बस्तर

लू से बचाता है ‘मड़ियापेज’

रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में इन दिनों गर्मी कहर बरपा रही है. लोग गर्मी से बचने हर उपाय कर रहे हैं, पर उसकी प्रचंडता के चलते हर कोई बेबस है. शहरी क्षेत्रों में तो लोग गर्मी की तपिश से बचने के लिए कोल्ड ड्रिंक्स का सहारा लेते हैं, पर वनांचल क्षेत्रों में आदिवासियों के लिए ‘मड़ियापेज’ सुरक्षा कवच का काम करता है.

बस्तर सहित छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्रों में जहां कोई फिटनेस एक्सपर्ट नहीं है और न ही मल्टीस्पेशिलिटी अस्पताल की सुविधा, ऐसे में प्रकृति ही इनके लिए डॉक्टर है और उसके द्वारा प्रदत्त सौगात दवाएं.

मड़ियापेज वनांचलों के लोगों को भीषण गर्मी और लू से बचाता है. साथ ही लू, डिहाइड्रेशन, शुगर और मोटापा जैसी कई व्याधियों से मुकाबला कर आदिवासियों को जीवन प्रदान करता है.

यह मड़ियापेज लघु धान्य फसल की श्रेणी में आने वाले रागी फसल से बनता है, जो भीषण गर्मी में लू, डिहाइड्रेशन, शुगर और मोटापा जैसे व्याधियों से बचाता है. कृषि वैज्ञानिकों का भी मत है कि आदिवासी क्षेत्रों में गर्मियों में मड़ियापेज ऊजार्दायक पेय के रूप में इस्तेमाल होता है.

आदिवासी पकी लौकी के खोल से खास तरह का वाटर बॉटल भी बनाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में तुम्बा कहा जाता है. इसी में मड़ियापेज भरकर रखा जाता है, जो लंबे समय तक ठंडा रहता है.

जगदलपुर स्थित गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक अभिनव साव ने बताया कि रागी कम कैलोरी वाला आहार है. यह लघु धान्य फसल की श्रेणी में आता है. इसका अंग्रेजी नाम फिंगर मिलेट है.

साव ने बताया कि चावल और कनकी के साथ रागी को उबालकर मड़ियापेज बनाया जाता है. पानी की तरह तरल बनाकर आदिवासी इसका इस्तेमाल गर्मियों में एनर्जी ड्रिंक के रूप में करते हैं. मड़ियापेज एक तरह से माड़ की तरह होता है.

लू से आदिवासियों को सुरक्षा प्रदान करने में मड़ियापेज की उपयोगिता पर उन्होंने कहा कि लो-कैलोरी आहार होने के चलते रागी से बनने वाला मड़ियापेज धीरे-धीरे शरीर में ऊर्जा प्रदान करते रहता है. इसके साथ-साथ यह तरलपेय शरीर के लिए ठंडा भी होता है.

साव ने बताया कि रागी खरीफ फसल है. इसके पौधे 120 दिनों में तैयार हो जाते हैं. इसमें काबोहाइड्रेड, फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम, वसा, खनिज की भी प्रचुरता होती है. इसके साथ ही रागी डायबिटीज को नियंत्रित करती है.

वनांचल में रहने वाले सीताबाई, मेहतरीन बाई व रिपुसूदन ने मड़ियापेज बनाने और उसके इस्तेमाल के बारे में कहा कि एक कटोरी रागी का आटा रातभर भिगोकर सुबह उसे कनकी या चावल के साथ उबाला जाता है. इसमें पानी की मात्रा चारगुना होती है.

दिनभर की गर्मियों से राहत और थकान दूर करने के लिए वे बरसों से इसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी कृष्ण कुमार साहू ने भी मड़ियापेज को शरीर के बहुत फायदेमंद बताया. उन्होंने कहा कि यह बहुत ठंडा और सुपाच्य होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होता है.

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