गर्मी में धान की खेती न करे- रमन
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपील की है गर्मी में धान की फसल न लगाये. उन्होंने राज्य में भू-जल के स्तर में गिरावट को देखते हुये किसानों से अपील की- मैं अपने किसान भाई-बहनों से अपील करता हूं कि वे गर्मियों में धान को छोड़कर कम पानी में होने वाली अन्य किसी भी फसल की खेती करें.
डॉ. सिंह ने प्रदेशवासियों का आव्हान करते हुए कहा कि हम सबको अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए पानी बचाने की जरूरत है.
मुख्यमंत्री ने कहा है कि गर्मी के मौसम में धान की खेती के लिए काफी मात्रा में पानी की जरूरत होती है. एक किलो धान पैदा करने में लगभग चार हजार लीटर पानी की खपत होती है. डॉ. सिंह शुक्रवार शाम लोक सुराज अभियान के तहत जिला मुख्यालय बालोद में आयोजित विशाल जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे.
जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा- इस बार बीते मानसून के दौरान कम बारिश के कारण राज्य में सूखे की स्थिति बनी और पहली बार न केवल अकाल बल्कि बहुत से क्षेत्रों में निस्तारी और पेयजल का भी संकट आया. जिन इलाकों में गर्मी के धान की खेती की जा रही है, वहां भू-जल संकट तुलनात्मक रूप से अधिक है.
भूजल स्तर के गिरने के कारण
1. नवीनतम तथा संकर प्रजातियों का उपयोग- फसलों की नवीनतम बौनी एवं संकर प्रजातियों में सिंचाई जल की अधिक आवश्यकता होता ही. इन प्रजातियों में अधिक उत्पादन हेतु अधिक मात्रा में पोषण-तत्वों की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति रासायनिक उर्वरकों द्वारा की जाती है, परिणामस्वरूप अधिक सिंचाई जलावश्यकता के चलते अधिक मात्रा में भूजल का दोहन या नदियों एवं नहरों के पानी का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होता है, जो भूजल स्तर के पतन के मूल रूप से उत्तरदायी है.
2. अधिक पानी चाहने वाली नकदी फसलों का उगाया जाना– वर्तमान में हम कृषि के मूलभूत सिद्धांत ‘फसल चक्र’ को भूलते जा रहे हैं. किसान केवल अधिक मात्रा में धनार्जन की इच्छा से अधिक पानी चाहने वाली नकदी व अन्य फसलों जैसे-आलू, गन्ना, धान, गेहूं इत्यादि का अधिकाधिक उत्पादन कर रहे हैं. परिणामस्वरूप इन उत्पादों हेतु अधिक सिंचाई जल की आवश्यकता की पूर्ति की इच्छा से भूजल का दोहन हो रहा है.
3. कृषि का यंत्रीकरण- आजकल कृषि के यंत्रीकरण के फलस्वरूप जल के दोहन में अंधाधुंध वृद्धि हो रही है, क्योंकि पंपसेट व ट्यूबवेल द्वारा कम लागत व कम समय में अधिक जल बाहर निकाला जाता है, जिसके कारण हमारे कृषक कृषि फसलों में बाढ़ सिंचाई का प्रयोग करते हैं, अतः इससे भूजल स्तर अधिक तीव्र गति से पतन को प्राप्त हो रहा है.