छत्तीसगढ़िया ग्रामीण सबसे गरीब
रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ गरीबी के मामले में सबसे अव्वल राज्य बन कर उभरा है.
भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के हवाले से बताया है कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण देश के 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों (यूनियन टेरेटरीज़) में सबसे गरीब हैं.
साल 2011-12 के दौरान किए गए इस सर्वेक्षण में हर व्यक्ति के हर महीने के खर्च करने की क्षमता को आधार बनाया गया है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण की प्रति माह 904.04 रुपये खर्च करने की क्षमता देश के सभी राज्यों के ग्रामीणों से कम है. यानी की शहरी विकास से अछूता रहा आम छत्तीसगढ़िया रोजाना 30 रु. से कम में गुजारा कर रहा है.
वैसे खर्च तभी किया जा सकता है जब जेब में रुपयें हों. यदि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण सबसे कम खर्च करते हैं तो इसका कारण कदापि भी यह नही है कि वे रुपये जमा करने में विश्वास करते हैं.
आंकड़ें बताते हैं कि छत्तीसगढ़ से ज्यादा तो पिछड़े राज्य ओडीशा के ग्रामीण यानी 904.78 रुपये प्रतिमाह खर्च करते हैं. ग्रामीणों के प्रति व्यक्ति, प्रतिमाह खर्च करने का राष्ट्रीय औसत 1287.17 है. जिससे छत्तीसगढ़ का आंकड़ा 383.13 रुपये कम है.
इन आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ के आबादी का 44.61 प्रतिशत यानी कि करीब 88.90 लाख लोग गांवों में बसते है.. जिनकी खर्च करने की क्षमता देश में सबसे कम है. छत्तीसगढ़ की तुलना में आंध्रप्रदेश के ग्रामीण 1563.21 रुपये, अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीण 1455.87 रुपये, आसाम के ग्रामीण 1056.98 रुपये, गोवा के ग्रामीण 2460.77 रुपये, हरियाणा के ग्रामीण 1925.96 रुपये, जम्मू काश्मीर के ग्रामीण 1601.51 रुपये खर्च करते हैं.
भाजपा शासित राज्यों में भी गुजरात के ग्रामीण 1430.12 रुपये, मध्यप्रदेश के ग्रामीण 1024.14 रुपये खर्च करते हैं. जिसका अर्थ यह होता है कि भाजपा शासित राज्यों में भी छत्तीसगढ़ की स्थिति सबसे खराब है. राज्य की 39.9 फीसदी आबादी अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है.
छत्तीसगढ़ के साथ अस्तित्व में आये झारखंड के ग्रामीण 919.59 रुपये तथा उत्तराखंड के ग्रामीण प्रति माह 1551.42 रुपये खर्च करते हैं. इन तमाम आकड़ों से यह निष्कर्ष निकलता है कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अत्यंत गरीब तथा बेबस हैं. जिनके पास अपने ऊपर खर्च करने के लिये धन की कमी है कम से कम तुलनात्मक रूप से तो.
कहने को तो तमाम सरकारी आंकड़ों छत्तीसगढ़ को विकास का गढ़ बताते हैं लेकिन जब वैसे भी जब राज्य के ग्रामीण देश में सबसे गरीब हों तो कैसे इन बातों को माना जा सकता है. ऐसे हालात में निश्चय ही विश्वसनीय छत्तीसगढ़ का सरकारी दावा खोखला साबित होता लगता है.