छत्तीसगढ़: गांवों में भालुओं से खतरा
रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ के जंगलों में भालुओं की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है. इन दिनों भालुओं का प्रजनन-काल चल रहा है और इन्हें बच्चों के साथ देखा जा सकता है, इसलिए सुरक्षा के हिसाब से लोग सामूहिक रूप से जंगलों में जाने लगे हैं.
हर महीने इनके हमले की खबरें भी आ रही हैं. इधर भालुओं के हमले से बचने के लिए महुआ बीनने जा रहे ग्रामीण जंगलों में लगातार आग लगा रहे हैं और अपनी सुरक्षा के लिए परंपरागत हथियार लेकर वनों में जा रहे हैं, इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार की जामवंत योजना पर भी सवाल उठने लगे हैं.
बताया गया कि सूबे के जंगलों में मांसाहारी से ज्यादा शाकाहारी जानवर हैं. वहीं मांसाहारी प्राणियों में भालुओं की संख्या तेजी से बढ़ी है, इसलिए पिछले एक साल में भालू के हमले की वारदातें भी ज्यादा हुई हैं. सूबे के बस्तर और बकावंड रेंज के बाद अब जगदलपुर व दरभा रेंज में भी भालुओं के हमले की खबरें आने लगी हैं.
राजनगर के पास तो दो स्कूली छात्राओं पर भालू ने हमला किया था. कुछ दिनों पहले ही दरभा इलाके से एक ग्रामीण को भी महारानी अस्पताल लाया गया था. इस दिनों ग्रामीण महुआ एकत्र करने जंगलों में जा रहे हैं, लेकिन इन्हें हमेशा भालुओं के हमले की आशंका रहती है इसलिए वे जंगलों में पहुंचते ही सुरक्षा के हिसाब से आग लगा रहे हैं.
किचकरास, नेतानार के आयतू, मासे और नरसिंह धुरवा ने बताया जंगलों में भालुओं की संख्या बढ़ गई है. इन दिनों भालुओं का प्रजनन काल चल रहा है और इन्हें बच्चों के साथ देखा जा सकता है, इसलिए सुरक्षा के हिसाब से लोग सामूहिक रूप से जंगलों में जाने लगे हैं.
बस्तर के सीसीएफ वन्यप्राणी वी. रामाराव ने बताया कि बस्तर संभाग में वर्ष 2015 की गणना के अनुसार, सात हजार 659 वन्यप्राणी हैं. इनमें शाकाहारी की संख्या छह हजार 498 और मांसाहारी वन्यप्राणियों की संख्या एक हजार 161 है. पिछले कुछ वर्षों में अन्य हिंसक प्राणियों बाघ, भेड़िया और लकड़बघ्घा की तुलना में भालुओं की संख्या में खासी बढ़ोतरी हुई है.
संभाग में फिलहाल 441 से ज्यादा भालू हैं. भालुओं बचाने के लिए ही प्रदेश सरकार ने जामवंत योजना प्रारंभ की है. ग्रामीणों का सहयोग भी लिया जा रहा है.
इसी तरह बिलासपुर और सरगुजा संभाग के हालात हैं, वहां भी आए दिन भालुओं के द्वारा लोगों पर हमले की खबरे आती हैं. रायपुर संभाग अब अछूता नहीं रहा. महासमुंद के ग्राम नवागांव (पटेवा) में गत 12 मार्च को एक हिंसक भालू के हमले से डिप्टी रेंजर सहित तीन लोगों की मौत से आसपास के गांवों में अभी भी भालू को लेकर तरह-तरह की चचार्एं हो रही हैं.
इस बीच गत गुरुवार को सुबह करीब 9 बजे नवागांव के सरदार पिता सोनू खड़िया के खेत में भालू देखे जाने से एक बार फिर ग्रामीण दहशत में हैं. भालू के गांव के नजदीक पहुंचने की सूचना पर वन विकास निगम आरंग परिक्षेत्र के पीआरओ सहित करीब 15 वन कर्मी नवागांव पहुंचे और वस्तुस्थिति का जायजा लेने के बाद ग्रामीणों को आसपास के जंगल में अकेले नहीं जाने, आवश्यक होने पर जंगल जाते समय भालू से बचने लाठी-डंडा, कुल्हाड़ी आदि के साथ माचिस अवश्य रखने की सलाह दी.
उन्होंने सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद महुआ आदि वनोपज संग्रहण के लिए जंगल नहीं जाने की सख्त हिदायत भी दी.
नवागांव के धरम पटेल ने बताया कि उनके गांव में रात 10-11 बजे के आसपास भालू गांव के भीतर भी प्रवेश कर जाता है. कई बार ग्रामीण युवाओं ने भालू को खदेड़ा है. गुरुवार को सरदार खड़िया के साथ उसकी पत्नी और बेटा भी था. तीनों को भालू ने दौड़ाया. गिरते-भागते बड़ी मुश्किल से गांव पहुंचकर तीनों ने जान बचाया.
गांव के कोटवार सालिकराम ने भी गुरुवार को खेत में भालू देखने की पुष्टि की है. इससे आशंका जाहिर की जा रही है कि जिस हिंसक मादा भालू को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था, यह भालू उसी के परिवार का हो सकता है. जो मादा भालू से बिछड़ने की वजह से आसपास ही विचरण कर रहा है.
अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि मारी गई मादा भालू के शावक आसपास हो सकते हैं. इससे कभी भी अप्रिय स्थिति की आशंका बनी हुई है.