महंगाई ने छीना ‘पताल फदका’
रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ में ‘पताल फदका’ यानी टमाटर की चटनी प्रमुख आहारों में से एक है. दो माह पहले तक गरीबों के यहां जब कोई सब्जी और दाल नहीं बनती थी तो ‘पताल फदका’ से ही काम चलाया जाता था. मगर इस समय हालत यह है कि महंगाई के कारण मध्य और निम्न वर्ग के लोगों की थालियों से टमाटर छिन गया है.
रायपुर के बाजार से लेकर समूचे सूबे में अभी टमाटर की कीमत 60 से लेकर 80 रुपये किलो तक और कहीं तो यह 90 रुपये किलो की दर से बिक रहा है, जबकि गरीब आदमी की रोजी रोजाना डेढ़ सौ रुपये से ज्यादा नहीं है. इस कारण गरीब इन दिनों टमाटर खरीदने का साहस नहीं जुटा पा रहा है.
एक छत्तीसगढ़ी लोकगीत है, ‘बटकी बासी अऊ चुटकी नून, मैं हर गावत हावौं ददरिया, तै ध्यान लगा के सुन.’ यह लोकगीत जंगलों में रहने वाले गरीब आदिवासियों की आर्थिक तंगी को बयां करता है. कुछ ऐसी ही हालत ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के गरीबों की है. यहां के गरीब ‘बासी’ की जगह एक रुपये किलो वाला चावल और ‘नून’ की जगह ‘पताल फदका’ या ‘पताल झोझर’ का उपयोग करते हैं, मगर टमाटर की महंगाई के कारण यह भी नसीब नहीं हो रहा है. कई परिवार ऐसे भी हैं जो पखवाड़े भर से टमाटर का स्वाद ही नहीं चखे हैं.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के फोकटपारा निवासी अमरीका बाई ने कहा, “मेरी उम्र 65 साल हो गई है. मैंने अपने जीवन में पहली बाहर टमाटर को इतना महंगा होते देखा है. पहले महंगा होता था तो ज्यादा से ज्यादा बीस रुपये तक. इस साल तो 90 रुपये तक पहुंच गया. पचीस रुपये से ज्यादा महंगी सब्जी खरीदने की तो मेरी हैसियत ही नहीं है, कहां से 90 रुपये में खरीदूंगी.”
कुकुरबेड़ा निवासी राधेलाल का कहना है कि पहले जब हरी सब्जी महंगी होती थी, तो टमाटर की चटनी के साथ खाना खा लिया जाता था, लेकिन इस साल तो हरी सब्जियों के साथ ही टमाटर और आलू-प्याज भी महंगा है. ऐसे में न ‘पताल फदका’ खा पा रहे हैं और न ही आलू की चटनी.
रायपुर के सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि मानसून देर से आने के कारण स्थानीय बाड़ियों में टमाटर की फसल देर से लगाई गई, इसलिए आवक नहीं हो रही है.
सब्जी के थोक विक्रेता प्रताप गेलानी और कृपाराम पटेल का कहना है कि अभी बेंगलुरू से देसी और नासिक से हाइब्रिड टमाटर आ रहा है. यहां की बाड़ियों से आवक नहीं हो रही है, इसी वजह से कीमत बढ़ गई है. बाड़ी की फसल को तैयार होने में कम से कम एक माह लग सकता है. तब तक टमाटर के सस्ता होने के आसार कम हैं.