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छग: पंचायती राज में संशोधन खतरनाक

रायपुर | जेके कर: छत्तीसगढ़ के जिला पंचायतों में स्थाई समिति के सदस्यों की संख्या कम करना लोकतंत्र के लिये अच्छा संकेत नहीं है. सामाजिक और राजनीतिक नेताओं का कहना है कि इस तरह का निर्णय राज्य के हित में नहीं है.

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ सरकार की कैबिनेट की रविवार को हुई बैठक में निर्णय लिया गया है कि जिला पंचायतों के स्थाई समिति के सदस्यों की संख्या कम कर दी जाये. प्रस्ताव के अनुसार जिला पंचायतों में स्थाई समितियों के सदस्यों की संख्या 5 से घटाकर 3 कर देना है क्योंकि अधिकांश जिला पंचायतों में सदस्यों की संख्या 10-15 रह गई है.

यह तब है, जब भारतीय संसद ने 1992 में लोकतंत्रीय विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा देने तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया में जनभागीदारी बढ़ाने के लिये देश में पंचायत राज कानून लाया था.

राज्य सरकार का इस बारे में कहना है कि, “प्रदेश में जिला पंचायतों के परिसीमन होने से अब जिला पंचायतों की संख्या 18 से बढ़कर 27 हो गई है. जिससे जिला पंचायतों के क्षेत्र के आकार छोटे हो गए हैं. अधिकांश जिला पंचायतों में 10 से 15 सदस्य हैं. छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 47 की उपधारा (4) के तहत स्थायी समितियों में कम से कम 5 सदस्य होने चाहिए. वर्तमान में कई जिला पंचायतों में सदस्यों की संख्या कम होने से स्थायी समितियों के गठन में दिक्कतें आ रही हैं. इसलिए स्थायी समितियों में 5 के स्थान पर 3 सदस्य करने का प्रस्ताव है. केबिनेट ने छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 47 की उपधारा (4) में आवश्यक संशोधन करने के लिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को अधिकृत किया है.”

छत्तीसगढ़ के किसान आंदोलन के अग्रणी नेता तथा इस विषय के जानकार बिलासपुर के नंदकुमार कश्यप का कहना है कि इससे जिला पंचायतों में नौकरशाही का प्रभुत्व बढ़ेगा तथा जन-प्रतिनिधियों की आवाज़ कमजोर होगी.

नंदकुमार कश्यप बताते हैं कि रमन सरकार ने वादा किया था कि सभी तहसीलों को ब्लॉक बनाया जायेगा. यदि ऐसा किया तो जिला पंचायतों में सदस्यों की संख्या बढ़ सकती थी. हालांकि, ब्लॉक बनाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास निहित है जिसके लिये राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजना पड़ता है. उन्होंने कहा कि जिला पंचायतों के स्थाई समितियों में सदस्यों की संख्या कम करना जन-प्रतिनिधियों के अधिकारों पर कुठाराघात है.

कश्यप कहते हैं- “उदाहरण के तौर पर बिलासपुर में जिला पंचायत के सदस्यों की संख्या 22 है. अब बिलासपुर में तथा इसके समान बड़े जिला पंचायतों में निर्णय लेने वाली स्थाई सदस्यों की संख्या कम करना जन-प्रतिनिधियों की संख्या निर्णय लेने की प्रक्रिया में कम करना है.”

रायपुर में रहने वाले छत्तीसगढ़ सीपीएम के राज्य सचिव संजय पराते का कहना है कि इसके पीछे कारण राजनीतिक लगते हैं.

उन्होंने कहा, “पंचायतों में चुनाव दलगत आधार पर नहीं होते हैं परन्तु उम्मीदवार इस या उस पार्टी से होते हैं. अभी कुछ समय पहले हुये छत्तीसगढ़ के पंचायत चुनाव के बाद जिला पंचायतों में कांग्रेस के 166 सदस्य तथा सत्तारूढ़ भाजपा के 116 व निर्दलीय एवं अन्य दलों के 65 सदस्य हैं.”

उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी नौकरशाही के माध्यम से जिला पंचायतों पर हावी होना चाहती है इसके लिये चुने हुये प्रतिनिधियों की संख्या को कम करने की कोशिश की जा रही है. यह लोकतंत्र के लिये खतरनाक संकेतों से भरा हुआ निर्णय है.

संजय पराते कहते हैं- “यदि तर्क दिया जा रहा है कि अधिकांश जिला पंचायतों में सदस्यों की संख्या 10-15 हो तो उनमें से 5 स्थाई समिति के सदस्य चुनने में क्या कठिनाई है. मामला तो तब बनता जब जिला पंचायतों के सदस्यों की संख्या 5 या उससे कम होती तथा स्थाई समिति बनाना असंभव हो जाता.”

आम आदमी पार्टी के नेता तथा किसान नेता आनंद मिश्रा का इस बारे में कहना है कि, “नौकरशाही का काम कार्यपालन करना है न कि नीतियां बनाना. नीतियां बनाने का काम जनता के द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों का है. उन्होंने सवाल किया कि क्या स्थाई समितियों से सरकारी अफसरों की संख्या भी उसी अनुपात में कम करने का प्रस्ताव है?”

आनंद मिश्रा ने कहा कि जिला पंचायतों में सदस्यों की संख्या कम हो जाने से कोई वैधानिक संकट तो नहीं आ जायेगा. उन्होंने कहा विकेन्द्रीकरण से लोकतंत्र मजबूत होता है, केन्द्रीयकरण से नहीं.

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