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संवाद और संघर्ष से बदलाव आयेगा

रतनपुर | उस्मान कुरैशी: गांधीवादी चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता राजगोपाल पीवी से छत्तीसगढ़ खबर की खास बातचीत. गांधीवादी चिंतक सर्वोदयी और सामाजिक कार्यकर्ता राजगोपाल पीवी ने कहा कि संवाद और संघर्ष के माध्यम से वर्तमान स्थितियों को बदलना होगा. अगर नहीं बदलेंगे तो सरकार की नीतियों से जल जंगल और जमीन पूंजीपतियों के हाथों में चली जाएंगी.

गामीण इलाकों की जमीनी हकीकत को जानने देश भर में दौरे कर रहे गांधीवादी चिंतक सर्वोदयी राजगोपाल पीवी रतनपुर पहुंचे. यहां ग्रामीण इलाकों की रियालिटी पर छत्तीसगढ़ खबर से खास चर्चा करते राजगोपाल ने कहा कि डिंडोरी से कवर्धा तक साढ़े तीन सौ किलोमीटर यात्रा पूरी कर यहां आया हुं. यहां के भी जमीनी हालात वही हैं तो पहले थे. पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए कानून तो बने है. पेसा, वन अधिकार अधिनियम, आदिवासी अत्याचार अधिनियम जैसे कई कानून बने है. पर इन तमाम कानूनों के बावजूद गांवों में हालत वैसी की वैसी है जैसे पहले थी.

मैनें 2000 में पदयात्रा की थी. अब भी कर रहा हुं. पर खास फर्क धरातल पर दिखाई नहीं पड़ रहा है. वे शहरों में फर्क आने की बात स्वीकारते हुए कहते हैं कि सड़कें चौड़ी हुई है, मकान बड़ा बना है. मोटर गाड़ियां ज्यादा दौड़ रही है. पर आम लोगों के लिए कुछ नहीं हुआ. इसके दो कारण है एक तो सरकारी कर्मचारीयों को जिस प्रकार संवेदनशील बनाना चाहिए, आदिवासियों को समझना, उनकी स्थिति को समझना, गरीबों तक पहुंचना, उनकी सेवा करने की मानसिकता अभी तक नहीं हुई है.

इसको कल्चरल सेंसाइजेशन कहते है. आप संस्कृति के प्रति सम्मान रखने के बजाय निरादर रख रहे है. इस लिए लोगों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं. दूसरा गर्वर्नेंश का जो सिस्टम है. सरकार चलाने का जो तरीका है. वो शहरों में कही खो गया है. गांव तक जाना, गांव में रहना, गांव वालों का काम करने के साथ उनकी आवश्यकता को कोई समझ नहीं रहा है. सोंचते है शहर को चमकाने से, शहर को सजानें से, सोचते है तो कि सब खुश हो जाएंगे. और हम कहेंगे कि छत्तीसगढ़ एकदम बढ़िया हो रहा है. गांवों में जाने की आदत, गांवों में सेवा के लिए पहुंचने का, गर्वर्नेंश का अंतिम व्यक्ति तक पहुंचनें की बात बिल्कुल नही हो रही है.

इसलिए आज भी वृद्वावस्था पेंशन के लिए, विधवा पेंशन के लिए, राशन कार्ड के लिए, पानी के लिए, बिजली के लिए, सड़क के लिए तरस रहे है. बीते 15 साल के दरमियान कोई ज्यादा गांवों में परिवर्तन नहीं हुआ. ये देख के मैं भी दुखी हुं. इसलिए दो कार्यक्रम एनाउंस किया गया है. 30 और 31 जनवरी को उपवास करेंगे. रायपुर में उपवास इसलिए कि सरकार को सदबुद्वि दें.

दूसरा उसके बाद दिल्ली की ओर कूच करेंगे. 15 मार्च से आगरा से जहां पिछली बार दस्तखत किया था 10 बिंदुओं की मांगों को लेकर आवासीय मु्द्दा जमीन, महिलाओं के अधिकार को लेकर आगरा से दिल्ली की ओर कूच करेंगे. और उस समय संसद का सत्र चल रहा होगा, पूरा दबाव बनाया जाएगा. संवाद और संघर्ष के माध्यम से वर्तमान स्थिति को बदलना होगा. अगर नहीं बदलेंगे तो सरकारी नीतियों के तहत जल जंगल और जमीन की जो पूंजी है पूंजीपतियों के हाथ में चला जाएगा उससे हिंसा बढ़ेगी और साधारण लोग परेशान होंगे.

