कैग के अनुसार छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाएं बीमार
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में बदहाली के दौर से गुजर रहा है. कैग की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार चिकित्सकों की उपलब्धता के मामले में देश के औसत प्रति 1456 लोगों पर एक चिकित्सक से, छत्तीसगढ़ बहुत पीछे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार प्रति 1000 की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए लेकिन छत्तीसगढ़ में 2492 लोगों पर एक चिकित्सक उपलब्ध है. राज्य में चिकित्सा सेवा के लिए उपलब्ध मानव संसाधन की बात की जाए, तो छत्तीसगढ़ में इसकी 34 फ़ीसदी कमी है. संख्या के लिहाज से देखें तो स्वास्थ्य महकमे में 25,793 लोगों की कमी है.
23 जिला स्वास्थ्य केंद्रों में स्वीकृत पदों के मुकाबले विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी 33 प्रतिशत, चिकित्सा अधिकारी की कमी 4 प्रतिशत तथा पैरामेडिक्स की कमी 13 प्रतिशत थी. इसी तरह 172 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वीकृत पदों के मुकाबले विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी 72 प्रतिशत तथा डॉक्टरों की कमी 15 प्रतिशत थी.
राज्य के 776 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वीकृत पदों की तुलना में चिकित्सा अधिकारियों की कमी 32 प्रतिशत, स्टाफ नर्स की कमी 32 प्रतिशत और पैरामेडिक्स की कमी 36 प्रतिशत थी.
4,996 राज्य स्वास्थ्य केंद्रों में स्वीकृत पदों की तुलना में एएनएम के 17 प्रतिशत पद रिक्त थे. 502 राज्य स्वास्थ्य केंद्रों में तो एएनएम की कोई नियुक्ति नहीं थी, जिसके कारण इन राज्य स्वास्थ्य केंद्रों में गर्भवती महिलाओं को अपेक्षित मातृत्व सेवाएं प्रदान नहीं की जा सकीं.
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राज्य में डॉक्टरों (256), स्टाफ नर्स (528) और पैरामेडिकल स्टाफ (131) के संवर्ग में कुल स्वीकृत पदों की संख्या 915 के विरूद्ध, डॉक्टरों (190), स्टाफ नर्स (366) और पैरामेडिकल स्टाफ (138) सहित कुल 694 व्यक्तियों की नियुक्ति की गई, जिससे 23 एमसीएच में 24.15 प्रतिशत की कमी आई. शेष सात एमसीएच विंग में तो डॉक्टरों, स्टाफ नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ के पद ही स्वीकृत नहीं किए गए.
कैग ने जिन पांच जीएमसी/जीएमसीएच की जांच की, वहां विशेषज्ञ डॉक्टरों, स्टाफ नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी क्रमशः 58 से 30 प्रतिशत, 64 से 15 प्रतिशत, 55 से 24 प्रतिशत के बीच थी.
रायपुर में भी डाक्टर नहीं
यहां तक कि सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल रायपुर में स्वीकृत पदों की संख्या 280 के विरूद्ध डॉक्टरों (2), स्टाफ नर्स (5) और पैरामेडिकल स्टाफ (2) के केवल नौ (3.21 प्रतिशत) पद नियमित कर्मचारियों से भरे गए, और 208 पद संविदा कर्मचारियों से भरे गए.
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में आईसीयू में स्टाफ नर्स से बेड का अनुपात 1:1 के मानदंडों के मुकाबले 1:20 तक था और गैर-आईसीयू वार्डों में यह अनुपात 1:3 के मानदंडों के मुकाबले 1:39 तक था.
रिपोर्ट के अनुसार स्टाफ नर्स की स्वीकृत संख्या भी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मानदंडों से कम थी और इसे बेड क्षमता के अनुसार तय नहीं किया गया था.
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2016-22 के दौरान चार नए जीएमसी और एक निजी कॉलेज खोले गए और प्रवेश क्षमता (यूजी) 1,100 से बढ़ाकर 1,370 कर दी गई है; हालांकि, मार्च 2022 तक कोई भी जीएमसी अधिकतम स्वीकार्य प्रवेश क्षमता प्राप्त नहीं कर सका.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आयुष सुविधाओं में डॉक्टरों (29 प्रतिशत), स्टाफ नर्स (60 प्रतिशत) पैरामेडिक्स (30 प्रतिशत) और सरकारी आयुर्वेद कॉलेजों में शिक्षण स्टाफ (29 प्रतिशत) की कमी थी.
एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली यानी आईपीएचएस मानदंडों के तहत आवश्यक सभी दस विशेषज्ञ सेवाएँ राज्य के 23 जिला अस्पतालों में से केवल पाँच (22 प्रतिशत) में उपलब्ध थीं. 12 जिला अस्पतालों में त्वचाविज्ञान और वेनेरोलॉजी को छोड़कर नौ आवश्यक सेवाएँ थीं जबकि जिला अस्पताल, कोंडागांव में केवल चार विशेषज्ञ सेवाएँ उपलब्ध थीं.
बस्तर में आठ साल से नहीं शुरु हो पाया कैंसर ओपीडी
कैग ने अपनी जांच में पाया कि जनरल मेडिसिन, जनरल सर्जरी, प्रसूति एवं स्त्री रोग और बाल रोग में बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) सेवाएँ क्रमशः 104 (60 प्रतिशत), 148 (86 प्रतिशत), 126 (73 प्रतिशत) और 133 (77 प्रतिशत) सीएचसी में उपलब्ध नहीं थीं.
इसी तरह 776 पीएचसी में से 282 (36 प्रतिशत) में आईपीएचएस मानदंडों के अनुसार ओपीडी सेवाएँ प्रदान करने के लिए डॉक्टर यानी चिकित्सा अधिकारी ही उपलब्ध नहीं थे.
राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की हालत का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि पिछले आठ सालों से विशेषज्ञ डॉक्टरों की अनुपलब्धता के कारण जगदलपुर में कैंसर यूनिट की ओपीडी और राजनांदगांव में कार्डियोलॉजी, नेफ्रोलॉजी और न्यूरोलॉजी विभागों की ओपीडी सेवाएं शुरू ही नहीं हो पाईं हैं.