छत्तीसगढ़ में ‘माओवाद’ ने मारे 2225
रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ में पिछले 11 सालों में कथित माओवाद से 2225 लोगों की जाने जा चुकी है. जिसमें 677 नागरिक, 839 सुरक्षा बलों के लोग तथा 709 ‘माओवादी’ शामिल हैं. चीन में जिस माओवाद के कारण इतना विकास किया है वही ‘माओवाद’ भारत में आकर, विशेष रूप से छत्तीसगढ़ में जंगलों में माफिया राज बन गया है. चीन में माओ के सिद्धांतों पर चलकर जहां विकास के रिकॉर्ड कायम किये जा रहें हैं वहीं हमारे देश में जान देने तथा लेने के अलावा और कोई सिद्धांत नहीं रह गया है. अब इसे हत्या का सिद्धांत कहे या सिद्धांत की हत्या यह जंगलों में विचरने वाले इन समूहों से ही पूछा जाना चाहिये.
माओवादी गतिविधियों के कारण छत्तीसगढ़ में हुई मौतों को यदि वर्षवार ढ़ंग से देखा जाये तो वर्ष 2006 एवं 2007 में सबसे ज्यादा लोग मारे गये हैं. छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005 में 126, 2006 में 361, 2007 में 350, 2008 में 168, 2009 में 345, 2010 में 327, 2011 में 176, 2012 में 108, 2013 में 128, 2014 में 113 लोग तथा 2015 में 5 अप्रैल तक 23 लोग मारे गये.
आकड़ों से जाहिर है कि 2006 तथा 2007 के बाद छत्तीसगढ़ में माओवादी गतिविधियों में 2009 और 2010 में फिर से उभार दर्ज किया गया है.
इसके अलावा यदि इन वर्षो में नागरिकों की संख्या को देखा जाये तो छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005 में 52, 2006 में 189, 2007 में 95, 2008 में 35, 2009 में 87, 2010 में 72, 2011 में 39, 2012 में 26, 2013 में 48, 2014 में 25 तथा 2015 में 5 अप्रैल तक 9 लोग मारे गये.
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में माओवादी गतिविधियों के कारण नागरिकों को सबसे ज्यादा क्षति 2006 तथा 2007 में हुई थी जिसमें 2009 और 2010 में फिर से उभार देखा गया.
अति वामपंथी हिंसा में सुरक्षा बलों को पिछले 11 वर्षों में हुई क्षति का आकड़ा कहता है कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005 में 48, 2006 में 55, 2007 में 182, 2008 में 67, 2009 में 121, 2010 में 153, 2011 में 67, 2012 में 36, 2013 में 45, 2014 में 55 तथा 2015 में 5 अप्रैल तक 10 लोग मारे गये.
इसके बाद 11 अप्रैल को 7 जवान मारे गयें हैं. अति वामपंथी हमलों में सुरक्षा बलों के जवान सबसे ज्यादा वर्ष 2007 में 182 उसके बाद 2010 में 153 तथा 2009 में 121 मारे गये.
इसी तरह से इस दौरान सुरक्षा बलों के हाथों मारे गये माओवादियों की संख्या इस प्रकार से है. छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005 में 26, 2006 में 117, 2007 में 73, 2008 में 66, 2009 में 137, 2010 में 102, 2011 में 70, 2012 में 46, 2013 में 35, 2014 में 33 तथा 2015 में 5 अप्रैल तक 4 अति वामपंथी मारे गये.
आकड़ों से जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में इन 11 वर्षो में अति वामपंथी गतिविधियों के कारण सबसे ज्यादा नुकसान सुरक्षा बलों को उठाना पड़ा. उसके बाद माओवादी तथा उसके बाद नागरिकों के मारे जाने की संख्या है.
पूरे देशभर में इन 11 वर्षो में अति वामपंथी हिंसा में मारे गये नागरिकों, सुरक्षा बलो के लोग तथा माओवादियों की संख्या 5 अप्रैल 2015 तक आंध्रप्रदेश में 712, असम में 4, बिहार में 613, छत्तीसगढ़ में 2225, झारखंड में 1344, कर्नाटक में 31, केरल में 1, मध्यप्रदेश में 2, महाराष्ट्र में 424, ओडिशा में 619, तमिलनाडु में 1, तेलंगाना में 3, उत्तरप्रदेश में 15 तथा पश्चिम बंगाल में 699 लोग मारे गये.
आकड़ों से साफ है कि पूरे देश में अति वामपंथ से सबसे ज्यादा क्षति छत्तीसगढ़ को ही उठानी पड़ी है.