्याज सहित निकालने के लिए भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देंगे.
यहां हम उनकी किताब के सीबीआई की कोयला घोटाले पर जांच पर केंद्रीत कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं. हिंदी में शिखर तक संघर्ष शीर्षक से प्रकाश्य इस किताब का अनुवाद दिनेश कुमार माली ने किया है.