वन भैंसों की प्रयोगशाला बन गया है छत्तीसगढ़
रायपुर | संवाददाता: पिछले कुछ सालों में मनमाने तरीक़े से करोड़ों रुपये खर्च करके भी छत्तीसगढ़ का वन विभाग, राजकीय पशु वन भैंसा की आबादी नहीं बढ़ा पाया है. अब असम से वन भैंसा ला कर आबादी बढ़ाने की कोशिश को भी हाईकोर्ट से झटका लगा है.
बरसों तक बिना किसी डीएनए मैपिंग के पालतू और कुछ वन भैंसों को बाड़े में बंद रख कर, वन विभाग ने करोड़ों रुपये खर्च किए. लेकिन उसका परिणाम शून्य निकला. लगभग एक दशक से भी अधिक समय तक इन भैंसों की रेडियो कॉलरिंग, इनके प्रजनन, भोजन के नाम पर खर्च का सिलसिला जारी रहा.
अफसरों की मनमानी का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वन भैंसों की वंश वृद्धि की इस योजना में भारत सरकार के किसी भी उपक्रम, कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र, भारतीय वन्यजीव संस्थान, भारतीय पशु-चिकित्सा अनुसंधान संस्थान आदि की सेवाएं कभी नहीं ली गईं. वनभैंसों के संरक्षण का पूरा काम, वाइल्ड लाइफ़ ट्रस्ट ऑफ इंडिया को सौंप कर वन विभाग निश्चित हो गया.
जब इस प्रयोग से बात नहीं बनी तो इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बाद भी, वन विभाग ने वन भैंसे की क्लोनिंग और उसके आवास पर 3.5 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए.
सीतानदी उदंती के बाड़े में रखी गई आशा के कान के एक टुकड़े से करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में 12 दिसंबर 2014 को दीपाशा नामक कथित क्लोन मादा वनभैंस का जन्म हुआ.
दावा किया गया कि यह दुनिया में किसी वन्यजीव की पहली क्लोनिंग है.
लेकिन पिछले कई सालों से इस कथित वन भैंसा का डीएनए मैपिंग ही नहीं कराया गया. इस कथित क्लोन भैंस को जंगल सफारी में बांध कर रखा गया है. जिस पर हर साल कई लाख खर्च हो रहे हैं.
विशेषज्ञ इसे मुर्रा भैंस घोषित कर चुके हैं.
केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने प्राकृतिक रुप से गर्भाधान के लिए हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र, देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान, करनाल के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान और बरेली के भारतीय पशु-चिकित्सा अनुसंधान संस्थान से संपर्क कर उनकी राय ली थी. लेकिन इन संस्थानों की राय के बाद केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने इस क्लोन के साथ, किसी नर वन भैंसे के संसर्ग को अनुमति प्रदान नहीं की.
दूसरी ओर हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र ने कृत्रिम गर्भाधान के लिए जो प्रस्ताव राज्य सरकार को दिया, वह बेहद खर्चीला था.
यही कारण है कि इस कथित वन भैंसे के क्लोन से वन भैंसों की वंश वृद्धि की योजना ठंडे बस्ते में चली गई.
लेकिन वन भैंसों की वंशवृद्धि की, बिना किसी दीर्घकालीन रणनीति के इन प्रयोगों की असफलता के बाद भी वन विभाग के अफसरों की मनमानी ख़त्म नहीं हुई.
बस्तर के इलाके के शुद्ध नस्ल के जिन वन भैंसों के लिए ओडिशा और महाराष्ट्र ने अनुकूल परिस्थितियां बनाई, वैसी कोई कोशिश करने के बजाय छत्तीसगढ़ के वन विभाग ने असम से वन भैंसों को पकड़ कर लाने का फ़ैसला किया.
असम की जलवायु और छत्तीसगढ़ की जलवायु का अध्ययन किए बिना, वन विभाग ने वहां के 5 वन भैंसों को पकड़ कर बारनवापारा में ज़रुर रखा है लेकिन लगता नहीं है कि यह कोशिश भी परवान चढ़ेगी.
हाईकोर्ट पहुंचा मामला
बारनवापारा में रखे गए इन वनभैंसों के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविन्द्र अग्रवाल की युगल बेंच ने, राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है.
याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि इन वन भैंसों को लेकर असम द्वारा लगाई गई स्थानांतरण की एक शर्त यह थी कि असम राज्य से अप्रैल 2023 में लाए गए 4 मादा वन भैंसों को 45 दिनों में जंगल में छोड़ा जाएगा. लेकिन एक वर्ष से अधिक समय हो गया है, मादा भैंसों को अभी भी बारनवापारा अभयारण्य में कैद में रखा गया है. 2020 में लाये गए एक नर और एक मादा को भी कैद कर रखा गया है.
कोर्ट को बताया गया कि असम से इन जंगली भैंसों को छत्तीसगढ़ के जंगली वन भैंसा से क्रॉस करा कर आबादी बढ़ाने के लिए लाया गया था. छत्तीसगढ़ में केवल एक शुद्ध नस्ल का नर “छोटू” है, जिसकी आयु वर्तमान में 22-23 वर्ष है और इतनी अधिक आयु होने के कारण उसे प्रजनन के लिए अयोग्य माना जाता है.
छत्तीसगढ़ वन विभाग ने छत्तीसगढ़ के क्रॉस ब्रीड (अशुद्ध नस्ल) के वन भैसों से असम से लाई गई मादा वन भैसों से प्रजनन कराने के अनुमति केन्द्रीय जू अथॉरिटी से मांगी थी, जिसे यह कह कर नामंजूर कर दिया कि केन्द्रीय जू अथॉरिटी के नियम अशुद्ध नस्ल से प्रजनन कराने की अनुमति नहीं देते.
ब्रीडिंग सेंटर को अंतिम अनुमति नहीं
केन्द्रीय जू अथॉरिटी ने असम से वन भैसा लाने के बाद बारनवापारा में बनाये गए ब्रीडिंग सेंटर को सैद्धांतिक अनुमति दी थी परंतु अंतिम अनुमति नहीं दी है.
याचिका में इस सैद्धांतिक अनुमति को भी चुनौती दी गई है क्योंकि वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत किसी भी अभ्यारण में ब्रीडिंग सेंटर नहीं खोला जा सकता.
भारत सरकार ने भी एडवाइजरी जारी कर रखी है कि किसी भी अभ्यारण, नेशनल पार्क में ब्रीडिंग सेंटर नहीं खोला जा सकता. केन्द्रीय जू अथॉरिटी की सैद्धांतिक अनुमति को भी यह कह कर चुनौती दी गई है कि जब अभ्यारण में ब्रीडिंग सेंटर खोला ही नहीं जा सकता तो सैद्धांतिक अनुमति कैसे दी गई है?
वन विभाग का तर्क
वन विभाग की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि असम से लाये गए वन भैसों की तीसरी पीढ़ी को ही जंगल में छोड़ा जायेगा.
याचिका में बताया गया है कि वन भैंसा शेड्यूल एक का वन्यप्राणी है और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की धारा 11 के अनुसार किसी भी अनुसूची एक के वन्यप्राणी को तब तक बंधक बना कर नहीं रखा जा सकता जब तक कि वह छोड़े जाने के लिए अयोग्य ना हो.
असम के सभी वन भैसे स्वस्थ है और इन्हें जंगल में छोड़ा जा सकता है. इन्हें बंधक बना कर रखने के आदेश भी मुख्य वन संरक्षक ने जारी नहीं किये है और गैर कानूनी रूप से इन्हें बंधक बना रखा है.
याचिका में बताया गया है कि 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने गोधावर्मन के प्रकरण में आदेशित किया है कि छत्तीसगढ़ के वन भैसों की शुद्धता हर हाल में बरकरार रखना है. एक मात्र शुद्ध नस्ल का छोटू उम्रदराज है, उससे प्रजनन करना असंभव है. शुद्धता रखने के लिए अशुद्ध नस्ल के वन भैसों से क्रॉस नहीं कराया जा सकता.
याचिका में कहा गया है कि असम से लाये गए वन भैंसों को अगर उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाता है तो वहां दर्जनों अशुद्ध नस्ल के कई वन भैंसे हैं, जिनसे क्रॉस होकर असम की शुद्ध नस्ल की मादा वन भैंसों की संतानें मूल नस्ल की नहीं रहेंगी, इसलिए इन्हें उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में नहीं छोड़ा जा सकता. अगर इन्हें बारनवापारा अभ्यारण में ही छोड़ दिया जाता है तो असम के एक ही नर वन भैंसे की संतान होने से असम के वन भैसों का जीन पूल खराब हो जाएगा, इसलिए इन्हें बारनवापारा में भी नहीं छोड़ा जा सकता.
याचिका में असम से लाये गए वन भैंसों को वापस असम भेजने की मांग की गई है.