छत्तीसगढ़ के गढ़ से पलायन क्यों?
रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ के 725 बंधक मजदूरों को गत 27 माह में दिगर राज्यों से मु्त कराया गया. इस दरम्यान छत्तीसगढ़ के मजदूरों को बंधक बनाये जाने के 243 मामले सामने आये थे. जाहिर है कि हर माह औसतन छत्तीसगढ़िया मजदूरों को बंधक बनाये जाने के 9 मामलें राज्य सरकार के संज्ञान में लाये गये या यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हर माह छत्तीसगढ़ के करीब 27 मजदूरों को दिगर प्रांतों के ठेकेदार बंदी बना लेते हैं. यह आकड़े बंधक बनाये गये मजदूरों के तथा उनके परिवार के हैं पलायन करने वालों की संख्या हजारों में होती है. इन सबसे पहले सवाल किया जाना चाहिये कि आखिरकार छत्तीसगढ़ के मजदूर अपने गढ़ से पलायन क्यों करते हैं.
निश्चित तौर पर कारण आजीविका कमाना होता है अर्थात् उन मजदूरों को अपने गढ़ में रोजगार न मिलने के कारण उन्हें बाहर का रास्ता अपनाना पड़ता है. इन सब के उलट छत्तीसगढ़ के 2014-15 के बजट भाषण में बताया गया था कि “वर्ष 2004-05 के स्थिर मूल्य पर वर्ष 2013-14 के लिए अग्रिम अनुमान अनुसार राज्य की आर्थिक विकास दर में 7.05 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित है, जबकि इसी अवधि में देश की आर्थिक विकास दर में 5 प्रतिशत से भी कम वृद्धि संभावित है. कृषि क्षेत्र में 2.62, औद्योगिक क्षेत्र में 6.07 एवं सेवा क्षेत्र में 10.18 प्रतिशत वृद्धि अनुमानित है. आर्थिक मंदी के बावजूद राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में यह वृद्धि उल्लेखनीय है.”
छत्तीसगढ़ के बजट भाषण में सकल घरेलू उत्पादन के बारें में कहा गया, “वर्ष 2004-05 के स्थिर मूल्य पर वर्ष 2012-13 के लिए संशोधित अनुमान अनुसार राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 7.56 प्रतिशत वृद्धि अनुमानित है. देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 4.47 प्रतिशत की तुलना में यह 69 प्रतिशत अधिक है. इसी अवधि में राज्य की कृषि विकास दर, देश की तुलना में 6 गुना तथा औद्योगिक विकास दर 5 गुना है.” यदि छत्तीसगढ़ का विकास देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है तो यहां के मजदूरों तक भी उसका लाभ पहुंचना चाहिये. जाहिर है कि आर्थिक विकास के आकड़े जमीनी वास्तविकता से दूर ठंडे कमरों में बैठकर गढ़े जाते हैं इसलिये अपने गढ़ से छत्तीसगढ़ी किसान दिगर राज्यों में मजदूरी के लिये पलायन कर जाते हैं.
इस बजट भाषण में गौर करने वाली बात यह है कि कृषि क्षेत्र में 2.62 फीसदी तथा औद्योगिक क्षेत्र में 6.07 फीसदी वृद्धि अनुमानित है. एक समय छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता था. कृषि क्षेत्र में कम वृद्धि का कारण है कि छत्तीसगढ़ के किसानों की जमीन उद्योगों के लिये दी जा रहीं हैं, जिससे औद्योगिक विकास हो रहें हैं परन्तु उन उद्योगों से रोजगार नहीं मिल पा रहा है.
छत्तीसगढ़ के किसानों की जमीन किस तरह से उनके हाथों से निकलती जा रही है उसकी बानगी देखिये.
-जनवरी 2013 से जनवरी 2015 के बीच रायगढ़ जिले के 447.16 हेक्टेर भूमि को उद्योगों के लिये तथा 3481.89 हेक्टेयर भूमि खनन के लिये अर्जित किये गये थे.
-12 जनवरी 2015 को केएसके पावर प्लांट द्वारा जांजगीर-चांपा में दो आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने का मामला सामने आया है.
-रायगढ़ जिले में 2010-11 से फरवरी 2015 के बीच 4 आदिवासी कृषकों की 4.9 हेक्टेयर जमीन गैर आदुवासी ने खरीद ली गई तथा 18 आदिवासी कृषकों की 25.2 हेक्टेर जमीन दिगर राज्यों के आदिवासियों के द्वारा खरीद ली गई.
-इसी दरम्यान रायगढ़ के घड़घोड़ा अनुभाग में जिंदल, सारडा एनर्जी, निको जायसवाल, गोवा इंडस्ट्रीयल तथा एसईसीएल द्वारा 404 किसानों के 625.19 हेक्टेयर भूमि खनन हेतु ली गई. इन सरकारी सूचनाओं के आधार पर समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में कृषि की भूमि पर खनन तथा अन्य उदयोग लगाया जा रहा है.
उद्योगों का विरोध न करते हुये भी पूछने का मन करता है कि आखिरकार कृषि को बर्बाद कर उद्योगों का विकास करने से फायदा क्या हो रहा है. इसका सीधा सा जवाब है कृषकों का पलायन. जिसकी जड़ में नीतियां हैं व्यक्ति नहीं. 2014-15 के बजट भाषण के शुरु में ही कहा गया था, “इक्कीसवीं सदी के उदय के साथ ही छत्तीसगढ़वासियों ने एक सपना देखा था. वह सपना था अपनी छत्तीसगढ़ी अस्मिता की पुनर्स्थापना का, वह जुनून था अपनी पहचान को नये सिरे से पूरे देश को बताने का. हम सबके मन में उत्साह था, और हमें पूरी उम्मीद थी कि आने वाला कल हमारा होगा.”