बच्चे बंधुआ नहीं बनाए जा सकते: सत्यार्थी
नई दिल्ली | एजेंसी: नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा है कि हर प्रकार के बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने में देरी के कारण बचपन बर्बाद हो रहा है. उन्होंने कहा कि हमारे बच्चे कार्यस्थलों पर बंधुआ नहीं बनाए जा सकते.
सत्यार्थी साथ ही आशा भी व्यक्त करते हैं कि यह मुश्किल उनके जीवनकाल में ही इतिहास बन कर रह जाएगा और इस मुश्किल का हल गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा है.
एक विशेष बातचीत में 60 वर्षीय सत्यार्थी ने बाल श्रम के अभिशाप पर अपने विचार साझा किए.
सत्यार्थी ने कहा, “कोई भी यह नहीं बता सकता कि कितने बाल श्रमिक हैं, लेकिन आम सहमति है कि 50 लाख बच्चे इस गैर कानूनी गतिविधि में फंसे हुए हैं.”
बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक सत्यार्थी ने कहा, “हम विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि भारत प्रगति के पथ पर है. इसलिए शिक्षा ही एकमात्र उपाय है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का आर्थिक विकास से सीधा संबंध है. शिक्षित लोगों के लिए और विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत होती है.”
सत्यार्थी को महीने के प्रारंभ में नोबल पुरस्कार, बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली पाकिस्तानी किशोरी मलाला यूसुफजई के साथ दिया गया था.
उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि नरेंद्र मोदी सरकार इस मुद्दे पर चिंतित है और शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रही है.
सत्यार्थी ने कहा, “हालांकि, बाल श्रम को हर रूप में समाप्त किए बिना गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा पाना असंभव है. बच्चों को कार्यस्थल और खानों में फंसा कर या बंधुआ मजदूर बना कर नहीं रखा जा सकता.”
उन्होंने बाल श्रम को देश की गंभीर समस्या करार दिया.
वह बाल श्रम संशोधन विधेयक, 2012 को लेकर दृढ़ हैं, जो कि पिछले दो सालों से संसद में अटका हुआ है. सत्यार्थी ने कहा, “विधेयक पारित होने और लागू होने में देरी का मतलब बचपन को बर्बाद करना है. लाखों बच्चे बर्बादी के कगार पर हैं.”
उन्होंने कहा, “मैं संशोधन विधेयक पारित कराने की सरकार से अपील कर रहा हूं. यह 14 साल तक के बच्चों से हर प्रकार का बाल श्रम कराने से रोकता है और 18 साल तक के बच्चों को खतरनाक काम करने से रोकता है.”
सत्यार्थी ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर के सह-संस्थापक हैं, जो कि 144 देशों में सक्रिय है.
बाल श्रम पर प्रतिबंध की जरूरत पर बल देते हुए सत्यार्थी ने कहा कि करीब 70 देशों ने बाल श्रम के खिलाफ लड़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय कानून को पारित कर दिया है.
उन्होंने कहा, “यह जागरूकता कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी का भी हिस्सा है. वे किसी भी रूप में बाल श्रम के मुद्दे की अनदेखी नहीं कर सकते.”
अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए सत्यार्थी ने कहा, “मेरी अब तक की सबसे बड़ी सफलता यह रही है कि मैंने बाल श्रम को भारत और विश्व में एक मुद्दा बनाया. लेकिन तीन दशक पहले मेरे लिए यह आसान नहीं था, जब बाल श्रम कोई मुद्दा नहीं होता था और लोग मुझे गंभीरता से नहीं लेते थे.”
सत्यार्थी ने कहा, “मैं तब भी महात्मा गांधी के शब्द याद करता था. उन्होंने एक बार कहा था, ‘पहले लोग अनदेखी करते हैं, तब वे हंसते हैं, फिर वे लड़ते हैं, और फिर जीतते हैं.’ इसलिए मैं यह दावा नहीं करूंगा कि मैं जीत गया हूं, लड़ाई बड़ी है. लेकिन मुझे यह विश्वास है कि मेरे जीवनकाल में मैं बाल श्रम का उन्मूलन देखूंगा.”