छत्तीसगढ़ की 31.98% शहरी आबादी झुग्गियों में
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के शहरों की झुग्गी बस्तियों को कम करने की चुनौती अब भी बनी हुई है.2019 के एक आंकड़े के अनुसार राज्य के शहरों की 31.98 फीसदी आबादी झुग्गियों में रहती है.
केंद्र की मोदी सरकार ने 2022 तक सभी को घर उपलब्ध कराने का दावा किया था. लेकिन ज़मीनी हक़ीकत अलग है.
हालत ये है कि प्रधानमंत्री आवास योजना में अपनी-अपनी साझेदारी की लड़ाई में लाखों लोगों के मकान का मामला छत्तीसगढ़ में दो सालों से अटका हुआ है.
आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ के 168 शहरों में से 94 शहर ऐसे हैं, जहां झुग्गी बस्तियां हैं. इन बस्तियों में न तो पीने का पानी है और नाली की सुविधा.
केंद्र सरकार के आंकड़े के अनुसार इन झुग्गी बस्तियों में से केवल 10.2 फीसदी घर ऐसे हैं, जहां ढंकी हुई नालियां हैं.
इसी तरह 56.8 फीसदी झुग्गी बस्तियों में खुली और बदबूदार नालियां हैं.
33.1 फीसदी झुग्गी बस्तियों में भी जल निकासी का कोई प्रबंध ही नहीं है.
पीएम आवास अटका
2021-22 में केंद्र सरकार ने 7,81,999 हितग्राहियों को प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत घर आवंटित करने का लक्ष्य रखा था. लेकिन इसे भारत सरकार ने वापस ले लिया.
प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही राशि जमा करते हैं. लेकिन राज्य सरकार ने इस मद में पैसे ही नहीं दिए.
राज्य सरकार के इस रवैय्ये के कारण लाखों ग़रीब परिवार अपना घर पाने से वंचित हो गये हैं.
अनुमान है कि पौने तीन करोड़ की आबादी वाले छत्तीसगढ़ में लगभग 40 लाख की आबादी, राज्य सरकार के कारण अपना घर पाने से वंचित हो गई है.
2016-17 में शुरु हुई इस योजना में कांग्रेस सरकार के आने के बाद से ही रकम नहीं दी गई.
अधिकारियों का कहना है कि 30 अक्टूबर तक 2019-20 में राज्यांश की रकम 762.81 करोड़ और केंद्र की ओर से 1144.21 करोड़ की आवश्यकता थी.
इसमें से केंद्र सरकार ने तो 843.81 करोड़ की रकम दे दी लेकिन राज्य सरकार ने इस मद में फूटी कौड़ी भी नहीं दी. यानी पिछले साल के काम भी अटक गये हैं.
पैसे की कमी का हाल ये था कि 2020-21 में केंद्र सरकार ने 4,48,867 घरों का लक्ष्य दिया था. लेकिन राज्य सरकार ने केवल 1,57,815 घर ही स्वीकृत किए. उनमें भी ग्रहण लग गया.
पैसे की कमी से टल गया काम
छत्तीसगढ़ ख़बर को जो दस्तावेज़ मिले हैं, उसके अनुसार 2019-20 में राज्य में कुल 151073 मकान स्वीकृत किए गये थे.
लेकिन इस साल अब तक केवल 69097 मकान ही पूर्ण हो सके. वहीं 81,976 मकान अब तक नहीं बने.
इसी तरह 2020-21 में 157815 महाक स्वीकृत किए गये थे.
लेकिन इनमें से एक भी मकान पूर्ण नहीं हो पाया क्योंकि राज्य सरकार ने अपने हिस्से का पैसा दिया ही नहीं.
आदिवासी ज़िलों का बुरा हाल
सुकमा ज़िले में 2020-21 में 1500, नारायणपुर में 285, सूरजपुर में 7000, कोंडागांव में 4100, कांकेर में 7000, जशपुर में 8000, दंतेवाड़ा में 3000, बीजापुर में 250, बस्तर में 7000 और सरगुजा में सर्वाधिक 12000 गरीबों के मकान स्वीकृत किए गये थे.
लेकिन इनमें से एक भी मकान आज तक गरीबों को नहीं मिल सका.
अगर 2019-20 की बात करें तो बस्तर के 4500 में से 2235, बीजापुर के 200 में 69, दंतेवाड़ा के 2000 में से 475, जशपुर के 8000 में से 3236, कांकेर के 4389 में से 1892, कोंडागांव के 4000 में से 683, नारायणपुर के 400 में से 179, सुकमा के 1000 में से 294 और सरगुजा के 8905 मकानों में से केवल 3909 मकान ही पूरे हो सके हैं.
राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मामले में दलील दी थी कि अगर योजना का नाम प्रधानमंत्री के नाम पर है तो इसका पूरा पैसा केंद्र सरकार को देना चाहिए.