छत्तीसगढ़ में मिली पक्षियों की दुर्लभ प्रजाति
बिलासपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में पक्षियों की कई लुप्तप्राय प्रजातियां पाई गई हैं. बिलासपुर विश्वविद्यालय और कंजरवेशन कोर सोसायटी द्वारा किये जा रहे अध्ययन के बाद विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर गौरीदत्त शर्मा ने कहा कि राज्य में लेसर एडजुटेंट स्टॉर्क जैसे पक्षियों की उपस्थिति बताती है कि राज्य की आबोहवा इन लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये अनुकूल है.
डॉक्टर शर्मा के अनुसार पिछले दो सालों से विश्वविद्यालय ने स्वयंसेवी संस्था कंजरवेशन कोर सोसायटी के साथ मिल कर राज्य के अलग-अलग वन क्षेत्रों में जैव विविधता पर अध्ययन का काम शुरु किया है. जो मूलत: पक्षियों पर केंद्रीत है. संभवतः राज्य में किसी विश्वविद्यालय द्वारा इस विषय पर यह पहला अध्ययन है और अध्ययन की यह प्रक्रिया जारी है.
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ राज्य में पाई जाने वाली विभिन्न पक्षी प्रजातियों की सूची तैयार करना एवं उनके रहवास को चिन्हांकित कर, लोगों में जागरूकता ला कर, इन पक्षियों व इनके रहवास को बचाना है.
डॉक्टर शर्मा के अनुसार इस अध्ययन में जो बातें निकल कर सामने आई हैं, उससे यह साफ़ हुआ है कि छत्तीसगढ़ राज्य पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के निवास और प्रवास के लिये अनुकूल है. यही कारण है कि भारत में पाई जाने वाली कुल 1300 विभिन्न प्रजातियों में से 400 से अधिक पंक्षियों का रहवास छत्तीसगढ़ में है.
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में पहली बार देखी गई पक्षियों की कुछ प्रजातियां भी अध्ययन दल को मिले हैं. इनमें शिवा हंस, लाल बगुला, डोबारु, प्लेंटीव कुकु आदि शामिल हैं. अभी तक संभवतः किसी भी शोध पत्र या अधिकृत चिन्हांकन में इन पक्षियों की छत्तीसगढ़ में उपस्थिति का कहीं उल्लेख नहीं है.
कंजरवेशन कोर सोसायटी की मीतू गुप्ता और मोहम्मद खालिक़ ने बताया कि इस अध्ययन में छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में लगभग 300 से अधिक पक्षी प्रजातियों को न केवल चिंहित किया गया है बल्कि विभिन्न संकट ग्रस्त प्रजातियों को भी खोजा गया है.
मोहम्मद खालिक़ ने कहा कि चंदियारी यानी लेसर एडजुटेंट स्टॉर्क विश्व भर में संकट ग्रस्त प्रजातियों में से एक हैं. अध्ययन के दौरान हमने बिलासपुर के मरवाही वनमंडल में इस पक्षी का निवास पाया. इस पक्षी का आकार ११० से १२० से.मी. तक होता है. यह स्टॉर्क प्रजाति में पाए जाने वाले दूसरे पक्षियों से काफी अलग होता है. इसका सिर गंजापन लिए होता है। यह पक्षी मछली, मेंढक, सरीसृप एवं मृत जानवरों के मांस पर निर्भर रहता है. यह भारत के कई क्षेत्रों में स्थानीय प्रवासी है.
उन्होंने बताया कि इस पक्षी के साथ ही अन्य संकट ग्रस्त पक्षी प्रजातियां जैसे रेड नेप्ड आईबिस, ब्लैक हेडेड आईबिस, एलेक्जेंडराइन पैराकिट भी छत्तीसगढ़ में बहुतायत पाये गये हैं. उन्होंने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि कुछ स्थानों पर भीड़भाड़ वाली आबादी में हमें रेड नेप्ड आईबिस के घोसलों का पता चला, जो अपनी तरह का विरल मामला है. किन परिस्थितियों में रेड नेप्ड आईबिस का यह व्यवहार बदला है, इस पर फिलहाल शोध किया जा रहा है.
मीतू गुप्ता के अनुसार इस अध्ययन में ऐसे पक्षी भी बहुतायत मिले हैं, जो वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 में शिकार द्वार विलुप्त होने वाली प्रजातियों की सूची में शामिल हैं. इनमें लाल मुनिया, तैलीय मुनिया, पवई मुनिया और पोरा मुनिया, शामा, टुइयां तोता, कंठी वाला तोता, जैसे पक्षी शामिल हैं.
बिलासपुर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉक्टर डीएसवीजीके कालाधर के अनुसार अध्ययन दल को पक्षियों के अलावा इस अध्ययन में कुछ अनूठी जैव विविधता के प्रमाण भी मिले हैं. उन्होंने ब्लू टाइगर मौथ का उदाहरण देते हुये बताया कि छत्तीसगढ़ में इसकी उपस्थिति का उल्लेख अब तक कहीं नहीं पाया गया है. उनके अनुसार रायगढ़ के धर्मजयगढ़ में ब्लू टाइगर मौथ पाया गया है.
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉक्टर अरुण कुमार सिंह ने कहा कि इस तरह के अध्ययन को हम राज्य में पक्षियों और उनके रहवास को सुरक्षित रखे जाने की दिशा में एक बड़े क़दम के रुप में देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय लगातार नये तरह के शोध और अध्ययन की दिशा में कार्यरत है.