महिलाओं के दिमाग पर बंधन नहीं
रायपुर | एजेंसी: छत्तीसगढ़ के रायपुर में हो रहे साहित्य महोत्सव में मैत्रीय पुष्पा ने कहा स्त्री के दिमाग पर बंधन नहीं है. हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श की सशक्त हस्ताक्षर मैत्रीय पुष्पा ने कहा कि आज के दौर में तीन चीजों ने स्त्री को स्वतंत्रता दी है, जिसमें पहला कुकिंग गैस एवं किचन एप्लाएंसेस, दूसरा गर्भ निरोधक और तीसरा मोबाइल फोन.
उन्होंने कहा कि हमारे बुंदेलखंड में महिलाएं मायके से साड़ी नहीं मोबाइल फोन मांगती हैं और घूंघट की आड़ से मोबाइल पर बात करती हैं. आज मोबाइल फोन महिलाओं की आवाज बन कर उभर रहा है. ये तमाम छोटी-छोटी चीजें हैं जिसने आज की स्त्री को स्वतंत्रता दी है.
रायपुर साहित्य महोत्सव में भाग लेने राजधानी पहुंची मैत्रीय पुष्पा ने एक साक्षात्कार में कहा कि पुरुष लेखक अनुमान से महिला चरित्र गढ़ते हैं जबकि महिला लेखिका अनुमान से पुरुष चरित्र लिखती हैं. यह स्थिति दोनों पर समान रूप से लागू होती है.
उन्होंने कहा कि शुरू में लिखने के दौरान वे स्त्री विमर्श शब्द तक से परिचित नहीं थीं और न ही उन्होंने कभी फ्रांस की महिला लेखिका सीमोन-डे-बोउव का नाम भी सुना था.
वे अपने ग्रामीण परिवेश के बीच से उपन्यास व कहानियां लिखती रहीं परंतु लोगों ने उन्हें स्त्री विमर्श की लेखिका का लेबल चस्पा कर दिया. आलोचकों का कहना था कि मैं स्त्री विमर्श की चर्चा करती हूं इसलिए पुरुष विरोधी हूं जबकि मेरे लेखन में पुरुष भी आते हैं, बिना दोनों के कोई रचना ही नहीं हो सकती है. ऐसे में मैं पुरुष विरोधी कैसे हो गई? मैं पुरुष विरोधी नहीं हूं बल्कि मैंने पुरुष के शासन का विरोध किया है.
हमें पुरुष सहयोगी चाहिए न कि शासक. उन्होंने कहा कि उनका स्त्री विमर्श सीमोन डे बोउव के पाश्चात्य माडल पर आधारित नहीं है बल्कि भारतीय मुहावरे में है. हमारी शिकायत अधिकार की मांग से है. यह कोई पाश्चात्य की देन नहीं है यह हमारे लोक-गीतों में भरा पड़ा है, आप लोकगीतों को तो सुनिए सब पता चल जाएगा.
स्त्री विमर्श का अर्थ क्या? केवल मांसलता है, इस पर लेखिका ने कहा कि बिल्कुल नहीं, हर किसी का शरीर पांच कर्मेद्रियां और पांच ज्ञानेन्द्रियों से मिल कर बना होता है लेकिन पुरुष सत्ता सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के मामले में एक ही अंग को लेकर पिला पड़ा रहता है यह कहां तक उचित है. साहित्य में उससे इतर भी बहुत कुछ और है.
महिलाओं के शरीर पर पाबंदी है लेकिन उसके दिमाग पर कोई बंधन नहीं है.
उन्होंने कहा कि जब स्त्री अपने उसी दिमाग का इस्तेमाल करती है तो पुरूष सत्ता को संकट दिखता है. गांवों में तो देखने सुनने तक पर पहरा होता है. मैत्रीय पुष्पा शर्मा का कहना था कि हमारी लेखिकाएं तक इसका विरोध नहीं करती हैं उनको भी आलोचकों का भय होता है.