कुपोषण का मारा, रायपुर बेचारा
रायपुर | एजेंसी: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कुपोषण ने अपने पैर पसार लिये है. इसकी जानकारी तब मिली जब एक सरकारी संस्थान के शोध के नतीजों ने इसके आकड़े प्रस्तुत किये. गौरतलब है कि कभी छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता था.
हालांकि छत्तीसगढ़ में कुपोषण को कम करने के लिये सरकार ने कई तरह के कार्यक्रम की घोषणा कर रखी है. दावे जरूर किये जाते हैं कि छत्तीसगढ़ ने खाद्य सुरक्षा कानून को सबसे बेहतर ढ़ंग से लागू किया है परन्तु पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय द्वारा किये गये शोध के नतीजें दिगर कहानी बयां कर रहे हैं. सवाल किये जा सकते हैं कि यह कैसी खाद्य सुरक्षा मुहैया करवाई जा रही है जिससे बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं.
छत्तीसगढ़ की राजधानी स्थित पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर वुमेंस स्टडीज में हुए एक शोध के मुताबिक, रायपुर जिले की 19 प्रतिशत किशोरियां किसी न किसी तरह के कुपोषण की शिकार हैं. इनमें भी 13.1 प्रतिशत गंभीर रूप से कुपोषित हैं.
इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले आकड़े भी हैं जैसे रायपुर जिले की महज 1.5 फीसदी किशोरियां ही सामान्य बताई गई हैं. बच्चों में पोषण की कमी को दूर करने के लिए राज्य की भाजपा सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. इसके बावजूद शोध के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. स्वास्थ्य केंद्र व आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से जरूरी पोषक तत्वों की जानकारी निरंतर उपलब्ध कराई जा रही हैं.
जाहिर है कि जब राज्य की राजधानी रायपुर का यह हाल है तो बाकी प्रदेश का क्या हाल होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है.
यह शोध सेंटर फॉर वुमेंस स्टडीज की प्रो. रीता वेणुगोपाल के मार्गदर्शन में किया गया. उन्होंने बताया कि किशोरियों की स्वास्थ्य स्थिति के आंकड़े रायपुर जिले के सभी क्षेत्रों से लिए गए हैं. लगभग 50 स्कूलों की 500 किशोरियों से ऊंचाई, वजन व बॉडी मास इंडेक्स के आधार पर तय मापदंड का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि ज्यादातर किशोरियां जानकारी व जागरूकता के अभाव की वजह से कुपोषित हैं. इससे यह सवाल उठ खड़ा होता है कि क्या कुपोषण के खिलाफ केवल जुबानी जमाबंदी की गई है, कोई गंभीर प्रचार क्यों नहीं किया गया ? यदि किया गया होता तो शोध के नतीजें दूसरे आकड़े प्रस्तुत करते.