सीजेआई मोदी सरकार से नाखुश
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: गोपाल सुब्रह्मण्यम मामले में मोदी सरकार के रवैये से सीजेआई नाखुश हैं. मंगलवार को सर्वोच्य न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा ने न्याधीशों की नियुक्ति पर अपने चुप्पी को तोड़ते हुए कहा “मैं इस बात को समझने में विफल हूं कि उच्च संवैधानिक पद पर नियुक्ति के मामले से कितने लापरवाह तरीके से निपटा गया.”
गौरतलब है कि सर्वोच्य न्यायालय में नियुक्ति के लिये शीर्ष अदालत के कॉलेजियम ने चार नामों की अनुशंसा की थी. जिसमें से सरकार ने तीन नाम, कलकत्ता और ओडिशा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों क्रमश: अरुण मिश्रा और आदर्श कुमार गोयल तथा अधिवक्ता रोहिंटन नरीमन के नाम को हरी झंडी दे दी, जबकि पूर्व सॉलीसीटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम के नाम को हरी झंडी नहीं दी.
सीजेआई आरएम लोढ़ा ने कार्यपालिका पर सवाल उठाते हुए कहा “मैंने जिस पहली बात पर आपत्ति जताई है वह है सुब्रह्मण्यम के प्रस्ताव को तीन अन्य प्रस्तावों से कार्यपालिका द्वारा मेरी जानकारी और सहमति के बिना एकतरफा तरीके से अलग किया जाना, जो सही नहीं था.” ज्ञात्वय रहे कि सर्वोच्य न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायधीशों के नामों की अनुशंसा करने वाले कॉलेजियम के अध्यक्ष होते हैं.
महंगाई बढ़ने से पहले से ही आरोपों में घिरी मोदी सरकार के लिये न्यायपालिका के सर्वोच्य पद पर आसीन आरएम लोढ़ा के सार्वजनिक बयान से खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता उनके लिए सबसे ज्यादा अहम है. सर्वोच्य न्यायालय के न्यायाधीश डा. बीएस चौहान के रिटायर होने के मौके पर आयोजित समारोह में उन्होंने वकीलों से कहा, ‘यह मत समझिए कि न्यायपालिका की आजादी के साथ समझौता किया गया है.’
प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा ने इसी समारोह में कहा, “मैं भारत की 1.2 अरब की आबादी से वायदा करता हूं कि न्यायपालिका की आजादी से समझौता नहीं होगा. अगर न्यायपालिका की आजादी से समझौता हुआ, तो मैं इस पद को त्यागने वाला पहला व्यक्ति होउंगा.”