छत्तीसगढ़

जनविरोधी कौन, नक्सली या पत्रकार?

रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ के बस्तर के नक्सलियों ने उनसे दिगर विचार रखने वाले पत्रकारों को जन विरोधी कहा है. इसी के साथ नक्सल नेता गणेश उइके ने नक्सलियों के समर्पण के सरकारी कार्यक्रम में भाग लेने वाले बस्तर प्रेस क्लब के अध्यक्ष करीमुद्दीन के बारे में कहा है कि उन्हें जनता को धोखा देने वाले नक्सलियो का उत्साह नहीं बढ़ाना चाहिये. जाहिर सी बात है कि समर्पणकारी नक्सलियों के सरकारी कार्यक्रम में एक पत्रकार की उपस्थिति नक्सली नेता गणेश उइके को नागावर गुजरी है.

उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी बस्तर में दो पत्रकारों को पुलिस का मुखबिर कहकर उनकी हत्या कर दी गई थी. हैरत की बात है कि अब तक पुलिस-प्रशासन को जनविरोधी कहने वाले नक्सली, पत्रकारों को भी अप्रत्यक्ष रूप से धमकी देने पर उतर आये हैं. इसे यदि क्लासिकीय मार्क्सवादी दृष्टिकोण से देखे तो उसका निष्कर्ष निकलता है कि बस्तर के अति वामपंथियों को हर उस शख्स से परेशानी है जो उनसे दिगर सिद्धांत, विचार या लोकाचार रखता है.

प्रेस को जारी किये गये अपने बयान में गणेश उइके ने कहा है कि हम आतंकवादी नहीं हैं, हम देशभक्त हैं तथा जनता के लिये लड़ाई लड़ रहें हैं. उन्होंने दावा किया है कि नक्सली बस्तर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा आदिवासियों के जमीन हड़पने की खिलाफत कर रहें हैं. इसी के साथ गणेश उइके ने मीडिया से समर्थन मांगा है कि शोषणकारी सरकार की खिलाफत करें. गणेश उइके ने मीडिया से अपील की है कि उन्हें लाल आतंक कहकर बदनाम न करें.

नक्सली नेता गणेश उइके ने अपने प्रेस को जारी किये गये बयान में और कई बातों को उल्लेख किया है परन्तु मीडिया को सीख देने तथा किसी पत्रकार विशेष को आगाह करके उन्होंने अति वामपंथ से आगे की यात्रा शुरु कर दी है जिसका अंत कहा पर जाकर होगा इसकी कल्पना अभी से की जा सकती है.

बस्तर के नक्सलियों की जानकारी के लिये साम्यवादी चीन में भी दो गैर-कम्युनिस्टों को सरकार में लिया गया तथा उनके काम को देखते हुए उन्हें कैबिनेट मंत्री बना लिया गया. जिस चीन के माओवाद के नाम पर देश के कुछ वामपंथियों ने नक्सलवाद की नींव रखी थी उसी चीन में आज वर्तमान दौर के विश्व व्यवस्था के अनुसार बाजार की महत्ता को स्वीकारा जा रहा है. मार्क्सवाद कहता है कि बदलाव ही दुनिया का नियम है तथा यह प्रकृति के साथ-साथ मानव समाज पर भी लागू होता है.

मार्क्सवाद ने मानव समाज में बदलाव लाने के लिये कभी भी नहीं कहा कि खुद मानव को ही तिलांजलि दे दी जाये. मानव समाज में बदलाव तभी हो सकता है जब समाज इसके लिये तैयार हो, हां उसमें उत्प्रेरक की भूमिका से इंकार नहीं किया गया है. जाहिर है कि समाज में कई तरह की विचारधारा विद्दमान रहती हैं तथा उनमें उसी विचारधारा की विजय होती है जिसे बहुसंख्य हिस्से द्वारा स्वीकार किया जाता है.

बस्तर के नक्सलियों द्वारा लाईन से किये जा रहें समर्पण जांच का विषय हो सकता है तथा क्या सभी नक्सली ही हैं इस पर दो राय हो सकती है. इसके लिये बस्तर के नक्सलियों को जंगल में बैठकर पत्रकारों को धमकी देने या उन पर दबाव बनाने से कुछ हासिल होने नहीं जा रहा है, उलट इससे उनके नेतृत्व की हताशा जरूर जाहिर होती है. उल्लेखनीय है भारत के अलावा पूरे दुनिया में कार्पोरेट का जलवा चल रहा है. इक्का-दुक्का को छोड़कर मीडिया किसी पत्रकार के भरोसे नहीं, पूंजी के बल पर चल रहा है. जिसमें किसी पत्रकार विशेष की विचारधारा के लिये कोई स्थान नहीं है.

आज़ तो खबरें भी बाजार में बिकने के लिये ही बनाई जा रहीं हैं. ऐसे दौर में बस्तर के किसी पत्रकार ने यदि सरकारी कार्यक्रम में शिरकत की है, भले ही वह नक्सल विरोधी ही क्यों न हों, उसके लिये उसे दोषी नहीं माना जा सकता है. पत्रकार कोई समाज से दिगर आत्मा नहीं होती है वरन् वह तो इसी समाज का हिस्सा है जिसे अति वामपंथी बंदूक के बल पर बदलने की नाकाम कोशिश कर रहें हैं.

उल्लेखनीय है कि बस्तर प्रेस क्लब के अध्धक्ष करीमुद्दीन को धमकाया जा सकता है जो उनके प्रभाव वाले भौगोलिक क्षेत्र में निवास करता है लेकिन उस मीडिया से नक्सली कैसे निपटेंगे जो कार्पोरेट जगत का हिस्सा है. इसी के साथ यह सवाल भी रह जाता है कि क्या सरकारी कार्यक्रम में हिस्सेदारी करने वाले पत्रकार को जनविरोधी करार दिया जा सकता है या पत्रकारों को धमकी देने वाले नक्सल नेता गणेश उइके के इस बयान को जनविरोधी कहा जाये. जाहिर है कि इसका फैसला नक्सल नेता गणेश उइके को नहीं जनता को करना है.

One thought on “जनविरोधी कौन, नक्सली या पत्रकार?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!