उन्होने कहा कि हम एक लंबी योजना ले के चल रहे है. और 2030 में 10 लाख लोगों को एकत्रित करने की घोषणा की है. बड़ी संख्या में लोग वहां उतरेंगे और कहेंगे हमें सत्ता परिवर्तन नहीं व्यवस्था परिवर्तन चाहिए. इस व्यवस्था को बदलना है. तब जाकर स्थिति बदलेगी. पूरी योजना ले के देश भर में भ्रमण कर रहा हुं. छोटे छोटे संगठनों को जोड़ रहा हुं. और उम्मीद करता हुं कि ये देश जाग के खड़ा होगा अपनी समस्याओं को हल करने के लिए.

देश के विकास के लिए बन रही नई योजनाओं और कानूनों पर राजगोपाल पीवी कहते हैं कि कानून बनाते समय हमने कहा कि उसका मानिटरिंग सिस्टम करो. आप कानून बनाते है उसका पालन मानिटरिंग नही होता है. मनरेगा का कानून बनाया उसकी मानिटरिंग नहीं है. कानून का पालन हो रहा है कि नही उसे देखने के लिए कोई पावर फूल कमेटी नही है. वर्तमान व्यवस्था से कोई भी कानून लागू करना कठिन है.

उन्होंने ने कहा कि छत्तीसगढ़ में उम्मीद इसलिए कर रहा था कि ये हिंसा की समस्या से लड़ रहा है. और हिंसा का कारण है समस्याएं, जहां समस्याएं हैं वहां हिंसा में विश्वास करने वाले संगठन आसानी से प्रवेश कर लेते है. हमने कहा कि समस्याएं हल कर दो तो हिंसा के लिए गुंजाईश नहीं रहेगी. जहां पानी गंदा है वहां मच्छर पैदा होगा. ये समझ सरकार के अंदर नहीं है. व्यवस्था कैसे बदलनी है, मानिटरिंग कैसे करनी है उन्ही को सोचना है. हम तो सिर्फ दबाव बना सकते है.

जन संगठन की भूमिका है कि सरकार पर दबाव बनाए और सरकार को काम करने के लिए बाध्य करें. उस भूमिका में हम हमेशा सक्रिय है. लेकिन जिस भूमिका निभाने के लिए उनका चयन हुआ है. उसे निभाने के लिए उन्हे तैयार होना है. अपने कर्मचारियों से काम लेना उनका काम है. क्योकि वेतन वे दे रहे है. सहीं लोगों का चयन कर सके इसके लिए मतदाताओं को प्रशिक्षित करना होगा . अनफारचुनेटली 65 साल की आजादी में हमने सारे मतदाताओं को समझा लिया है कि शराब और साड़ी मिलने से वोट देना है. राजनीति के पूरे ढ़ांचे को जाति में, धर्म में, शराब में, साड़ी में बांटने से हमने इस देश की हालत को गंभीर बना दिया है. डेमोक्रेसी को इन सब चीजों ने कमजोर किया है. मजबूत डेमोक्रेसी में लोगों को खड़ा करना और सत्ता को बदलने के बदले व्यवस्था को बदलना लंबी लड़ाई है. इसके लिए व्यापक जनशक्ति की जरूरत है. उसी काम में हम लगे हुए है.

सामाजिक आर्थिक विषमता को नक्सली समस्या का कारण मानते हुए राजगोपाल पीवी कहते हैं कि लोगों को ये महसूस हो कि उनकी समस्याओं को कोई सुन नही रहा है. उनकी समस्याओं को सुनने के लिए कोई बंदूकधारी बाहर से आ जाए तो वे प्रभावित हो जाते है. पटवारी, फारेस्ट गार्ड को ठीक करने से आम आदमी प्रभावित होता है. उनको ये पता नहीं होता कि लंबी अवधि में ये हमारे सिर पर आने वाला है. परेशान करने वाला है. क्योंकि हमारी बोलने की आजादी को छीनने वाली है. ये एहसास शुरू में तो होता है, बाद में पता चलता है. मुझे लगता है कि स्वस्थ्य समाज में शस्त्र वालों की कोई गुंजाईश नहीं है.

