भालू की हत्या पर सवाल
आलोक प्रकाश पुतुल | बीबीसी:छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पुलिस द्वारा एक भालू की गोली मार कर हत्या के मामले को लेकर विवाद शुरु हो गया है. इलाके के एसडीएम के कहने पर की गई इस कार्रवाई से वन विभाग के अफ़सर भी हैरान हैं.
भालू को भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक में रखा गया है. इस अनुसूची में बाघ समेत ऐसे जानवरों को रखा गया है, जिनकी प्रजाति संकट में है.
ऐसे में इस भालू की हत्या को लेकर कई सवाल खड़े हो गये हैं.
भालू की हत्या के बाद वन्यजीव प्रेमियों ने भालू की हत्या के लिये ज़िम्मेवार अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की मांग की है.
बिलासपुर के मरवाही वन परिक्षेत्र के प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीणों के अनुसार भर्रीडांड के रहने वाले आदिवासी युवक भूपेंद्र सिंह कंवर मंगलवार को बरनीझिरिया डोंगरी इलाके में लकड़ी लेने के लिये गये हुए थे. दोपहर तक उनके साथी ग्रामीण गांव लौट आये लेकिन भूपेंद्र के नहीं लौटने पर ग्रामीणों ने डोंगरी के इलाके में उनकी खोजबीन शुरु की.
देर शाम ग्रामीणों ने डोंगरी में भूपेंद्र की क्षत-विक्षत लाश देखी. इसके बाद ग्रामीणों ने पुलिस व वन विभाग को इसकी सूचना दी. लेकिन पुलिस की औपचारिकता पूरी नहीं होने के कारण ग्रामीण वहीं रुक कर लाश की पहरेदारी करते रहे. देर रात गये ग्रामीणों ने देखा कि एक जंगली भालू भूपेंद्र की लाश के पास पहुंच कर उसे खा रहा है.
ग्रामीणों ने भालू पर धारदार हथियार और आग से हमला किया लेकिन भालू पर असर नहीं पड़ा. उलटे घायल भालू ने ग्रामीणों को दौड़ा दिया.
ग्रामीणों का दावा है कि बुधवार की सुबह बड़ी संख्या में पारंपरिक हथियार से लैस हो कर ग्रामीण जब मौके पर पहुंचे तो भालू भूपेंद्र के शव का 80 फीसदी हिस्सा खा चुका था.
ग्रामीणों ने जब भालू पर हमला किया तो भालू वहां से भाग कर सिलपहरी गांव में पहुंचा और वहां उसने जानवर चरा रहे कलीराम यादव नामक ग्रामीण को मार डाला. इसके बाद ग्रामीणों ने जब भालू को भगाने की कोशिश की तो भालू टस से मस नहीं हुआ.
राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी रामप्रकाश के अनुसार जब उन्हें इस बात की सूचना मिली तो उन्होंने तत्काल बिलासपुर ज़िला मुख्यालय में वन अधिकारियों को टीम बना कर भालू को ट्रेक्यूलाइज करके स्थानीय कानन पेंडारी चिड़ियाघर में लाने के निर्देश दिये.
लेकिन जब तक वन विभाग का अमला वहां पहुंचता, पेंड्रा इलाके के एसडीएम के नेतृत्व में पुलिस ने भालू को मार डाला. पुलिस के जवानों ने अपनी इंसास राइफल से 11 से अधिक गोलियां भालू को मारीं.
एसडीएम रणवीर शर्मा कहते हैं, “बुधवार की शाम चार बजे मुझे पता चला कि एक भालू आदमख़ोर हो गया है और पागल हो गया है और एक ग्रामीण को लेकर चला गया है. मैं जब सिलपहरी गांव पहुंचा तो पुलिस ने मुझसे भालू को गोली मारने की अनुमति मांगी और मैंने उन्हें इसकी अनुमति दी. इसके बाद पुलिस बल ने सफलतापूर्वक भालू को मार दिया.”
हालांकि किसी भी हिंसक वन्यजीव को बेहोश करने या उसे मारने की अनुमति राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी ही दे सकते हैं.
लेकिन राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी रामप्रकाश ऐसे किसी भी आदेश से इंकार कर रहे हैं. रामप्रकाश के अनुसार, “ हमने तो भालू को बेहोश करने का आदेश वन अमले को दिया था. लेकिन भालू को किसके आदेश पर और किन परिस्थितियों में मारा गया है, इसकी तो मुझे जानकारी ही नहीं है.”
कंजर्वेशन कोर सोसायटी से संबद्ध वन्यजीव विशेषज्ञ मीतू गुप्ता का कहना है कि भालू मूल रुप से शाकाहारी होता है. ऐसे में इस बात का अध्ययन ज़रुरी है कि भालू मानवभक्षी कैसे बना.
मीतू बताती हैं, “इससे पहले इसी इलाके में 8 जून 2011 को एक भालू को आदमखोर बता कर लाठी-डंडे से पीट-पीट कर मार डाला था और बाद में वन विभाग ने इसे स्वाभाविक मौत बता कर पल्ला झाड़ लिया था.”
बिलासपुर में सक्रिय नेचर क्लब के प्रथमेश मिश्रा ताज़ा घटनाक्रम को वन और ज़िला प्रशासन की लापरवाही का प्रतिफल मान रहे हैं. प्रथमेश का कहना है कि भालू ने ग्रामीणों को मारा, यह दुखद है लेकिन प्रशासन और वन अमला भालू को बचाने में असफल रहा.
प्रथमेश कहते हैं, “यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत सीधे-सीधे शिकार का मामला है और इसके लिये 3 से 7 साल तक की सज़ा हो सकती है. वन विभाग को इस मामले में ज़िम्मेवार अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करना चाहिये.”