छत्तीसगढ़: दिया तले अंधेरा
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के एक चौथाई सरकारी शालाओं में बिजली नहीं है. इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ सरकार इन शालाओं में कब तक बिजली की सुविधा शुरु हो जायेगी इसे बता पाने में भी असमर्थ है. छत्तीसगढ़ में कुल 15,757 शालायें हैं जिनमें से 3,933 में अब तक बिजली नहीं पहुंची है. बिजली न होने के कारण छत्तीसगढ़ के इन एक चौथाई शालाओं के लिये कम्प्यूटर की शिक्षा दूर की बात है. जाहिर है कि इन 24.96 फीसदी शालाओं के लिये डिजिटल छत्तीसगढ़ मात्र कागजी मुहावरा है.
दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ सरकार दावा करती है कि स्कूल के छात्रों के लिये डिजीटल लाकर की सुविधा दी जायेगी जिसमें वे अपने दस्तावेज सुरक्षित रख सकते हैं. जब पढ़ाई की शुरुवात ही अंधेरे में हो तो किस तरह से जीवन में उच्च तकनीक के उजाले के सपने बुने जा रहें हैं?
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में 13,864 उ. प्रा. शाला तथा 1,893 मा. शाला हैं जिनमें से 3, 816 उ. प्रा. शाला तथा 117 मा. शाला में बिजली नहीं है. इस तरह से छत्तीसगढ़ के 13 फीसदी से ज्यादा उ. प्रा. शाला तथा 3 फीसदी मा. शाला में बिजली नहीं है.
यह सत्य है कि शालायें दिन में लगा करती हैं परन्तु छत्तीसगढ़ के भीषण गर्मी में इन शालाओं के छात्रों का क्या हाल होता होगा इसकी सहज कल्पना की जा सकती है.
इसी से जुड़ा सवाल है कि बिना बिजली के इन शालाओं में छात्र-छात्राओं को किस तरह से विज्ञान की शिक्षा देना संभव हो पा रहा है.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ सरकार दावा करती है कि “छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य बन गया है जहां 24 घंटे, बिना कटौती के बिजली आपूर्ति होती है. आगामी 5 वर्षों में 40 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन प्रस्तावित है. इस तरह बढ़े हुए बिजली उत्पादन से छत्तीसगढ़ को 14 हजार मेगावॉट अतिरिक्त बिजली मिलेगी. छत्तीसगढ़ का कोरबा शहर भारत की ऊर्जा राजधानी बन रही है. यहां 3 वर्षो में 10 हजार मेगावॉट के बिजलीघर लगने से यह देश में सर्वाधिक बिजली उत्पादन करने वाला शहर बन जायेगा.”
जबकि जमीनी वास्तविकता है कि कोरबा के 544 उ. प्रा. शालाओं में से 211 में बिजली नहीं है. इसी तरह से बिलासपुर के 782 उ. प्रा. शालाओं में से 137 में बिजली नहीं है.