अंग्रेजों से लड़ा था छत्तीसगढ़
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने आजादी की लड़ाई में राज्य के लोगों की भागीदारी को याद किया. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने मासिक रेडियो वार्ता ‘रमन के गोठ’ में छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया. उन्होंने बताया कि आजादी की लड़ाई से छत्तीसगढ़ का पुराना रिश्ता रहा है. यहां पर 1857 से पहले ही अंग्रेजों का सशस्त्र विरोध शुरु हो गया था.
उन्होंने कहा- फिरंगियों के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ सन 1857 में पूरे देश में जोरदार आक्रोश फूटा, जिसे हम ’आजादी की पहली लड़ाई’ कहते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की यह कहानी उसके 33 साल पहले 1824 में ही शुरू हो गई थी.
इस सिलसिले में उन्होंने सन् 1824 में अबूझमाड़ के परलकोट क्षेत्र के वीर गैंदसिंह को याद करते हुए कहा कि वे परलकोट में वनवासियों को छापामार युद्ध सिखा रहे थे. अंग्रेजों को इसकी खबर लगी. उन्होंने कर्नल एगन्यू के नेतृत्व में फौज को भेजा. गैंदसिंह की फौज जमकर लड़ी, लेकिन वे गिरफ्तार कर लिए गए और 10 जनवरी 1825 को परलकोट महल के सामने उन्हें फांसी दे दी गई.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सोनाखान के वीरनारायण सिंह के महान संघर्षों का विशेष रूप से उल्लेख किया. उन्होंने सन् 1858 में रायपुर स्थित अंग्रेजों की फौजी छावनी के सिपाही ठाकुर हनुमान सिंह के नेतृत्व में हुई सशस्त्र बगावत का जिक्र करते हुए कहा कि इस क्रांति के नायक बने सत्रह भारतीय सिपाहियों को फिरंगियों ने पुलिस लाईन रायपुर में खुलेआम तोप से उड़ा दिया था.
डॉ. रमन सिंह ने बस्तर के सन 1876 के मूरिया विद्रोह का जिक्र करते हुए सन 1910 में वीर गुण्डाधूर के नेतृत्व में बस्तर के ’भूमकाल’ विद्रोह पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा-सन 1918 में बिहार से शुरू हुए ’ताना भगत आंदोलन’ की लपटें सरगुजा अंचल में भी फैल गई थी और उसमें कई सेनानी शहीद हुए थे.
डॉ. रमन सिंह ने आजादी की लड़ाई के दौरान सन् 1920 और सन 1933 में महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ प्रवास को भी याद किया. इसी कड़ी में उन्होंने पंडित सुन्दरलाल शर्मा, माधवराव सप्रे, महंत लक्ष्मी नारायण दास, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, पंडित वामनराव लाखे, डॉ. खूबचंद बघेल, इंदरू केवट, डॉ. राधाबाई, मिनी माता जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण किया.