प्रसंगवश

अग्नि स्नान से क्या हासिल होगा?

त्वरित टिप्पणी | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री जनदर्शन से रोके जाने पर क्षुब्ध युवक ने आग लगा ली. सत्ताईस वर्षीय बेरोजगार, दिव्यांग युवक योगेश साहू ने राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री जनदर्शन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री से मिलने से रोके जाने पर मुख्यमंत्री निवास के सामने आग लगा ली. युवक तीस फीसदी जल गया है. रायपुर के कालडा नर्सिंग होम में उसका ईलाज चल रहा है.

मुख्यमंत्री के जनदर्शन से रोके जाने पर बेरोजगार, दिव्यांग युवक द्वारा अग्नि स्नानकर आत्महत्या की कोशिश कर आखिर युवक योगेश साहू किस पर रोष प्रकट कर रहा है? पुलिस पर, प्रशासन पर या अपना रोष को व्यापक प्रचार दिलाने के लिये उसने ऐसा किया है. सवाल केवल प्रशासन से नहीं व्यवस्था से भी किया जाना चाहिये.

वर्तमान समाज अपने हर नागरिक को रोजगार दिलाने में असमर्थ है. परिणाम स्वरूप समाज के बाशिंदो का एक बड़ा हिस्सा अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करने से वंचित हो रहा है. समाज का एक बड़ा हिस्सा अपनी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है. यह असमर्थता हताशा भी पैदा करता है, वर्तमान व्यवस्था के प्रति रोष भी प्रकट करता है. यह असमर्थता युवकों को भटकाकर गलत दिशा में भी ले जा सकता है.

दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री जनदर्शन कार्यक्रम को लेकर राज्य के जनता में जो अति उम्मीदे जगी है यह उसकी हताशा का भी प्रतीक है. आखिर, मुख्यमंत्री जनदर्शन से नौकरी मिल जायेगी यह क्यों तय माना गया. मुख्यमंत्री जनदर्शन के माध्यम से राज्य के मुखिया अपने जनता से रूबरू होकर वास्तविक हालात को जानने कोशिश करते हैं.

माना कि इससे कई समस्याओं का समाधान तुरंत हो जाता है. जाहिर है इसमें उन्हीं समस्याओं का समाधान किया जा सकता है जिसमें किसी सरकारी योजना के क्रियांन्वयन में किसी तरह की रुकावट हो. पैसे के लिये किसी की चिकित्सा या शिक्षा रुकी हुई हो. खबरों के अनुसार युवक दिव्यांग है इस कारण से किस सरकारी योजना के तहत उसने नौकरी मिलनी चाहिये तथा क्यों नहीं मिल पा रही है इस पर सवाल जरूर खड़े होते हैं.

इस घटना का एक दूसरा पहलू भी है. वर्तमान समाज ने ऐसे कई आवश्यक तथा अनावश्यक वस्तुओं का उत्पादन किया है जिससे मानव के जीवन स्तर में सुधार होता है. मसलन टीवी, फ्रीज, मोबाईल, तरह-तरह के फैशेनेबल कपड़े, बाईक, सुंदर-सुंदर मकान, पिज्जा से लेकर पैक्ड फूड तक और अनगिनत चीजें. इन चीजों के प्रति लोगों में इसे खरीदने के लिये विज्ञापनों की होड़ सी लगी है.

इसके अलावा उन्नत चिकित्सा, बच्चों की बेहतर शिक्षा आदि परन्तु यह सब तभी मिल सकता है जब आपके पास इनका मोल चुकाने के लिये पैसे हो, पैसे कमाने के लिये नौकरी हो, सीमित नौकरियों में से उसे पाने लिये चल रही गलाकाट प्रतियोगिता में सफल होना जरूरी होता है. सीमित नौकरी से अर्थ समाज की जरूरत से कम संख्या में नौकरियों का होना है.

अन्यथा क्या कारण है कि इंजीनियरिंग पढ़ने के बाद युवक किसी निजी कंपनी के अन्य विभाग में मैनेजर बन जाते हैं. यह तो समाज के धन की, शिक्षा की बर्बादी है.

जाहिर है कि शिक्षा का स्तर कितना भी बढ़ जाये परन्तु हर शिक्षित को उसके योग्यतानुसार रोजगार देना इस व्यवस्था के बस की बात नहीं है. व्यवस्था केवल उतने ही लोगों को रोजगार देता है जितना व्यवस्था चलाने, शासन चलाने, उत्पादन करने, उनका वितरण करने के लिये आवश्यक होता है. यही कारण है कि राज्य, देश तथा पूरे दुनिया में बेरोजगारी की समस्या सबसे गंभीर समस्या बन गई है. इससे समाज में रोष उत्पन्न हो रहा है जो कई तरह से सामने आ रहा है.

यहां पर व्यवस्था से सवाल किया जाना चाहिये कि आखिरकार मानव समाज की सबसे उन्नत, विकसित तथा अंतिम पायदान होने का दावा किये जाने के बावजूद वह क्यों सबके साथ न्याय क्यों नहीं कर पा रहा है? यदि व्यवस्था के पास सबके लिये रोजगार नहीं है तो माना जाना चाहिये कि यह व्यवस्था ही पंगु है जो ढ़ोल-बाजे के तमाशे के साथ उसे छुपाये रखने की कोशिश कर रहा है. राजधानी रायपुर में योगेश साहू द्वारा आत्महत्या किये जाने का प्रयास यही तो इंगित करता है. हो सकता है कि बच जाने के बाद योगेश साहू को नौकरी मिल जाये क्योंकि इस घटना को व्यापक तौर पर मीडिया ने प्रमुखता दी है लेकिन राज्य के सभी बेरोजगारों को नौकरी देना क्या संभव है?

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