छत्तीसगढ़: चीन जाता था कोसा
रायपुर | एजेंसी: हजारों साल पहले छत्तीसगढ़ के पाडुका गरियाबंद क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोसा का उत्पादन हुआ करता था. तब यहां की कोसे की मांग विदेशों में थी. अच्छी क्वालिटी के कोसे होने के कारण देश ही नहीं विदेशों में भी अच्छी मांग थी.
इस कारण पाडुका क्षेत्र में उत्पादित कोसे का चायना सहित कई देशों में निर्यात होने लगा था. तब यह क्षेत्र सिल्क रूट के नाम से जाना जाता था. तब यहां पांडुका सिरकट्टी में पैरी नदी के तट पर ढाई हजार साल पहले बंदरगाह था. उस समय चट्टानों को काटकर गोदी बनाई गई थी ,जिसके अवशेष पांडुका सिरकट्टी के तट पर अभी नदी के किनारे छह चैनल यानी गोदी साफ नजर आ रहे हैं. इस बात की पुष्टि पुरातत्व विभाग ने भी किया है. विभाग ने इस क्षेत्र की खुदाई का प्रस्ताव भेजा है.
सूत्रों के मुताबिक, वर्तमान गरियाबंद जिले के पांडुका क्षेत्र में स्थित सिरकट्टी नदी किनारे पर बंदरगाह मिलने की खबर से पुरात्व विभाग की टीम ने बाकायदा सर्वे कर जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं.
प्रारंभिक सर्वेक्षण के बाद पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि नदी के तट पर चट्टानों को काटकर जहाज खड़ा करने के लिए गोदी बनाई गई थी. यही गोदी दो साल पूर्व सबसे पहले पुरातत्व विभाग के तत्कालीन उप संचालक जी.के. चंदरौल ने सर्वेक्षण के दौरान देखी. उन्होंने कई दिनों तक सर्वे करने के बाद खुलासा किया कि पांडुका सिरकट्टी में पैरी नदी के तट पर ढाई हजार साल पहले बंदरगाह था. उन्होंने अपनी रिपोर्ट दी, लेकिन उस समय विभाग के जिम्मेदार लोगों ने ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण मामला ठण्डे बस्ते में चला गया. सालों तक तत्कालीन उप संचालक जी.के. चंदरौल की रिपोर्ट धुल खाती रही. लेकिन चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब चंदरौल की रिपोर्ट की फाइल फिर खोली गई.
पिछले साल राजिम उत्खनन के दौरान राज्य के पुरातात्विक सलाहकार अरुण कुमार शर्मा और उनके सहायक प्रभात कुमार सिंह ने दोबारा इसका परीक्षण किया.