छत्तीसगढ़

नेता प्रतिपक्ष ने चूक स्वीकारी

रायपुर | संवाददाता: सोमवार को रिबई पंडो के मौत के विषय पर सत्ता पक्ष ने नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव को घेर लिया. सत्तापक्ष के सदस्यों ने इस मामले में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव को घेरा और उनसे शब्द वापस लेने तथा सदन से माफी मांगने की मांग की. बाद में नेता प्रतिपक्ष ने रिबई पंडो की मौत के मामले में दिए गए अपने बयान पर चूक स्वीकारी. विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने इस पर व्यवस्था दी और यह मामला खत्म हो गया. बहस के चलते प्रश्नकाल 24 मिनट बाधित रहा.

नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहा कि वे कई बार भावुक हो जाते हैं और भावनाओं में बह जाते हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि उनसे उस दिन निश्चित रूप से चूक हुई है. उन्होंने कहा कि रिबई पंडो जिंदा थे. यह उनकी माताजी और किसानों से जुड़ा मामला था, इसलिए यह बात उन्हें लगी थी.

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि रिबई पंडो के संबंध में कही गई बातों पर उन्होंने संशोधन दिया है. मेरी जानकारी में उस समय रिबई पंडो की मृत्यु नहीं हुई थी, उस दिन उसे अस्पताल में रखा गया था. भाजपा विधायक शिवरतन शर्मा ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष ने मुझ पर झूठ बोलने का लांछन लगाया है, इस पर वे माफी मांगें.

उल्लेखनीय है कि 1992 में रिबई पंडो की भूख से मौत नहीं हुई थी. असल में 80 साल के रिबई पंडो की बहु और पोते की भूख से मौत हुई थी. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिंहाराव को सरगुजा आना पड़ा था.

लेकिन अधिकांश स्थानों पर रिबई पंडो की मौत के ग़लत तथ्य प्रकाशित व प्रसारित होते रहे. कई शोधग्रंथों और किताबों में भी रिबई पंडो की भूख से मौत के बाद प्रधानमंत्री के सरगुजा आने का उल्लेख आज तक जारी है. संभवतः छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव भी इसी भुलावे में आ गये.

गुरुवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा में भूख से मौत को लेकर होने वाली बहस पर भाजपा प्रवक्ता और विधायक शिवरतन शर्मा को चुनौती देते हुये नेता प्रतिपक्ष ने विधानसभा सचिव को सशर्त इस्तीफा दे दिया था. नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव का कहना था कि 1992 में रिबई पंडो की भूख से मौत हुई थी. सरकार इस बात की जांच करा ले. अगर उनकी कही बात ग़लत साबित हो जाये तो फिर उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाये.

तथ्य ये है कि आज के बलरामपुर ज़िले के बीजाकुरा गांव के रिबई पंडो की बहु जकली बाई और उसके पोते की मौत हुई थी और इसकी खबर सबसे पहले दैनिक देशबन्धु में पत्रकार कौशल मिश्रा ने 29 फरवरी 1992 को प्रकाशित की थी.

बाद में कई महीनों तक रिबई पंडो के साथ-साथ जकली बाई के पति रामविचार पंडो से देसी-विदेशी मीडिया ने बातचीत की. रिबई से श्यामाचरण शुक्ल औऱ मोतीलाल जैसे तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने मुलाकात भी की.

3 अप्रैल 1992 को सरगुजा के तत्कालीन सांसद खेलसाय सिंह ने इस मुद्दे को लोकसभा में उठाते हुये सरकार से कहा कि सुंदरलाल पटवा की सरकार अकाल और भूख से हो रही मौतों को लेकर गंभीर नहीं है. रिबई पंडो की बहु और उसके पोते की भूख से मौत हो गई क्योंकि न तो उनके पास अनाज है और ना ही पैसे. यहां तक कि रिबई पंडो का भाई भी भूख के कारण गंभीर हालत में है. खेलसाय सिंह ने इस मामले में केंद्र से एक प्रतिनिधिमंडल भेजने की भी मांग की थी. लोकसभा में दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने भी मंदसौर और सरगुजा में भूख से मौत को लेकर सवाल खड़े किये थे.

अंततः मई 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव सरगुजा पहुंचे. उसी समय प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिंहा राव ने ने नई खाद्य नीति की घोषणा भी की थी.

लेकिन बाद के दिनों में भी रिबई पंडो की ही भूख से मौत की खबर मीडिया में छाई रही. जिस देशबन्धु अखबार ने 29 फरवरी 1992 को सबसे पहले रिबई पंडो की बहु और पोते के भूख से मौत की खबर छापी थी, उस अखबार ने भी 10 फरवरी 2007 समेत कई अवसरों पर यही छापा कि फरवरी 1992 में रिबई पंडो की भूख से मौत हो गई थी.

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