वेब पर जगह बनाती छत्तीसगढ़ी
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ी अब धीरे-धीरे वेब पर अपनी पहचान बनाने लगी है. छत्तीसगढ़ी के शुरुआती वेब पोर्टल ‘गुरतुर गोठ’ से शुरु हुआ यह सफर लगातार जारी है और धीरे-धीरे कई नाम जुड़ते जा रहे हैं.
गुरतुर गोठ के संपादक संजीव तिवारी का कहना है कि इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ी में लिखने-पढ़ने वालों की संख्या जितनी अधिक होगी, हमारी भाषा उतनी ही समृद्ध होगी. वे कहते हैं-“इंटरनेट के पाठकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बेहतर सामग्री की है.
छत्तीसगढ़ी में बेहतर सामग्री होगी तो दूसरी भाषाओं के लोग भी आकृष्ट होंगे, यह बात तो तय है.”
इंटरनेट में लोक भाषाओं की खुशबू हिन्दी यूनिकोड के आ जाने के बाद से बिखरने लगी थी. इस बात को अधिकृत रुप से कह पाना तो थोड़ा मुश्किल है कि वेब पर छत्तीसगढ़ी की शुरुआत कहां से हुई.
लेकिन याहू और ऑरकुट के कुछ ग्रूप ने इस दिशा में शुरुआत की थी. इसके बाद कुछ उत्साही रचनाकारों ने छत्तीसगढ़ी में ब्लॉगिंग की शुरुआत की.
छत्तीसगढ़ी ब्लॉग गुरतुर गोठ का संचालन दुर्ग के संजीव तिवारी ने आरंभ किया था, जिसे बाद में उन्होंने वेब पोर्टल में बदल दिया, जिसमें छत्तीसगढ़ी के साहित्य नियमित रूप से अपलोड किया जाने लगा.
इस प्रकार व्यवहारिक रूप से गुरतुर गोठ डॉट कॉम छत्तीसगढ़ी का पहला वेब पोर्टल बनकर सामने आया.
यह समय सोशल नेटवर्किंग साईट आरकुट के अवसान का था और फेसबुक अपने शुरुआती दौर में था. फेसबुक में धीरे धीरे छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग आरंभ हुआ, कुछ समूह बने फिर पेज बने.
फेसबुक में सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ी का प्रयोग सस्ते इंटरनेट कनेक्शन के बाद मोबाइलों द्वारा होने लगा. फेसबुक में अभी लगभग दर्जन भर ऐसे समूह हैं, जिसमें आपसी बातचीत छत्तीसगढ़ी में होती है और ग्रुप के सदस्यों की संख्या एक लाख से अधिक है.
इंटरनेट में ब्लॉगर के माध्यम से छत्तीसगढ़ी भाषा के हजारों ब्लॉग बने किन्तु बहुत कम ही नियमित रहे. तात्कालिक संवाद एवं प्रतिक्रिया के चलते अधिकतम लोगों का झुकाव ब्लॉग की अपेक्षा सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक की ओर होता गया.
मोबाइल ने बदली दुनिया
इस समय तक इंटरनेट जगत में छत्तीसगढ़ी के काफी शब्द यत्र-तत्र बिखर गए थे. पिछले कुछ सालों में सस्ते टच स्क्रीन के बाजार में भारी मात्रा में आने से लगभग सभी के हाथों में मोबाईल आ गया.
एन्ड्रायड के नये वर्जनों में अंतर्निमित खोज के विकल्प ने छत्तीसगढ़ी शब्दों की अहमियत को इंटरनेट जगत में बढ़ा दिया.
मोबाईल प्रयोग करने वालों ने वीडियो, गाने, कहानियां समाचार वाईस सर्च के इस्तेमाल से सहज ही अपने स्क्रीन पर पाया.
इधर छत्तीसगढ़ के भौगोलिक सीमा में रहने वाले लोगों के छत्तीसगढ़ी के साथ ही हिन्दी भाषा के उच्चारण को गूगल अपनी गुणवत्ता के लिए दर्ज करने लगा.
संभवत: इसी आकड़े नें गूगल को लोक भाषा छत्तीसगढ़ी में की बोर्ड बनाने के लिए विवश किया.
इन्हीं आंकड़ों नें अभी हाल ही में सिंगापुर की पूरे विश्व में लोकप्रिय, वीडियो एप ‘लाईक’ नें अपना एप और वेबसाईट का छत्तीसगढ़ी वर्जन लांच किया.
गुरतुर गोठ
इंटरनेट में छत्तीसगढ़ी की उपलब्धता (जिसमें से अधिकांश सामग्री गुरतुर गोठ डॉट कॉम के द्वारा अपलोड किया गया है) के आधार पर छत्तीसगढ़ में काम के लिए आने वाली विदेशी कंपनियों और बिल गेट्स एण्ड मिरिंडा फाउंडेशन जैसे विश्वप्रसिद्ध एनजीओ ने अपने एप, प्रश्नावली, रेडियो कार्यक्रम आदि का हिन्दी के साथ ही छत्तीसगढ़ी में अनुवाद कराना आरंभ कर दिया है.
एक छत्तीसगढ़ी अनुवादक का दावा है कि उन्हें महीने में लगभग बीस से पचीस हजार रूपये का छत्तीसगढ़ी अनुवाद और श्रुतलेखन का काम मिल रहा है, जिससे उनके घर का खर्च चल रहा है.
छत्तीसगढ़ी के पहले वेब पोर्टल का संचालन करने वाले गुरतुर गोठ के संजीव तिवारी ने इंटरनेट में छत्तीसगढ़ी के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए अपने वेब पोर्टल गुरतुर गोठ डॉट कॉम को नियमित रखा है.
उसमें नया आयाम जोड़ते हुए पहली बार सन् 2015 से नियमित रूप से छत्तीसगढ़ी में समाचार भी प्रकाशित करना आरंभ कर दिया है.
यू ट्यूब पर हज़ारों ऐसे पोस्ट उपलब्ध हैं, जिनमें पूरी तरह से छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी उपस्थित है.
लेकिन जिस सामग्री को सर्वाधिक यहां देखा जाता है, वह छत्तीसगढ़ी फिल्मों की सामग्री है. संकट ये है कि इनमें से अधिकांश सामग्री में भाषा तो छत्तीसगढ़ी है लेकिन इनमें छत्तीसगढ़ का लोक गायब है. इस मुश्किल से उबर पाना एक बड़ी चुनौती होगी.