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छत्तीसगढ़ में आदिवासी जनसंख्या पर सवाल

रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की चौंकाने वाली जनसंख्या वृद्धि दर ने सरकार को चिंता में डाल दिया है. खबर है कि राज्यपाल शेखर दत्त ने राज्य सरकार से जनसंख्या के विस्तृत आंकड़े तलब किये हैं. 2011 की जनगणना के जो आरंभिक आंकड़े आये हैं, उसमें राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में जनसंख्या वृद्धि दर काफी कम है. जनगणना के इन आंकड़ों ने राज्य सरकार के विकास कार्यक्रमों को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है.

सरकारी आंकड़ों में 2011 की जनगणना के जो आरंभिक आंकड़े सामने आये हैं, उसके अनुसार छत्तीसगढ़ की जनसंख्या में 22.59 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. लेकिन बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, कांकेर, दक्षिण बस्तर, जशपुर और कोरिया जिले में वृद्धि दर के आंकड़े काफी कम हैं.

पिछले एक दशक में एक तरफ जहां कबीरधाम की जनसंख्या में 40.6 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि हुई है, वहीं रायपुर 34.59 प्रतिशत, बिलासपुर 33.2 प्रतिशत और जांजगीर-चांपा में 23 प्रतिशत जनसंख्या बढ़ी है. लेकिन आदिवासी बहुल जिलों का हाल बुरा है.

सुकमा में जनसंख्या वृद्धि दर 8.09 प्रतिशत, बीजापुर में 8.76 प्रतिशत, दंतेवाड़ा में 11.9 प्रतिशत, कोरिया में 12.40 प्रतिशत, जशपुर में 14.65 प्रतिशत और कांकेर में जनसंख्या वृद्धि दर 15.01 प्रतिशत है. मतलब ये कि सुकमा की तुलना में कबीरधाम की जनसंख्या 5 गुणा बढ़ी है.

इसके अलावा आदिवासी बहुल जिलों में साक्षरता दर की भी स्थिति चिंता में डालने वाली है. राज्य के दुर्ग जैसे जिले में एक ओर जहां साक्षरता दर 79.69 प्रतिशत है, वहीं अविभाजित बीजापुर में यह लगभग आधा 41.58 प्रतिशत है. दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा में यह 42.67 प्रतिशत है तो नारायणपुर में 49.59 प्रतिशत आबादी ही साक्षर है.

इससे पहले 2001 की जनगणना में भी आदिवासी जनसंख्या को लेकर भारी विवाद हुआ था. उस समय बस्तर के 564 और जशपुर के 300 गांवों को वीरान बता कर उनकी गणना ही नहीं की गई थी. यहां तक कि आदिवासी विधायक गणेशराम भगत के गांव को भी आदिवासीविहिन बता दिया गया था. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सांसद नंदकुमार साय ने इस गड़बड़ी को आदिवासियों के खिलाफ साजिश बताते हुये सीबीआई जांच की मांग की थी. लेकिन आंकड़े जस के तस रहे. अब एक बार फिर जनसंख्या वृद्धि दर को लेकर जनगणना के आंकड़े विवादों के घेरे में है.

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