13.40 करोड़ के घपले वाली हाईकोर्ट बिल्डिंग
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिल्डिंग निर्माण में हुये करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार के मामले में दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है. हाईकोर्ट बिल्डिंग निर्माण में अब तक कम से कम 13.40 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान, अनुचित लाभ, अनियमित एवं अनुपयोगी व्यय के मामले सामने आये हैं लेकिन अधिकांश मामलों में कार्रवाई की फाइलें जहां की तहां पड़ी हुई हैं.
62.30 एकड़ में फैले न्याय भवन की बिल्डिंग के लिये 2006 में राज्य शासन ने 65.02 करोड़ रुपए की प्रशासनिक स्वीकृति दी थी. इसका कार्य मे. इंजीनियरिंग प्रोजेक्टस ऑफ इंडिया लिमिटेड, मुंबई को 69.32 करोड़ रुपये में सौंपा गया. लेकिन बाद में इसकी लागत बढ़ती चली गई. 2006 में इसकी लागत 65.02 करोड़ थी, जिसे 2007 में संशोधित कर के 84.55 करोड़ रुपये किया गया.. इशके बाद अगले साल फिर इसमें संशोधन करके इसकी लागत 99.48 करोड़ रुपये की गई. 2009 में इसकी लागत बढ़ा कर 106.60 करोड़ हो गई. दिसंबर 2010 तक इस मद में 104.15 करोड़ रुपये का भुगतान भी हो गया.
इस मामले में गड़बड़ी की शुरुआत मई 2010 में हुई, जब ठेकेदार ने निविदा की शर्तों का उल्लंघन किया. सरकार ने कार्रवाई करने के लिये नोटिस भी जारी की. लेकिन बाद में मामला टांय-टांय फिस्स हो गया. इसके बाद ठेकेदार को अनुचित रुप से 6.86 करोड़ का भुगतान किया गया. इस के अलावा जिन सामग्रियों की कीमत ही नहीं बताई गई थी, उन सामग्रियों के लिये अनुचित रुप से 47.27 लाख का भुगतान कर दिया गया.
मनमाने तरीके से निर्माण का एक बड़ा नमूना इस तरह भी सामने आया कि बिल्डिंग निर्माण के लिये 49291 क्यू.मी. की खुदाई तय की गई थी. शुरुआती अनुमान के लिए बनाए गए नमूने को इंजीनियरिंग कॉलेज, बिलासपुर द्वारा संपूर्णता से जाँचा गया था जिससे की संरचना की स्थिरता, मजबूती, सुरक्षा और उपयोगिता जाँची जा सके. लेकिन इंजीनियरिंग कॉलेज के अधिकारियों द्वारा दी गई अनुशंसाओं के बावजूद, ठेकेदार को विभाग द्वारा अनुमानित और स्वीकृत मात्रा 49291 क्यू.मी की जगह 106342.766 क्यू.मी की खुदाई करने और नींव को मुरुम और रेत से भरने के लिये अतिरिक्त 3.17 करोड़ का भुगतान किया गया.
इस मामले में सरकारी अफसरों की दलील थी कि जमीन की खुदाई के दौरान, गीली मिट्टी मिली जिससे कि नींव की गहराई उतनी तक बढ़ानी पड़ी जब तक कड़क परतें नहीं प्राप्त हुई क्योंकि कड़क परतें सुरक्षा और भवन के स्थायित्व के लिए अपरिहार्य थी. इसके अलावा ये भी कहा गया कि उत्खनन की अतिरिक्त मात्रा को संशोधित प्रशासनिक स्वीकृति में विभिवत रूप से अनुमोदित करा लिया गया है.
लेकिन हकीकत ये है कि लोक निर्माण विभाग के सलाहकार ने भी दिसंबर 2008 में जमीन खुदाई के उपरोक्त कार्य पर ये कहते हुए आपत्ति उठाई थी कि पूरे क्षेत्र का उत्खनन करना और उसी क्षेत्र को बाहरी मिट्टी से फिर से भर देना तकनीकी रूप से जरूरी नहीं था और उसके द्वारा अनावश्यक खर्च हो सकता है. और तो और, यह कार्य किसी सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के की पूरा कर दिया गया.
इसके अलावा रेनफोर्स्ड सिमेंट कांक्रिट के निष्पादन हेतु दरों के गलत आवेदन से ठेकेदार को 1.66 करोड़ का अतिरिक्त भुगतान किया गया और किये गये कार्यों में नॉन एसओआर सामग्रियों को जोड़ कर 1.25 करोड़ रुपये की कीमत वृद्धि का अतिरिक्त भुगतान भी किया गया.
कैग ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिल्डिंग के निर्माण में हुये भ्रष्टाचार को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने इन आपत्तियों की अनसुनी कर दी. आज हालत ये है कि निर्माण काल से ही हाईकोर्ट बिल्डिंग में तरह-तरह की गड़बड़ियां एक के बाद एक सामने आ रही हैं. कभी भवन की छत टपकने लगती है तो कभी दीवारों में पानी रिसने लगता है. जाहिर है, गड़बड़ियों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होने से ठेकेदारों और अफसरों के हौसले बुलंद हैं और वह दिन दूर नहीं, जब हाईकोर्ट बिल्डिंग की मरम्मत के नाम पर हर साल लाखों-करोड़ों रुपये खर्च होने लग जाये.