महात्मा गांधी ने कहा है कि हर गांव स्वतंत्र रूप से अपने कार्यों का संचालन करें और स्वावलंबी हो. उन्होने कभी नहीं सोचा कि दिल्ली में सत्ता का केन्द्रीयकरण होगा . लम्बी अवधि में तो सत्ता के केन्द्रीयकरण से बहुत नुकसान हुआ है. केन्द्रीयकृत व्यवस्था को विकेन्द्रीकृत व्यवस्था में बदलना है विकेन्द्रीकृत राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था से ही देश चल पाएगा गया.

इतना बड़ा देश केन्द्रीयकृत व्यवस्था से नहीं चल सकता है. मैं शुरू से इस पक्ष में नहीं हूं कि लोगों को स्वालम्बी बनाने के बजाय परावलम्बी बनाए. पिछले कई वर्षो से जारी सरकार की कल्याणकारी तरीके वेलफेयरिस्ट स्टाईल है ने लोगों से जल-जंगल-जमीन छीन के कम्पनियों को दे दिया. सरकार ने योजनाओं के नाम पर लोगों को गढ्ढ़ा खोदने के काम में लगा रखा है. गढ्ढ़ा खोद के पैसा कमाओं और एक रूपये का चावल खाओं. जल-जंगल की जमीन इंदल-जिंदल, अम्बानी-टम्बानी हो जायेगी. स्वावलंबी समाज बनाने के बजाय ऐसे कार्यक्रमों ने लोगो को उलझाया है. लम्बी अवधि में इन कार्यक्रमों से कोई बहुत कुछ निकले वाला नहीं है स्वावलंबी होने हर व्यक्ति को अपने पैरों में खड़ा होने के लिए तैयार होना होगा. ये जल जंगल जमीन के आधार पर होगा. सरकार के स्कीम से नहीं होगा.

राजगोपाल पीवी ने कहा कि मैं अभी फ्रांस में इग्लैण्ड में घूम के आया हूं. फ्रांस और इग्लैण्ड को एक समय सबसे धनी देश माना जाता था आज स्थिति बहुत खराब है क्योंकि यहां के लोग इस भरोसे बैठे रहे कि हमारी पढ़ाई की, पेंशन की व्यवस्था सरकार करेगी. जब तक वहां कि सरकार दुनिया की कालोनियों को लूट रहा था तब तक ये योजनाएं थी. आज सरकार के पास पैसा नहीं है. तो पेंशन नहीं है, पढाई की व्यवस्था नहीं है, गरीबी छा गई है. वहां लोगो के अंदर आक्रोश आ गया है वो हमसे पूछ रहे हैं कि तुम इस रास्ते पर क्यों चल रहे हो जिस रास्ते पर चल कर हमारी यह हालत ऐसी हो गई है तुम तो गांधी के रास्ते पर चलो स्वावलंबी समाज की रचना करो. कल्याणकारी व्यवस्था सही व्यवस्था नहीं है. टुकड़ा पकड़ा दो और बड़ी चीजे लूट कर ले जाओ. ये व्यवस्था सही नहीं है. लोगों को अपने पैरो में खडे़ होना सिखाना. उसी की तैयारी करनी है.

देश की बिगड़ती सद्भावना पर राजगोपाल पीवी कहते हैं कि गांधी के मानने वालों में हो तो आपका धर्म क्या है इससे मतलब नहीं लेकिन समाज के लिए आप क्या कर रहें हैं वो ज्यादा महत्वपूर्ण है. आप मुस्लिम हो तो अच्छा मुस्लिम बनों, हिन्दू हैं तो अच्छा हिन्दू बनों, ईसाई हो तो अच्छा ईसाई बनों. एक दूसरे के धर्म परिवर्तन से कोई अच्छा थोड़ी बन जाता है. उससे मनुष्य बदलता कैसा है ,मनुष्य को बदलकर मानवीय बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण है. धर्म के नाम पर जाति के नाम पर लड़ाई करना देश को विभाजित करके स्वस्थ्य समाज की रचना नहीं होगी .

आम आदमी पार्टी के पराभाव पर वे कहते हैं कि आम आदमी पार्टी के प्रारभिक अवस्था में पार्टी बनने के पहले मैं उनकी कोर कमेटी के सदस्य था. अन्ना के आंदोलन में तो मैं कहता था कि इस देश में सफलता प्राप्त करना है तो शहर के मुद्दो को लेकर आप आगे नहीं बढ़ सकते हैं क्योकि ये देश गांवों का देश है पांच लाख गांव है. गांव के मुद्दों को समझों, ग्रामीणों के संघर्ष को समझों, उनके मुद्दों को लेकर उनको संघर्ष से जोड़ों ताकि उनको भी लगे कि उनकी भी बातें हो रही है.

