गरीबों की मददगार महिला कांस्टेबल
रायपुर | समाचार डेस्क: एक लेडी कांस्टेबल किसी मायने में मदर टेरेसा से कम नहीं है. उसने अब तक 25 मरीजों को उनके अस्पताल का बिल भरने में मदद की है. इसके अलावा उसने सौ से ज्यादा लोगों की मदद भी की है. आम पुलिसिया छवि के विपरीत छत्तीसगढ़ के दुर्ग की इस महिला कांस्टेबल स्मिता टांडी के फेसबुक पर सात लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं.
स्मिता टांडी को जैसे ही पता चलता है कि कोई मुसीबत में है तथा उसे पैसे की जरूरत है तो सबसे पहले वह अपने स्तर पर मामले की तहकीकात करती है. उसके बाद उसके लिये मदद की गुहार करती है. स्मिता टांडी ने इसके लिये एक फेसबुक ग्रुप भी बना रखा है.
दरअसल, स्मिता टांडी को अपने परिवारिक त्रासदी के कारण दूसरों की मदद करने की प्रेरणा मिली है. स्मिता का कहना है जब मैं साल 2013 में पुलिस प्रशिक्षण प्राप्त कर रही थी तभी अचानक मेरे पिताजी शिव कुमार टांडी बहुत बीमार हो गये थे. हमारे पास इलाज के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था. आखिरकार हम अपने पिताजी को बचा नहीं पाये और एक निजी अस्पताल में उनका निधन हो गया.
स्मिता के पिता भी पुलिस में कांस्टेबल थे, जिन्हे साल 2007 एक हादसे बाद जबरन सेवानिवृत कर दिया गया था.
स्मिता ने अपने पिता की मौत के बाद गरीबों की मदद करने का प्रण ले लिया. इसी के तहत 2014 में स्मिता ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर गरीबों की मदद करने के लिए एक समूह बनाया.
इसके बाद में स्मिता ने फेसबुक पर एक अकाउंट बनाया. शुरुआत में लोग उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते थे लेकिन कुछ महीने बाद लोगों ने उनकी अपील पर गरीबों की मदद के लिए धन दान करना शुरू किया.
आज के जमाने में जब लोग केवल ‘मैं’ में ही उलझते हुये अपना भविष्य बनाने की चिंता करते रहते हैं, उन्हें सड़क पर तड़फते किसी बीमार-बूढ़े की तरफ देखने की भी फुरसत नहीं है, उस समय एक महिला कांस्टेबल द्वारा गरीबों, मरीजों की मदद में आगे आने वाकई इस बात में विश्वास दिलाता है कि अभी मानवता मरी नहीं है, जिंदा है. स्मिता टांडी उसी की एक मिसाल है.