रायपुर साहित्य महोत्सव का शुभारंभ
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने शुक्रवार को तीन दिवसीय रायपुर साहित्य महोत्सव का शुभारंभ किया. उन्होंने छत्तीसगढ़ सहित देश के विभिन्न राज्यों से आए साहित्यकारों को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य मनुष्य के विचारों की अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है. विचारों में भिन्नता हो सकती है, लेकिन वैचारिक विभिन्नताओं में ही नये विचारों के अंकुर खिलते हैं. हमें नये विचारों का हमेशा स्वागत करना चाहिए, सबके विचारों को और असहमति अथवा विरोध को भी सुनना चाहिए.
मुख्य अतिथि की आसंदी से समारोह में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा कि सामाजिक समरसता छत्तीसगढ़ की मिट्टी में रची-बसी है. यहां के जन-जीवन पर संत कबीरदास और गुरू घासीदास जैसे महान संतों की वाणी का अमिट प्रभाव है. यह मेहनतकश, ईमानदार और सहज-सरल स्वभाव के लोगों की धरती है.
गजानंन माधव मुक्तिबोध मंडप में आयोजित शुभारंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता छत्तीसगढ़ के पर्यटन और संस्कृति मंत्री अजय चन्द्राकर ने की. डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ की दो करोड़ 55 लाख जनता की ओर से साहित्यकारों का स्वागत करते हुए रायपुर साहित्य महोत्सव के आयोजन को एक गौरवशाली और अभिभूत कर देने वाला क्षण बताया.
उन्होंने कहा कि इस आयोजन में हिन्दुस्तान के कोने-कोने से साहित्य के ऐसे हस्ताक्षर यहां मौजूद है, जिन्होंने अपनी लेखनी से देश-विदेश में अपने साहित्य की पहचान बनायी है. उनकी उपस्थिति से छत्तीसगढ़ भी गौरवान्वित हो रहा है.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर छत्तीसगढ़ की महान साहित्यिक-सांस्कृतिक विभूतियों- राजा चक्रधर सिंह, पंडित मुकुटधर पाण्डेय, गजानंन माधव मुक्तिबोध, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, हबीब तनवीर, पंडित सुन्दरलाल शर्मा, शंकर शेष, सत्यदेव दुबे, श्रीकांत वर्मा को विशेष रूप से याद किया. उन्होंने राज्य के वरिष्ठ हिन्दी कवि विनोद कुमार शुक्ल, पंडवानी गायिका तीजनबाई और अन्य अनेक संस्कृति कर्मियों के योगदान का भी उल्लेख किया.
मुकुटधर पाण्डेय मंडप में प्रथम सत्र में ‘बस्तर की बोलियां और साहित्य’ विषय पर प्रतिभागी सर्वश्री यशवंत गौतम, रूद्रनारायण पाणिग्रही, शिवकुमार पाण्डेय और श्रीमती शकुनतला तरार तथा सूत्रधार के रूप में जोगेन्द्र महापात्र ने अपने विचार व्यक्त किए. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी मंडप में प्रथम सत्र छत्तीसगढ़ के दिवंगत साहित्यकारों पर ‘स्मृति एकाग्र’ के नाम से केन्द्रित रहा. इसमें डॉ. रविन्द्र नाथ मिश्र, सुशील भोले और नन्दकिशोर तिवारी ने अपने विचार प्रकट किए.