छत्तीसगढ़बिलासपुर

चुपचाप चली गई रश्मि जी…

रायपुर | आलोक प्रकाश पुतुल: बैगा महापंचायत की संयोजक रश्मि जी नहीं रहीं. आदिवासियों के बीच बहुत थोड़े से जो लोग काम कर हैं, उनमें थीं रश्मि. साथी प्रदीप शर्मा ने उनका नाम देवी महामाया रखा था. उनके सामने और पीठ पीछे भी उनके लिये हम यही संबोधन इस्तेमाल करते थे.

रत्नेश्वर नाथ जी के निधन के बाद अकेली जरुर पड़ गई थीं लेकिन लड़ने का सिलसिला लगातार जारी रहा. कहीं से भी फोन आ जाता- पंडरिया के फलां गांव में बड़ी संख्या में बैगा आदिवासी बीमार हैं. कुछ करिये यार ! शहर में बैठे हुये हो आप लोग, किसी को भेजो, केवल लिखने से क्या होगा.

कभी फोन पर संदेश आता-चीरपानी गांव में पिछले 4 दिनों में 5 लोगों की मौत हो गई है. किसी को बोलिये तो, कोई तो इलाज के लिये आये.

भरी दोपहरी बिलासपुर में मेरे दफ्तर पहुंचतीं-कलेक्टर को ज्ञापन देने आई थी. फिर से बैगाओं को खदेड़ रहे हैं.

खुद ही एक कप चाय बना लेतीं और चाय खत्म होते न होते कहतीं- लोरमी लौटना होगा, बच्चे इंतजार कर रहे होंगे. फिर किसी बात पर ठहाके के साथ विदा हो जातीं.

सात बैगा बच्चे उनके साथ रहते थे. एक बच्ची तो तब से साथ थी, जब वो केवल 2 महीने की थी.

मुंगेली अलग जिला बनने के बाद उनका बिलासपुर आना कम हो गया था. कभी कभार खबरों के सिलसिले में फोन पर बात हो जाया करती थी.

2003 में पंडरिया में नौजवान बीरजू बैगा की हत्या के बाद जिन लोगों ने बैगा आदिवासियों के आंदोलन को देखा होगा, वो जानते हैं कि रश्मि जी के प्रति बैगा आदिवासियों के मन में कैसा भाव था.

2007 में फरवरी के महीने में जब राजधानी रायपुर नींद में डूबी हुई थी, तब हज़ारों बैगा आदिवासी मुख्यमंत्री निवास को घेरने पहुंच गये थे. शहर को गश आ गया. इससे पहले किसी ने न सुना था, न देखा था कि हजारों आदिवासी सुबह 4 बजे राज्य के मुखिया का घर घेरने निकल गये हों. रश्मि उन बैगा आदिवासियों की नेता थी.

अभी फरवरी में जब डिंडौरी से रिपोर्ट कर के लौट रहा था तो कुकदुर के इलाके में उनका फोन आया- मेरे इलाके में हो यार ! लोरमी मिलते हुये जाना भाई.

मैंने हंसते हुये कहा- महामाया, आपको तो रॉ में होना था. मैंने माफी मांग ली और तय हुआ कि वो जल्दी ही बिलासपुर आयेंगी.
आलोचना और असहमतियों के लिये हमेशा गुंजाइश रहती है, रश्मि जी के साथ भी थीं. लेकिन अपने हिस्से की दुनिया में ही सही, समाज के बारे में सोचने वाले लोग कम ही बचे हैं.

कोई नहीं बचेगा, यह तो बहुत साफ है लेकिन पूछने का मन करता है कि रश्मि जी, इस तरह चुपचाप तो नहीं जाया जाता न !!!

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