विकास की प्रतीक्षा में सतनामी समाज
राजेश बंजारे
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा विकासखंड डभरा का गांव है सकराली. यह ब्लॉक से 6 किलोमीटर की दूरी पर छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा मानी जाने वाली महानदी के बैराज के किनारे पर स्थित है. शांत वातावरण और चारों ओर हरे भरे खेतों के बीच बसे इस गांव की खूबसूरती देखते ही बनती है. लेकिन जितना खूबसूरत यहां का दृश्य है यहां निवास करने वाले लोगों का जीवन उतना ही असुविधाजनक है.
लोगों से बात करने पर पता चला कि 20 वार्ड मे विभाजित इस गांव कि कुल जनसंख्या लगभग साढ़े छः हजार हैं, जिनमें 9 वार्डो में सतनामी समाज के लोग निवास करते हैं.
आपको बता दें कि संतशिरोमणी गुरुबाबा घासीदास के सतनाम धर्म पथ पर चलने वाले लोगों का विशाल समूह सतनामी समाज है. जिसका प्रमुख उद्देश्य सब मनुष्यों को एक समान मानना, सत्य-प्रेम-अहिंसा, स्वतंत्रता, स्वाधीनता व समानता के सतनाम संदेश से समाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व कुरितियों के नाम पर भिन्न भिन्न वर्ण व्यवस्था में बंटे मानव समाज को ऊंच-नीच और जात-पात के नाम पर दलित कमजोर वर्ग के लोगों का शोषण से मुक्त मानव समाज की स्थापना करना है. संतनाम पंथ के प्रथम गुरु गुरुबाबा घासीदास के द्वारा सन् 1786 में सबसे पहले भारत के मध्यप्रांत में सतनाम आंदोलन की शुरुआत की गई थी.
अथक प्रयासों के बाद अनूसूचित जाति के अंतर्गत भारतीय संविधान द्वारा सतनामी समाज के लोगों को एक अलग पहचान मिल चुकी है. इसके बावजूद भी आज ये लोग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. कारण है सामाजिक एंव आर्थिक रुप से इनका विकास का न होना है.
सतनामी समाज के लोग सकराली गांव में कच्चे मकानों में रहते हैं जिस कारण उन्हें हर मौसम मे परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव के मुखिया रोहित खाण्डे ने बताया “यहां प्राथमिक, मध्य, एंव उच्च विद्यालय तो है लेकिन शिक्षकों की कमी है”.
इस गांव में आंगनबाड़ी केंद्र, डाकघर, ग्राम पंचायत भवन इत्यादि भी हैं लेकिन गांव के किनारे पर बांध होने के कारण कृषि में समस्या आती है जिससे गांव वालों की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है.
कुछ अन्य लोगो ने बताया “यहां पर खेती बहुत उन्न्त किस्म की नहीं हो पाती इसलिये कई लोग काम के लिये पलायन करके दूसरे राज्यों में जाना पसंद करते हैं. या फिर परिवार को यहां छोड़कर पुरुष बाहर कमाने चले जाते हैं”.
एक बुजुर्ग ने बताया “गांव में नियमित रुप से काम न होने के कारण लोग नशा भी करते हैं. जिसका सबसे बुरा प्रभाव युवाओं पर पड़ रहा है. हां, कुछ लोग हैं जो छोटी मोटी नौकरी करते हैं और कुछ अपनी जमीन पर खेती करते हैं. लेकिन कुछ के पास वो भी नही है”.
शिक्षा की स्थिति और भी खराब है. इस बारे में सरिता कहती है “मैनें 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी है. मेरे पिताजी दूसरे राज्य में काम करने जाते हैं और कहते हैं कि ज्यादा पढ़ लिखकर क्या करेगी. शादी करके दूसरे घर ही तो जाना है. मैं तो खूब पढ़ना चाहती थी, डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन मेरी ये इच्छा, इच्छा ही रह जायेगी इस जन्म में तो पूरी नही हो सकती”.
60 वर्षीय महिला बुधवारा ने बताया “पिछले कई सालों से लकवे की बीमारी से पीड़ित हूँ, लेकिन गरीबी के कारण इलाज नही हो पा रहा है”.
कुल मिलाकर ये बात स्पष्ट होती है कि पूर्व में किये गये कड़े संघर्षो के बाद भी सतनामी समाज कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है कारणवश विकास के पथ पर दौड़ना तो दूर चल भी नही पा रहा है. इसलिए आश्यकता है कि देश के विकास की कड़ी में जल्द से जल्द सतनामी समाज को भी जोड़ा जाए ताकि हमारी तरक्की में इन्हे अपनी भूमिका निभाने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो.
(इनपुट- चरखा फीचर्स)