छत्तीसगढ़

भू-अधिग्रहण से कॉर्पोरेट को फायदा

रायपुर | विशेष संवाददाता: छत्तीसगढ़ में मंगलवार को भू-अर्जन पर मंत्रि-परिषद ने कुछ निर्णय लिये हैं. सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, “मंत्रि-परिषद ने भू-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम की धारा-10 पर विचार किया. विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि भू-अर्जन के प्रकरणों में राज्य को इकाई माना जाए और राज्य के कुल सिंचित बहु-फसली भूमि के कुल रकबे के मात्र दो प्रतिशत तथा कुल शुद्ध बोआई क्षेत्र के एक प्रतिशत का ही भू-अर्जन किया जाए.”

छत्तीसगढ़ के मंत्रि-परिषद द्वारा लिये गये इस निर्णय पर छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष नंदकुमार कश्यप ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार का यह निर्णय राज्य के किसानों को फायदा पहुंचाने की जगह नुकसान ज्यादा करेगा.

अपने कथन के समर्थन में नंदकुमार कश्यप ने तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ में करीब 57 लाख हेक्टेयर में कुल बुआई होती है. जिसका अर्थ है कि छत्तीसगढ़ में 142.5 लाख एकड़ भूमि में फसले उगाई जाती हैं. यदि इसके एक फीसदी को लिये गये निर्णय के अनुसार अधिग्रहित करने दिया जाये तो छत्तीसगढ़ में करीब 1.425 लाख एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जा सकेगा.

उन्होंने कहा कि इस तरह से भू-अधिग्रहण को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश की जा रही है. नंदकुमार कश्यप ने बताया कि वर्तमान में किसी गांव की भूमि का अधिग्रहण करने के लिये उस गांव के 80 फीसदी किसानों की रजामंदी जरूरी होती है. नये निर्णयों का अर्थ है कि अब सीधे तौर पर छत्तीसगढ़ के कुल शुद्ध बोआई क्षेत्र के एक फीसदी का अधिग्रहण किया जा सकेगा.

इसी तरह से कुल सिंचित बहु-फसली भूमि से 2.85 लाख एकड़ का अधिग्रहण आसान हो जायेगा. गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ का कुल क्षेत्रफल 1 लाख 35 हजार 194 वर्ग किलोमीटर है.

मंगलवार को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के महानदी भवन में हुई मंत्रि-परिषद की बैठक में यह भी निर्णय लिया गया है कि, “मंत्रि-परिषद ने इस अधिनियम की धारा-30 पर भी विचार किया और यह निर्णय लिया कि भू-अर्जन की स्थिति में नये भू-अर्जन नियम के तहत कलेक्टर की गाइड लाइन से दोगुने से ज्यादा दर मुआवजे के रूप में दी जाएगी, लेकिन यह दर किसी भी स्थिति में पुनर्वास नीति में उल्लेखित असिंचित भूमि के लिए छह लाख रूपए, सिंचित एक फसली भूमि के लिए आठ लाख रूपए और सिंचित दो फसली भूमि के लिए दस लाख रूपए प्रति एकड़ से कम नहीं होगी.”

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जमीन मुआवजा की राशि बढ़ाये जाने पर कृषि मामलों के जानकार तथा मध्यप्रदेश के जमाने से कृषक आंदोलनों का नेतृत्व करने वाले आनंद मिश्रा ने कहा कि सरकार भू-अधिग्रहण को आसान बनाने जा रही है. जिससे उद्योगों के लिये कृषि जमीन का उपयोग करना आसान हो जायेगा.

उन्होंने बताया कि एक तरफ तो संयुक्त राष्ट्र संघ भुखमरी को मिटाने के लिये परिवारिक कृषि को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2015 में विशेष कार्यक्रम लेने जा रही है वहीं, छत्तीसगढ़ में कॉर्पोरेट कृषि को बढ़ावा देने के लिये किसानों की भूमि को अधिग्रहित किया जा रहा है.

आनंद मिश्रा ने कहा कॉर्पोरेट कृषि के पास दुनिया की भूख मिटाने की ताकत नहीं है यह बात पहले ही साबित हो चुकी है.

उन्होंने स्पष्ट किया कि कॉर्पोरेट सेक्टर चाहता है कि एक तरफ तो गांवों में मनरेगा के तहत दिये जा रहे रोजगार को कम किया जाये क्योंकि उनका मानना है कि इससे उन्हें सस्ते में कामगार मिलने बंद हो गयें हैं. दूसरी तरफ कॉर्पोरेट सेक्टर चाहता है कि गांवों की कृषि भूमि को उद्योगों के लिये अधिग्रहित कर लिया जाये जिससे किसान मजबूरी में कम मेहताने पर उद्योगों में काम करने के लियये तैयार हो जाये.

जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में भू-अर्जन पर लिये गये ताजा निर्णयों से राज्य तथा किसानों का दूरगामी रूप से भला नहीं होने जा रहा है भले ही उन्हें फौरी तौर पर जमीन की कीमत ज्यादा देने की बात की जा रही है.

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