छत्तीसगढ़ की खाद्य सुरक्षा सवालों में
रायपुर | विशेष संवाददाता: धान की सरकारी खरीदी का कम होना छत्तीसगढ़ की खाद्य सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है. उल्लेखनीय है कि 31 जनवरी, 2015 तक धान खरीदी पर सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है, “खरीफ विपणन वर्ष 2014-15 में समर्थन मूल्य नीति के तहत सहकारी समितियों में आज 31 जनवरी की सुबह साढ़े आठ बजे तक 60 लाख 89 हजार मीटरिक टन धान की आवक दर्ज की गई है. समर्थन मूल्य पर धान खरीदी का आज अंतिम दिन है, देर शाम तक समितियों में धान की आवक और भी बढ़ने का अनुमान है.” 1 फऱवरी को गैर सरकारी सूत्रों ने दावा किया कि इस साल धान की खरीदी करीब 62 लाख मीटरिक टन हुई है जो कि पिछले साल से करीब 18 लाख मीटरिक टन कम है.
जाहिर है कि इससे छत्तीसगढ़ के खजाने पर बोझ कम पड़ेगा तथा इसे सरकार की बचत कहा जा सकता है. राज्य सहकारी विपणन संघ, मार्कफेड मुख्यालय के अधिकारियों ने बताया कि राज्य के एक हजार 976 उपार्जन केन्द्रों में एक दिसम्बर 2014 से धान खरीदी जा रही है.
छत्तीसगढ़ में धान की कम खरीदी पर छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि ” इसे दूसरे नजरिये से देखिये. इसका तात्पर्य है कि सरकार ने छत्तीसगढ़ के किसानों को दी जाने वाली राशि जोकि करीब ढ़ाई हजार करोड़ रुपये है बचा लिये हैं परन्तु इतनी ही राशि किसानों को नहीं मिल पाई है.” संजय पराते ने आगे बताया, ” आपकी जानकारी के लिये इस साल करीब 4 लाख किसानों का रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया जिससे वे अपना धान सरकार को बेचने से मरहूम रह गये.”
संयज पराते ने कहा कि करीब 20 लाख एकड़ भूमि के धान का रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया है. अब ये 4 लाख किसान अपने धान को बाजार मूल्य पर बेचने के लिये मजबूर हो जायेंगे जहां पर उनको न्यूनतम खरीद मूल्य से भी कम में अपने धान बेचना पड़ेगा.
वहीं, बिलासपुर में रहने वाले कृषि मामलों के जानकार तथा किसान संघ के उपाध्यक्ष नंदकुमार कश्यप ने कहा, ” किसानों को राइस मिल वालों के पास अपना धान 900 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचना पड़ सकता है जो उनके लिये घाटे का सौदा होगा.”
नंदकुमार कश्यप ने बताया कि इससे किसान अगले साल धान का उत्पादन करने से हतोत्साहित होंगे फलतः छत्तीसगढ़ में धान का उत्पादन धीरे-धीरे घटने लगेगा.
छत्तीसगढ़ किसान सभा के संजय पराते ने कहा कि, ” धान का उत्पादन कम होते जाने से छत्तीसगढ़ की खाद्य सुरक्षा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. आने वाले सालों में धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ से धान गायब होने लगेगा.”
संजय पराते ने कहा कि, “केन्द्र सरकार फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का निजीकरण करने जा रही है. जिससे पीडीएस का भी या तो निजीकरण हो जायेगा या बंद कर दिया जायेगा.”
दोनों कृषि मामलों के जानकारों का मानना है कि कुल मिलाकर सब कुछ बाजार से जोड़ा जा रहा है जिससे खाद्य सुरक्षा आने वाले समय में निश्चित तौर पर प्रभावित होगी. दूसरी तरफ किसानों को अपनी उपज का वाजिब दाम न मिलने से अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा.
नंदकुमार कश्यप ने कहा कि, ” इससे किसानों की क्रय शक्ति कम होती जायेगी जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार सिमटने लगेगा तथा आगे चलकर अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. इस तरह से दूसरे सामानों की बिक्री भी घटने लगेगी.”