आम आदमी पार्टी में आये अधिकतर लोग शहरी संदर्भ से थे. शहर के मुद्दों को लेकर आप राष्ट्रीय पार्टी नहीं बना सकते है. राष्ट्रीय पार्टी बनेगा जल-जंगल-जमीन से, इस देश के 70 फीसदी लोग आज भी खेती कर रहें है. खेत तेजी से लोगों के हाथों से निकलते जा रहे है. पानी को बोतल में बंद कर 15 रूपए में बेच रहें हैं सारा पैसा उनकी जेब में जा रहा है. वायु प्रदूषित हो रही जंगल का विनाश हो रहा है . जल-जंगल-जमीन और आम आदमी जुड़े मुद्दे को उठाये बिना आम आदमी पार्टी नहीं बन सकती है. ये बातें मैं पहले से कह रहा और आज भी कह रहा हुं. आम आदमी पार्टी बनाना है तो देश के 70 फीसदी आम आदमी जहां रहते है वहीं पहुंचना होगा.

जल जंगल जमीन की बाते करने वालों को सरकार नक्सली मान लेती है के सवाल पर राजगोपाल पीवी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ सहित अन्य कई प्रांत की सरकारें बहुत आसानी से सामाजिक संगठनों को अपने रास्ते से हटाना चाहती है. सामाजिक संगठन सही मुद्दे उठा रही है उनकों चुनाव नहीं लड़ना है. उनको सफलता भी नहीं चाहिए उनकों ख्वाहिश भी नहीं है. लोगों की सेवा करने आये हैं तो लोगों के मुद्दों को उठाएंगे ही. लोगों के मुद्दों को उठाने वाले लोगों को रास्ते से हटाना है तो उनके पीछे पुलिस लगा दो. कुछ तो कारण बताना पड़ेगा तो कह दो कि नक्सलियों के समर्थक है.

मैंने कई बार केन्द्रीय सरकार से कहा, प्रेसीटेंड ऑफ इंडिया से कहा, प्रांतीय सरकार से कहा, रमन सिंह से भी मिल के कहा है, आज रिकार्ड में कह रहा हुं. समस्याओं को हल करने आपको सामाजिक संगठनों की मदद लेनी चाहिए. लोगों के साथ वो हैं पार्टी वाले नहीं हैं . उनकी मदद लेकर हम समस्याओं को हल कर सकते हैं. नक्सलिजम समाप्त हो जायेगी. मेरा अनुभव है चम्बल घाटी के डाकूओं का समर्पण हमने कराया. 670 डाकूओं का समर्पण हमारे आश्रम में हुआ,कैसे हुआ होगा खूंखार डाकू लवसिंह, माधो सिंह, माखन सिंह, लाखन सिंह ने कैसे हथियार डाल दिया होगा तो 670 डाकूओं को हथियार डलवाने वाले लोगों से कहोगे कि तुम नक्सली हो.

हम तो अहिंसक भारत बनाना चाहते है. हम सिर्फ बंदूक की हिंसा की बात नहीं कर रहे है. शोषण अत्याचार दमन भ्रष्ट्राचार सब हिंसा है. तो उस हिंसा को भी समाप्त करना है. सिर्फ एक प्रकार की हिंसा खत्म कर देने से समाज अच्छा नही हो जाता. अहिंसक समाज की रचना में सामाजिक आंदोलन को साथ ले तब आप एक अहिंसक समाज बना सकते है.

सरकारी कर्मचारियों के भरोसे रहोगे तो नहीं बनेगा. इसके लिए सैद्वांतिक समझ चाहिए. सिर्फ पैसे बनाने जो लोग घूम रहे हैं वो क्या समाज परिवर्तन का काम कर लेंगे. सामाजिक संगठनों को साथ ले के करो ऐसा मैं कह रहा हुं. कई बार कहा है आज भी कह रहा हुं. अभी मैंने पत्र भी लिखा प्रधानमंत्री को तो उसने वही कहा आपने नेपाल में नक्सलियों को हथियार डालने कॉल दिया इसके लिए बधाई. लेकिन हथियार ऐसे ही नहीं डालते, हमको अंदर जा के माहौल बनाना पड़ेगा. और अंदर जाने के लिए सर्वोदयी गांधीवादियों को कहिए ना, मारा जाएगा तो वही तो मारा जाएगा ना, आपका क्या जाता है उनको अंदर जाने तो दें.

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