खाद्य सुरक्षा के बाद भी छत्तीसगढ़ भूखा
रायपुर | विशेष संवाददाता: सबसे पहले खाद्य सुरक्षा लागू करने वाला छत्तीसगढ़ देश के भूखे राज्यों में शुमार है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार कैलोरी मिलने के क्रम में देश के 19 राज्यो में छत्तीसगढ़ की ग्रामीण जनता 16 वें नंबर पर है तथा शहरी जनता 12 वें पायदान पर खड़ी है. छत्तीसगढ़ की ग्रामीण जनता को निर्धारित 2400 कैलोरी प्रतिदिन के स्थान पर केवल 1926 कैलोरी से ही संतोष करना पड़ता है. वहीं शहरी जनता को निर्धारित 2100 कैलोरी के स्थान पर 1949 कैलोरी ही मिल पाता है. इसका सीधा सादा अर्थ यह है कि सरकारी योजनाओं के बावजूद छत्तीसगढ़ की जनता कैलोरी के दृष्टिकोण से भूखी है.
यह तथ्य अत्यंत चौकाने वाला है कि सबसे पहले खाद्य सुरक्षा को लागू करने वाले प्रदेश में पहले से ही लोग भूख के शिकार हैं. उन्हें मानक स्तर का कैलोरी अपने भोजन के माध्यम से नही मिलता है. दुनिया भर में प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन जो भोजन मिलता है, उससे कितनी ऊर्जा मिल पाती है, उसके आधार पर ही यह गणना की जाती है कि उन्हें समुचित मात्रा में भोजन मिल रहा है. छत्तीसगढ़ के गांवों एवं शहर की जनता को निर्धारित 2400 तथा 2100 कैलोरी का भोजन प्रतिदिन नही मिल पाता है.
पहले से ही छत्तीसगढ़ में बीपीएल जनसंख्या को दो रुपये की दर से 35 किलो चावल, दो किलो नमक निशुल्क, अनुसूचित क्षेत्रों में पाँच रुपये की दर से दो किलो चना और गैर अनुसूचित क्षेत्रों में दस रुपये की दर से दो किलो दाल मिलता रहा है. जिसका दायरा खाद्य सुरक्षा कानून के माध्यम से बढ़ाया गया है. अब यह सुविधा और ज्यादा लोगो को मिलने लगेगी.
छत्तीसगढ़ में खाद्य सुरक्षा विधेयक 2012 विधानसभा में प्रस्तुत किया था, जिसे 21 दिसम्बर 2012 को सर्व सम्मति से पारित किया जा चुका है. यह देश का पहला खाद्य सुरक्षा कानून है, जिसमें छत्तीसगढ़ के प्राथमिकता वाले गरीब परिवारों, अन्त्योदय परिवारों और सामान्य परिवारों को मिलाकर लगभग 55 लाख 66 हजार 693 परिवारों को राशन दुकानों से किफायती अनाज देने की कानूनी व्यवस्था की गयी है. इनमें 36 लाख 17 हजार परिवार बीपीएल यानी गरीबी रेखा श्रेणी के हैं, जबकि 19 लाख 49 हजार 682 परिवार इस श्रेणी से ऊपर यानी ए.पी.एल. श्रेणी के हैं.
वैज्ञानिक दृष्टि से 2400 कैलोरी गांवो की जनता के लिये तय होने के बावजूद भारत की जनता को 2020 कैलोरी का भोजन ही मिल पाता है. छत्तीसगढ़ में गांव की जनता को 2400 कैलोरी प्रतिदिन के स्थान पर केवल 1926 कैलोरी से ही संतोष करना पड़ता है. वहीं शहरी जनता को निर्धारित 2100 कैलोरी के स्थान पर 1949 कैलोरी ही मिल पाता है. भारतीय आंकड़ों को देखें तो भी छत्तीसगढ़ की ग्रामीण जनता को प्रतिदिन 94 कैलोरी का भोजन कम मिलता है. वैज्ञानिक तथा स्वास्थ्य के नजरिये से देखें तो छत्तीसगढ़ की जनता को 474 कैलोरी का भोजन प्रतिदिन कम मिलता है.
शहरों का हाल भी बुरा है, देश में 19 राज्यों में छत्तीसगढ का नंबर 12 वां है. छत्तीसगढ की शहरी आबादी को 1949 कैलोरी का भोजन मिलता है जो 151 कैलोरी प्रतिदिन कम है. ऐसे में छत्तीसगढ़ का खाद्य सुरक्षा कानून राज्य की जनता की भूख से रक्षा कैसे कर पाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा.