गांव वालों ने दी जमीन, आरक्षण ने राज
रतनपुर | उस्मान कुरैशी: दो दशक पहले पनाह मांगने पर लोगों ने जिन्हे गांव के बाहर बसने की इजाजत दी अब वही परिवार इस गांव का भाग्य विधाता बनने जा रहा है. पंच परमेशवर बन वह गांव के विकास की कहानी गढे़गा . ये सब संभव हुआ आरक्षण की उस प्रक्रिया से जिससे पीढ़ीयों से दबे कुचले दलित आदिवासी समाज के लोगों को कहीं-कहीं अल्पसंख्यक होने पर भी मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर मिल रहा है.
छत्तीसगढ़ में कोटा ब्लाक के ग्राम पंचायत करगी कला का सरपंच अब नवा पथरा के इकलौता दलित परिवार की छोटी बहु सुनीता का बनना तय है. बीतें दिनों पंचायत चुनाव के आरक्षण प्रक्रिया की लाटरी में निकली पर्ची ने रातों रात इनकी तकदीर बदल दी है. इस गांव के सरपंच का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित है.
करीब 3 हजार की आबादी वाले इस पंचायत में अनुसूचित जाति का यह इकलौता परिवार है. इस परिवार के लोग गांव वालों की जूतें ,चप्पलों की मरम्मत, पालिश और मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाते है वहीं महिलाएं खेतों में मजदूरी कर परिवार की मदद करती है. परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला झूल बाई गांव में दाई का काम भी करती है.
झूल बाई कहती है कि कोई तीन दशक पहले वह पति के साथ पुरखों का गांव छोड़कर रोजी रोटी की तलाश में करगी कला आ गई थी. तब गांव वालों ने नवा पथरा में रहने की इजाजत दी. यहां इनको पौनी नहीं नांदने की बात कहते हुए गांव के बाहर जमीन दी. फिर घर बना के यही रच बच गए. झूल बाई परिवार की आजीविका चलाने के लिए जचकी कराने के साथ मजदूरी करती है.
अब इस परिवार के किसी महिला सदस्य के सरपंच बनने की खबर पर वे कहती है कि गांव वाले कह रहे है कि तुम्ही लोगों को खड़ा होना है. ऐसा होने पर वे छोटी बहु सुनीता को सरपंच बनाने की बात कहती है. उनके छोटे बेटे और सरपंच पद की कथित दावेदार सुनीता के पति राजू मेहर कहते है कि खुशी की बात है कि हमें पहली बार मौका मिल रहा है. हम गांव का विकास करेंगे.
वहीं तीसरी तक पढ़ी सरपंच पद की दावेदार सुनीता तो मीडिया के सवालों पर हंस कर शर्मा जाती है और सब को धन्यवाद ज्ञापित करने की बात ही कह पाती है.