प्राइवेट कोचिंग क्यों?
रायपुर | जेके कर: अखिल भारतीय स्तर पर करीब 26% छात्रों ने प्राइवेट कोचिंग ली. यह सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा जनवरी से जून 2014 तक ”सामाजिक उपयोग: शिक्षा” विषय पर कराए गए सर्वेक्षण के 71वें दौर के दौरान बात सामने आई है. जिसका तात्पर्य यह है कि स्कूल जाने वाला हर चौथा छात्र प्राइवेट कोचिंग की शरण में जाता है. इसका कारण क्या है तथा यह छत्तीसगढ़ में कितना व्यापक है? सीजीखबर ने अपने स्तर पर इसकी पड़ताल करने की कोशिश की है.
सफलता के लिये जरूरी
छत्तीसगढ़ के दुर्ग की रहने वाली बानी सोनी का कहना है कि उन्होंने अपनी बड़ी बिटिया अनामिका सोनी को मिडिल कक्षा से ही ट्यूशन देना शुरु करवा दिया था जिसका नतीजा है कि उनकी लड़की आज नागपुर में बीबीए एलएलबी की फाइनल में है. उन्होंने अपनी छोटी लड़की अमृता सोनी को जो दुर्ग के डीपीएस स्कूल में पढ़ती है कक्षा आठ से ही ट्यूशन करवाना शुरु कर दिया है.
बानी सोनी स्वंय का एक प्ले स्कूल चलाती हैं. उका कहना है कि, “मैं अपने बिटिया को बायोलाजी तथा केमिस्ट्री नहीं पढ़ा सकती इसलिये ट्यूशन में भेजा है.” बानी सोनी का मानना है कि केवल स्कूल की पढ़ाई के भरोसे बच्चों के भविष्य को छोड़ा नहीं जा सकता है.
इसी तरह छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में रहने वाले देवेश षड़ंगी का कहना है, “बड़े लड़के को रायगढ़ के कारमेल तथा जिंदल स्कूल में पढ़ाया, साथ में कोचिंग भी करवाई. आज मेरा बेटा वेदांत षड़ंगी भुवनेश्वर में इंटीग्रेटेड लॉ की पढ़ाई कर रहा है.” देवेश षड़ंगी ने अपने बेटे वेदांत को कक्षा आठवीं से ही ट्यूशन पढ़ने के लिये भेजा था. उनका कहना है कि स्कूल में ठीक से पढ़ाई नहीं होती है इसलिये ट्यूशन जरूरी है फिर दूसरे बच्चे भी तो ट्यूशन कर रहें हैं. इसलिये भी हमें अपने बच्चों को ट्यूशन देना पड़ रहा है.
उन्होंने अपनी कक्षा 9वीं में पढ़ने वाली लड़की को भी प्राइवेट कोचिंग में भर्ती करा रखा है.
कम्पीटीशन बढ़ गया है
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के प्रध्यापक डॉ. चंद्रकुमार जैन का इस विषय पर कहना है कि परंपरागत रूप से गुरुजन ज्ञान दिया करते थे. आज की परिस्थिति पर उन्होंने कहा, “आज शिक्षा का प्रसार हुआ है, नौकरी के अवसर बढ़े हैं इसलिये कम्पीटीशन भी बढ़ गया है.” उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूलों में तो छात्रों को सरकारी कार्यक्रमों में भी जाना पड़ता है. शिक्षकों के लिये भी कई अन्य सरकारी काम हैं. इसलिये पढ़ाई ढ़ंग से नहीं हो पाती है.
डॉ. चंद्रकुमार जैन का कहना है कि इसके बावजूद हम शिक्षकों को अपना पुनरावलोकन करना पड़ेगा, प्रतिस्पर्धा के लिये छात्रो को तैयार करना पड़ेगा, एक नया लक्ष्य निर्धारित करना पड़ेगा कि छात्रों का भविष्य हमें ही बनाना है.
परीक्षा का पैटर्न बदल गया
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की महिला सर्जन तथा स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुपर्णा मित्रा ने अपनी दोनों बेटियों को प्राइवेट कोचिंग करवाई है. उनकी बड़ी लड़की रोमी अब चिकित्सा विज्ञान की स्नातक हो चुकी है तथा आगे की पढ़ाई की तैयारी कर रही है. छोटी बेटी रिया मित्रा ने पिछले साल इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया है. जब सीजीखबर ने उनसे जानना चाहा कि क्या कारण है कि वह तथा उनके पति, दोंनों के डॉक्टर होने के बावजूद उन्होंने प्राइवेट कोचिंग का रास्ता चुना था.
डॉ. सुपर्णआ मित्रा ने कहा, “हमने कक्षा आठ तक दोनों बच्चों को घर में ही पढ़ाया है. उसके बाद कोचिंग करवाना पड़ा. इसका कारण है कि आज का कोर्स तथा परीक्षा का पैटर्न हमारे समय जैसा नहीं रहा. इसलिये कोचिंग करवाना पड़ा.”
सपने को सच बनाना है
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के रहने वाले आशीष बाजपेई का कहना है कि बड़ा बेटा देवांष कक्षा 9वीं में है. वह आईआईटी में जाना चाहता है. इसलिये सबेरे 4 बजे उठकर कोचिंग चला जाता है. वहां से 6 बजे आकर डीएवी स्कूल जाता है.
जाहिर है कि समय के साथ चलने के लिये प्राईवेट कोचिंग का चलन चल पड़ा है तथा स्कूल निजी हो या सरकारी वहां प्रतियोगिता में सफल होने लायक मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है. नतीजन, प्राइवेट कोचिंग वालों की चल पड़ी है.
पहले दूसरा कारण था
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहने वाले 93 वर्षीय बुजुर्ग जीसी कर ने आज से 45 वर्षो पहले का स्मरण सुनाते हुये बिस्तर पर पड़े-पड़े कहा, “हम तो पश्चिम बंगाल से आये थे, हिन्दी नहीं आती थी, दोंनों बच्चों को इसलिये कक्षा पहली से ही ट्यूशन देना पड़ा था क्योंकि उन्हें हिन्दी स्कूलों में दाखिला दिलवाया था.” उन्होंने कहा कि “मेरे छोटे बेटे के साथ पढ़ने वाला दीपक मुखर्जी कक्षा पांचवीं से लेकर हमेशा मेरिट में टाप आता था. दीपक ने मेट्रिक में पूरे मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा अंक पाया था. उसने कभी ट्यूशन नहीं ली, वह पढ़ने में होशियार था तथा घर में उसकी बड़ी बहने ही उसे पढ़ाया करती थी. उन्हें हिन्दी आती थी.”