swine flu: सावधान रहें
रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ में स्वाइन फ्लू ने दस्तक दे दी है परन्तु इससे घबराने की जरूरत नहीं है. स्वाइन फ्लू का इलाज उपलब्ध है तथा सावधान रह कर इससे बचा जा सकता है. h1n1 वाइरस से होने वाले इस रोग ने अभी तक छत्तीसगढ़ में न तो पैनडेमिक और न ही इपीडेमिक रूप लिया है. अब तक छत्तीसगढ़ में स्वाइन फ्लू से 1 मौत की चिकित्सीय पुष्टि हुई है. स्वास्थ्य संचालनालय के राज्य नोडल अधिकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में स्वाइन फ्लू के कुल 119 संभावित मरीजों के नाक और गले का स्वाव नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र को भेजा गया था. इनमें से 83 नमूनों की जांच रिपोर्ट मिली है, जिनमें 22 मरीजों को स्वाइन फ्लू होने की पुष्टि की गयी है.
चिकित्सीय भाषा में किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित महामारी को पैनडेमिक तथा भयावह रूप धारण करने वाले महामारी को इपीडेमिक कहा जाता है. जाहिर है कि 2 करोड़ 55 लाख की जनसंख्या वाले छत्तीसगढ़ में अब तक केवल स्वाइन फ्लू 22 मरीजों की पुष्टि हुई है इसलिये इससे घबराने की जरूरत नहीं है. जरूरत है कि जनता को इस रोग के लक्षणों की जानकारी दी जाये ताकि पीड़ित जल्द से जल्द चिकित्सक के पास पहुंच सकें तथा बचाव के तौर तरीकों से इस रोग से संक्रमित होने से बचा जा सके.
छत्तीसगढ़ के पद्मश्री डॉ. पुखराज बाफना ने बताया कि स्वाइन फ्लू से घबराने की जरूरत नहीं है. वैसे भी जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाएगा, इस फ्लू का असर कम हो जाएगा. डॉ. बाफना ने कहा कि सावधानी ही स्वाइन फ्लू से बचने का सबसे सरल व उत्तम तरीका है. उन्होने कहा कि बार-बार साबुन से हाथ धोते रहना चाहिए. गर्म खाना खाना चाहिए. अति आवश्यक न हो तो भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाने एवं ट्रेवल करने से बचना चाहिए. उन्होने कहा कि सर्दी, खांसी, बुखार होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क किया जाए. मरीज घर में बैठे न रहें.
गौरतलब है कि स्वाईन फ्लू h1n1 वायरस से फैलता है. यह बीमारी एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में श्वसन तंत्र के द्वारा फैलती है. संक्रमित व्यक्ति से उसके छींकते एवं खांसते वक्त वायरस वातावरण में ड्रापलेट के रूप में फैलते हैं, जो उस वातावरण में श्वांस लेने वाले व्यक्ति के श्वसन तंत्र में प्रवेश कर उसे संमित करते हैं. स्वाईन फ्लू के लक्षण मौसमी फ्लू की तरह होते हैं. इसमें बुखार, सर्दी, खांसी, छींक, कॅफ जमना, गले में खरॉश, सिर दर्द, बदन दर्द, ठंड लगना और थकान की शिकायतें होती हैं. उल्टी दस्त एवं पेट दर्द भी हो सकते हैं. गंभीर मरीजों में तेज बुखार एवं सांस लेने में तकलीफ होती है. बच्चों, वृद्धों एवं पूर्व से अस्वस्थ व्यक्तियों में स्वाईन फ्लू के संमण के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
उल्लेखनीय है कि स्वाइन फ्लू के इलाज के लिये केवल दो दवायें उपलब्ध हैं. पहला टेमीफ्लू (oseltamavir) की गोली जिसकी संक्रमित होने पर 10 दिन की खुराक लेनी पड़ती है तथा संक्रमण की आशंका होने पर इसे 5 दिनों तक दिया जाता है. छत्तीसगढ़ के सरकारी तथा निजी क्षेत्र के बड़े अस्पतालों में यह दवा उपलब्ध है. दूसरा, रेलेंजा (zanamivir) जिसे इनहेलर के रूप में दिया जाता है. इन दोनों में टेमीफ्लू सबसे सुविधाजनक तथा कारगार दवा है.
सबसे राहत की बात है कि अभी तक भारत में टेमीफ्लू प्रतिरोधक स्वाइन फ्लू की आधिकारिक जानकारी नहीं है. स्वाइन की बीमारी होने पर इसके वायरस h1n1 के लिये टेमीफ्लू दिया जाता है तथा बुखार एवं अन्य लक्षणों के अनुसार उसकी दवा अलग से दी जाती है. इसमें कोई अन्य संक्रमण से बचने के लिये एंटीबायोटिक का इस्तमाल भी किया जाता है.